(संस्कृत भाषा को सरलतया समझने और उसके रसास्वादन के लिए अतीव सरल संस्कृत में यह कथानक दिया जा रहा है और साथ में इसका हिन्दी रूपांतर भी प्रस्तुत किया गया है)-
अस्ति आर्यखंडे मगधदेशस्य एकस्मिन् भागे राजगृही नाम नगरी। यत्र महाराज: श्रेणिको प्रजा: अनुशास्ति स्म, तस्य राज्ञी सम्यक्त्वादिगुणैर्मंडिता पतिधर्मपरायणा सती चेलना नामासीत्। एकदा तत्रैव विपुलाचलपर्वतस्य मस्तकस्योपरि त्रिजगद्गुरो: भगवत: श्री वर्धमानस्य समवसरणं विराजते स्म। तत्र गत्वा जिनेन्द्रभगवतो वंदनानंतरे स्वसभायां स्थित्वा राजा श्रेणिक: श्री गौतमगणधरस्वामिनो मुखारिंवदात् सद्धर्मोपदेशं शृण्वन्नासीत्, अकस्मात् एव आकाशमार्गात् कश्चित् तेज: पुंजोऽवतरन् दृष्टिगोचरोऽभूत्। आश्चर्यचकितो भूत्वा राजा श्रेणिको गौतमस्वामिनं पृच्छति स्म-भगवन्! कोऽयं दृश्यते? गणधरदेवोऽवोचत्-महाऋद्धिधारी विद्युन्माली नामा देवोऽयं चतसृभिर्महादेवीभि: सह परमधर्मानुरागात् श्री जिनेन्द्रदेववंदनार्थं आगतोऽयं भव्यात्माद्यतनात् सप्तमदिवसे स्वर्गात् च्युत्वा अस्मिन्नेव नगरे मानवजन्मनि आगमिष्यति तथा तद्भवादेव मोक्षं यास्यति।
इसी आर्यखंड के मगधदेश के एक भाग में राजगृही नाम की नगरी है। वहाँ के राजा महाराज श्रेणिक प्रजा पर अनुशासन करते थे और उनकी रानी सम्यक्त्व आदि गुणों से सहित पतिधर्म-परायणा चेलना नाम की थी। किसी समय वहीं पर विपुलाचल पर्वत के मस्तक पर तीन जगत् के स्वामी श्री वर्धमान भगवान का समवसरण विराज रहा था। उस समवसरण में जाकर जिनेन्द्र भगवान की वंदना के अनंतर मनुष्यों के कोठे मेें बैठकर राजा श्रेणिक श्री गौतम स्वामी गणधर के मुख कमल से सद्धर्म को सुन रहे थे। अकस्मात् आकाशमार्ग से उतरता हुआ कोई तेजपुंज राजा को दृष्टिगोचर हुआ। आश्चर्यचकित होकर राजा ने श्री गौतम स्वामी से पूछा कि हे भगवन्! यह क्या दिख रहा है ? गणधर देव ने कहा कि-यह महाऋद्धिधारी विद्युन्माली नाम का देव अपनी चार देवियों सहित परमधर्म के अनुराग से श्री जिनेन्द्र भगवान की वंदना के लिए आ रहा है । यह भव्यात्मा आज से सातवें दिन स्वर्ग से च्युत होकर इसी नगर में मनुष्य जन्म में आवेगा तथा उसी भव से मोक्ष प्राप्त करेगा।