श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पार्श्वनाथ चूलगिरि, जयपुर
—महेन्द्र कुमार जैन (व्यवस्थापक)
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- सन् १९५३ की वैशाख कृष्णा द्वितीया, भगवान पार्श्वनाथ के गर्भकल्याणक दिवस पर आचार्यरत्न प्रात:स्मरणीय १०८ श्री देशभूषण जी महाराज ने इस पर्वतीय क्षेत्र पर सामायिक करने का निश्चय किया। पर्वत की तपन, भीषण गर्मी तथा चढ़ाई की दुरुहता निग्र्रन्थ मुनिराज के संकल्प में बाधा नहीं बन पाई। पर्वत के नुकीले पत्थर, कांटों से भरे झाड़-झंखाड़ के उपरान्त उन्होंने अपने लिए मार्ग बना लिया और आचार्यवर यथासमय अपनी लक्षित भूमि पर सामायिक में लीन हो गये। उन्होंने अपने भक्तों को इसी स्थान पर साधना कुटीर के निर्माण के भाव से अवगत कराया। धार्मिक चेतना से लोक आस्था जुड़ जाती है तो दुर्गम भी सुगम होकर सिद्धि हो जाती है, अतिशय हो जाता है। जयपुर नगर के दक्षिण-पूर्वी अंचल में जयपुर-महावीर जी मार्ग पर श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री पार्श्वनाथ चूलगिरि ऐसी ही सिद्धि है, जो आज देश भर के दिगम्बर जैन धर्मावलम्बियों के लिए अतिशय क्षेत्र बन गया है। सन् १९५३ की पौष कृष्णा एकादशी को आचार्य श्री के सानिध्य में पर्वतीय शिखर पर भगवान पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक महोत्सव आयोजित किया गया। आचार्यश्री ने शिखर का नामकरण ‘‘चूलगिरि’’ किया। श्रावकों के मध्य चूलगिरि पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ के श्रीचरण एवं एक साधना कुटीर के निर्माण का संकल्प किया गया। श्रद्धा, भक्ति व समर्पण ने पर्वत को वंदनीय बना दिया। एक अतिशय अपने आप में जाग्रत हो उठा। अप्रैल, १९६६ में भगवान पार्श्वनाथ की मूलनायक खड्गासन प्रतिमा के साथ-साथ भगवान महावीर, भगवान नेमिनाथ, चौबीसी एवं यंत्रों की प्रतिष्ठा के लिए पंचकल्याणक महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। चूलगिरि पर देवाधिदेव भगवान पार्श्वनाथ की सात फुट ऊँची श्यामवर्णी पाषाण की खड्गासन प्रतिमा मूलनायक के रूप में तथा इसके निकट निर्मित दो अन्य वेदियों में भगवान महावीर व भगवान नेमिनाथ की साढ़े तीन फुट ऊँची धवल पाषाण की पद्मासन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गर्इं। भगवान पार्श्वनाथ की परिक्रमा में २८ गुमटियों में २४ तीर्थंकरों की पद्मासन प्रतिमाएँ एवं चार चरण प्रतिष्ठित किये गये, एक अतिरिक्त निर्मित कक्ष में मातेश्वरी पद्मावती देवी को विराजमान किया गया। पूजा-प्रक्षाल हेतु पहाड़ पर शुद्ध जल हेतु एक लघु टांके का निर्माण कराया गया। चूलगिरि पर निर्र्माण कार्यों का प्रथम चरण इस तरह पूर्ण हुआ। अतिशय क्षेत्रों के निर्माण कार्य को कभी विराम नहीं मिलता, करनी चलती है तो चलती ही रहती है। चूलगिरि पर निर्माण चलता ही रहा है। क्षेत्र का स्वरूप भी निखरता एवं संवरता रहा है। सन् १९८२ में आचार्यरत्न १०८ श्री देशभूषण जी महाराज के ससंघ जयपुर पदार्पण पर १० से १५ मई तक पुन: दूसरा पंचकल्याणक आयोजित किया गया। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्तों ने असीम उत्साह एवं श्रद्धा से इसमें भाग लिया। भगवान महावीर की श्वेत पाषाण से निर्मित २१ फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा चूलगिरि क्षेत्र के जिस भाग में प्रतिष्ठित की गयीं, उस विशाल प्रांगण का नामकरण हो गया ‘‘महावीर चौक’’। महावीर चौक ७५²६५ फुट के आकार का है तथा मंदिरजी पर ६० फुट ऊँचाई के विशाल शिखर का निर्माण हो चुका है। भगवान महावीर चौक में मूल प्रतिमाजी के पार्श्व में श्रद्धालुओं द्वारा प्रतिमाजी का अभिषेक करने हेतु एक पक्के मंच का निर्माण कराया जा चुका है तथा इसी चौक से गुफाजी में दर्शनार्थ जाने के लिए इसे सीढ़ी मार्ग से जोड़ा गया है। ४०²४० फुट आकार की पर्वत गुफा में चौबीस तीर्थंकरों की सवा दो-दो फुट की खड्गासन प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गर्इं। यह सम्पूर्ण दीर्घा संगमरमर पाषाण से निर्मित है जो अत्यंत मनोहारी है। इस दीर्घा के मध्य में एक अन्य जिनालय में भगवान आदिनाथ, भरत एवं बाहुबली भगवान की खड्गासन प्रतिमाएँ तथा दो शासन देवियों—ज्वालामालिनी तथा चव्रेâश्वरी के मंदिर हैं, यह जिनालय भी संगमरमर पाषाण से निर्मित है। चूलगिरि पर ‘‘ऋद्धि-सिाqद्ध’’ दायक विजय पताका महायंत्र इस क्षेत्र का विशेष अतिशय है। ४० कि.ग्रा. ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण यह महायंत्र ४²४ फुट वर्गाकार आकृति में है। महायंत्र में ६५६१ कोष्ठक हैं तथा यंत्र में स्वर व व्यंजन, मंत्र, जाप्य, स्वस्तिक चिन्ह, मानस्तंभ, अर्हन्तमूर्ति श्रुत अक्षर तथा जैन यक्ष-यक्षिणियों के नाम उत्कीर्ण हैं। जनप्रभावना सिद्ध करती है कि यह महामंत्र सर्व प्रकार संकटमोचक है। क्षेत्र के अधिकृत समस्त परिसर के चारोें ओर सुरक्षा एवं वन सम्पदा की रक्षार्थ ७ फुट ऊँची पक्की दीवार निर्मित की जा चुकी है। इसे सदैव हरा-भरा बनाये रखने के लिए हजारों की संख्या में विविध वृक्ष लगाये जा चुके हैं।
बहुमूल्य रत्नों की प्रतिमाओं का जिनालय- बहुमूल्य रत्नों की प्रतिमाओं को विराजमान करने हेतु चूलगिरि क्षेत्र पर एक अत्यधिक सुरक्षित व्यवस्था सहित संगमरमर के कलात्मक जिनालय का निर्माण अप्रैल, २००२ में कराया जा चुका है।
धार्मिक विधि-विधान- जयपुर शहर व देश के विभिन्न प्रदेशों से भक्तजन समय-समय पर चूलगिरि क्षेत्र पर आकर आष्टान्हिका, शांतिविधान व वृहत् स्तर पर विशेष विधानों का आयोजन करते हैंं। दिगम्बर जैन आम्नाय के अनुसार किये जाने वाले सभी धार्मिक आयोजनों के लिए पूजा सामग्री, पूजा उपकरण, मण्डप मांडना, विधान कराने वाले विद्वान आदि की समुचित व्यवस्था क्षेत्र पर उपलब्ध रहती है।
श्री देशभूषण निलय- सभी प्रकार की आधुनिक सुविधाओं से युक्त २८ कमरों वाला देशभूषण निलय बाहर से आने वाले यात्रियों के आवास हेतु क्षेत्र पर निर्मित है। निलय में सर्दी-गर्मी के लिए आवश्यक बिस्तर, पंखे आदि की व्यवस्था सशुल्क उपलब्ध है।
भोजनालय एवं जलपान गृह- सूर्यास्त के पूर्व भोजन के लिए अत्याधुनिक ढंग से निर्मित भोजनालय कक्ष में गैस संचालित भोजन व्यवस्था की गई है।। त्यागी-व्रतियों के लिए (शोध) खाना बनाने व खाने की व्यवस्था अतिरिक्त रूप से की गई है। भोजनशाला में एक बार में ७५ यात्रियों के बैठने की व्यवस्था है। समाज द्वारा आयोजित की जाने वाली गोठ घुघरियों के सुविधार्थ अलग से समुचित स्थान व रसोईयों का प्रबंध किया जाता है। खाना बनाने के बर्तन, लकड़ी, छूने, गैस, पानी, रोशनी आवश्यकता पर उपलब्ध कराये जाते हैं। धार्मिक उत्सवों पर बड़े भोज के लिए पूर्व सूचना पर यात्रियों के लिए उचित व्यवस्था भी की जाती है। दर्शनार्थियों के लिए क्षेत्र पर एक सुव्यवस्थित जलपान गृह का निर्माण कराया जा चुका है। जलपान गृह में गर्मी-सर्दी के पेय व अल्पाहार हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
निर्मल-रत्न ध्यान केन्द्र- ज्ञान-ध्यान व साधना के लिए आधुनिक एवं वैज्ञानिक स्वरूप सहित इस केन्द्र का निर्माण कराया गया है। यहाँ स्त्री-पुरुष निर्विघ्न ध्यान एवं साधना कर आध्यात्मिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। उत्तरी भारत के तीर्थस्थलों में यह एक अनुपम ध्यान केन्द्र है।
स्वाध्याय कक्ष- क्षेत्र पर निर्मित इस स्वाध्याय कक्ष में काफी संख्या में प्राचीन-नवीन धार्मिक ग्रंथ, जैन ऐतिहासिक पुस्तवेंâ व पठन योग्य धार्मिक सामग्री उपलब्ध है। इसमें पाठकों के लिए धार्मिक महत्त्व की दुर्लभ सामग्री उपलब्ध कराने के प्रयास किये जा रहे हैं।
जलाशय- चूलगिरि क्षेत्र पर पीने के जल की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराये जाने के उपरांत भी वर्षा ऋतु में पर्वत के प्राकृतिक जल को एकत्रित कर क्षेत्र के चारों ओर हरियाली व पर्यावरण की सुरक्षा बनाये रखने के लिए वर्षा का १८ लाख लीटर जल एकत्रित रखने की क्षमता वाले इस वृहद् जलाशय का निर्माण कराया जा चुका है। जल की निरन्तर होने वाली कमी की पूर्ति एवं यात्रियों की सुख-सुविधाओं में जल की कमी से कोई असुविधा न होने पावे, इस दृष्टि से यह दूरदर्शी प्रयास किया गया है। सभी क्षेत्रों में इस योजना की सराहना की गई है।
सड़क एवं सीढ़ी मार्ग- तलहटी से यात्रियों के लिए चूलगिरि तक पहुँचने के लिए सड़क एवं सीढ़ी मार्ग निर्मित है। पैदल यात्री ६ इंच चौड़ाई वाली सुलभ १००८ सीढ़ियोें के मार्ग से १५ से २० मिनट की अवधि में शिखर तक पहुँच सकते हैं। मार्ग में विश्राम के लिए तीन विश्राम स्थल भी निर्मित हैं। निजी वाहन वाले यात्री ५ कि.मी. के सड़क मार्ग से शिखर तक सहजता से पहुँचते हैं। सड़क मार्ग इतना सुलभ एवं सुरम्य है कि दुपहिया वाहन भी २० मिनट में मंदिर तक पहुँच जाता है।
व्हील चेयर व्यवस्था- वृद्ध एवं शारीरिक रूप से अशक्त यात्रियों को दर्शन लाभ कराने हेतु क्षेत्र पर व्हील चेयर सुविधा उपलब्ध है।
बस सेवा- यात्रियों के लिए क्षेत्र पर आने व जाने के लिए क्षेत्र की प्रबंध समिति की ओर से नियमित बस सेवा सशुल्क उपलब्ध रहती है।
सुलभ केन्द्र सुविधाएँ- स्त्री-पुरुषों के लिए क्षेत्र पर आधुनिक ढंग से निर्मित अलग-अलग सुविधा व सुलभ केन्द्र उपलब्ध हैं।
स्थाई पूजा योजना- स्थाई पूजा योजना के अंतर्गत दातार द्वारा जमा कराई गई राशि से उसके द्वारा निश्चित किये गये दिन पूजा का आयोजन किया जाता है। दातार को भी पूजा में सम्मिलित होने हेतु इसकी सूचना १५ दिन पूर्व प्रेषित कर दी जाती है।