श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र कचनेर
—जीवन प्रकाश जैन, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर’
महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर से ३५ कि.मी. दूर कचनेर अतिशय क्षेत्र है जो पैठण (महा.) से ३० कि.मी. एवं औरंगाबाद से ३५ कि.मी. दूर अवस्थित है। यहाँ अतिशययुक्त, विघ्नविनाशक, मनोवांछित फलदायक श्री १००८ चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विराजमान है। उत्तरी भारत के श्री महावीर जी क्षेत्र के समान दक्षिण भारत में यह क्षेत्र विख्यात है। प्राचीन काल में कचनेर ग्राम के मध्य बस्ती में एक जैन मंदिर था जिसमें श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति थी। जनश्रुति के अनुसार तथा भगवान की पूजन में जयमाला में उल्लिखित वर्णन के अनुसार यह मूर्ति चतुर्थकालीन है। मध्यकाल में मूर्तिभंजकों के पाशवी कृत्यों से बचाने के लिए सम्भवत: इस भुयारी (तलघर) मंदिर को मिट्टी से बुझा दिया गया हो।
अतिशय— लगभग २५० वर्ष पूर्व एक गाय नित्य सायंकाल जब जंगल से लौटती थी जब जहां भुयार का द्वार था उस जगह अपने स्तनों का दूध झराकर फिर गोठे मेें जाती थी। यह दृश्य उस गाँव के संपतराव की दादी प्रतिदिन देखती थी और आश्चर्य में डूब जाती थी। एक दिन उसने गाय को जंगल में नहीं जाने दिया और बाँधकर रखा,किन्तु आश्चर्य तब हुआ जब सायंकाल का समय होते ही गाय रस्सी तोड़कर गोठे से निकली और नित्य की भांति उस जगह जाकर दूध झराया। दादी माँ इस चमत्कार को समझ नहीं सकी और विचार करती रही। एक दिन प्रात:काल में उसने सपने में देखा कि गाय जहाँ प्रतिदिन दूध झराती है वहाँ भुयार (तलघर) का द्वार है और वहाँ एक मूर्ति है। मूर्ति संकेत करती है ‘‘मुझे इस भुयार से निकालो, आपका कल्याण होगा’’। दादी की प्रेरणा से मिट्टी खोदी गई। भुयार (तलघर) का दरवाजा प्रकट हुआ, सीढ़ियाँ लगाई गर्इं, भीतर स्वप्न के अनुसार सप्तफणायुक्त चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा पाई गई। ग्रामवासी इस घटना से दंग रह गए और भावविभोर हो गए। उस समय गाँव में जैनियों की बस्ती नहीं थी इसलिए कचनेर ग्रा. के २ कि.मी. दूरी पर जैन टेकड़ी नामक स्थान से जैनियों को बुलाया गया। दि.जैन प्रतिमा उन श्रावकोंं के सुपुर्द कर दी गई। भगवान विराजमान करने के लिए गाँव में एक बाड़ा खरीदा गया, यथाविधि श्रद्धा व भक्ति के साथ उस बाड़े में प्रतिमा विराजमान की गई। कुछ वर्षों बाद एक शोकदायी अशुभ घटना घटी। अचानक मूर्ति की गर्दन धड़ से अलग हो गई और जमीन पर गिर गई। धड़ वेदी पर ही रहा, मूर्ति खंडित हो गई। समाज द्वारा खंडित प्रतिमा को जलाशय में विसर्जन करने का निर्णय लिया गया तथा पूजा-दर्शनादि के लिए एक नई प्रतिमा लाने का संकल्प किया गया। भगवान महावीर की प्रतिमा श्री क्षेत्र जैनपुर (जिंतूर) से लाई गई। यह मूर्ति लाते समय महाद्वार पर और विराजमान करते समय वेदी पर अतिशययुक्त घटनाएं घटीं। नई मूर्ति आने के बाद यथासमय श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रतिमा को जलाशय में विसर्जित करने का निश्चय हुआ। इसी मध्य क्षेत्र के कार्यकर्ता पिंप्री निवासी श्री लच्छीराम जी कासलीवाल को स्वप्न में दृष्टिगत हुआ, प्रतिमा ने संकेत दिया कि ‘मुझे विसर्जित मत करो, एक कमरे में गड्ढा बनाकर मुझे उसमें रखकर घी शक्कर से गड्ढा भर दो, कमरा बंद कर ताला लगा दो। सात दिन तक अखण्ड भजन पूजन करते रहो, मेरा धड़ और गर्दन जुड़ जाएगा।’’ श्री लच्छीराम जी कासलीवाल सेठ जी ने समाज को जब स्वप्न की जानकारी दी तब स्वप्न के अनुसार कार्यवाही करने का समाज ने निर्णय लिया। मंदिर के भीतर एक कमरे में गड्ढा खोदकर दृष्टान्तानुसार प्रतिमा रखी गई, कमरे का ताला लगा दिया। सात दिन के अखण्ड भजन-पूजन के पश्चात् आठवें दिन कमरे का ताला स्वयं खुल गया। लोेगोें ने देखा चिंतामणि पार्श्वनाथ की खण्डित प्रतिमा पुनश्च जुड़ गई। लोगों ने आनंदविभोर होकर जयजयकार किया। यथाविधि प्रतिमा पुनश्च वेदी पर विराजमान की गई। प्रतिमा खंडित होने के निशान अब भी प्रतिमा की गर्दन पर दृष्टिगत होते हैं। मूर्ति का अतिशय चमत्कार सब ओर फैल गया। लोगों ने विघ्नविनाशक मनोवांछित फलदायक मूर्ति का चमत्कार अनुभव किया।
मूर्ति सम्बन्धी भावनाएं- भारतवर्ष में इस मूर्ति का अभिषेक करना अथवा देखना सभी संकटों से मुक्ति पाना है। श्रवणबेलगोला स्थित भगवान बाहुबली की मूर्ति का जो महत्त्व अभिषेक को दिया जाता है वही महत्त्व इस मूर्ति को प्राप्त है। कहा जाता है कि अपने-अपने गाँव से कचनेर तक पैदल यात्रा करने से मनोवाञ्छित फल की प्राप्ति होती है। ऐसी श्रद्धा वाला भारत में पैदल यात्रा के लिए प्रसिद्ध यह एकमात्र दि.जैन अतिशय क्षेत्र है।
वार्षिक मेला- प्रतिवर्ष कार्तिक शु.१५ को क्षेत्र पर वार्षिक यात्रा का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों यात्री पधारते हैं।
यातायात की सुविधाएं— श्री कचनेरजी क्षेत्र औरंगाबाद बीड सड़क मार्ग पर औरंगाबाद शहर से ३७ कि.मी. दूर है। शहर से कचनेर के लिए प्रतिदिन बस सुविधा उपलब्ध है। टैक्सी, रिक्शा आदि का भी प्रबन्ध है। औरंगाबाद आने के लिए विमान सुविधा, रेल सुविधा उपलब्ध है। दक्षिण मध्य रेलवे से सिकन्द्राबाद-मनमाड़ मार्ग पर औरंगाबाद स्थित है। क्षेत्र द्वारा दर्शनार्थियों के लिए औरंगाबाद कचनेर वाहन नवम्बर १९९२ से शुरु की गई है। मिनी बस द्वारा यह सुविधा औरंगाबाद से प्रतिदिन सुबह व शाम में उपलब्ध है।
क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएं— क्षेत्र पर निवास के लिए धर्मशाला का प्रबंध है। एक नई धर्मशाला का निर्माण मंदिर के निकट ‘श्री रामलाल बडजाते’ नगर में किया जा रहा है। सशुल्क भोजनशाला है, साथ ही औषधालय एवं विद्यालय भी है।