श्री दिगम्बर जैन सह्याचल (विजयन्तीगिरि) सिद्धक्षेत्र
भारत के ऐतिहासिक व पौराणिक अवन्ति व मालवदेश में स्थित दिगम्बर जैन पुरावशेषों से समृद्ध, विशाल पर्वत श्रेणियों वाला अतिप्राचीन किन्तु नवोदित सह्याचल नाम का सिद्धक्षेत्र (तीर्थ) है। जिस विध्वस्त तीर्थ का पता मुझे, मेरे द्वारा नेमावर उभय—तट तीर्थ के शास्त्रीय उल्लेखों द्वारा सिद्ध करने के पश्चात् बावड़ीखेडा, पानीगाँव की दिगम्बर जैन समाज द्वारा कुछ र्मूित, मंदिरों के अवशेषों की जानकारी प्राप्त होने पर ब्र. शीतल प्रसाद जी की ‘मध्य भारत के जैन अवशेष’ पुस्तकब्र. शीतल प्रसाद जैन, मध्य भारत के जैन अवशेष पढ़ने से हुई। वहाँ जाकर हर्ष—विषाद की स्थिति बनी, आतताइयों द्वारा वह पूरा क्षेत्र विध्वस्त कर दिया गया था। जाने के साथ ही जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ करवाया गया। यह सन् १९९४ की घटना है। कुछ र्मूितयां आधी गड़ी पड़ी थीं उनको निकालकर सीधा किया गया। खुदाई के दौरान शांतिनाथ,कुंथुनाथ व अरनाथ की मुख्य र्मूितयों के साथ वहां मोक्ष प्राप्त केवलि भगवन्तों की र्मूितयों वाले फलक निकले तथा तीन मंदिरों की कलाकलित पाषाणों की नींव निकली। बीच की नींव को आधार बनाकर कला युक्त वेदीनुमा पत्थरों के ऊपर, पानीगांव व बावड़ीखेड़ा जैन समाज के सहयोग से जिनबिम्बों की स्थापना की गई। हिम्मतिंसग दरबार ठाकुर साहब के खेत में बने दो दिगम्बर जैन मंदिरों के ध्वंसावशेषों से प्राप्त महावीर भगवान की विशाल र्मूित पर्वत पर चमत्कारिक ढंग से विराजमान की गई। उस समय मुझे तीर्थवर्णक शास्त्रों की पूर्ण जानकारी नहीं होने से मैंने मनोरमा शीलवती कथा में र्विणत विजयन्ति नगरी के आधार से इस स्थान का नाम विजयन्तिगिरि रखा था। अब ब्रह्म ज्ञानसागर कवि की तीर्थवन्दना पढ़ने से निश्चित हुआ कि यह सह्याचल मुक्तिभूमि है, जिसका उल्लेख निर्वाणभक्ति में पूज्यपाद स्वामी ने भी किया है।
सह्याचले च हिमवत्यपि सुप्रतिष्ठे। दण्डात्मके गजपथे पृथुसार—यष्टौ।।
ये साधवो हतमला सुगिंत प्रयाता:, स्थानि तानि जगति प्रथितान्यभूवन्।।३०।।
आ. पूज्यपाद, निर्वाण भक्ति, ३०
अर्थात्—सह्याचल, हिमवान, सुप्रतिष्ठ, दण्डात्मक, गजपथ और पृथुसारवष्टि इन पवित्र स्थानों पर कर्म मल के हन्ता जो साधु अच्छी मोक्षगति को प्राप्त हुए वे स्थान जगत में प्रसिद्ध हुए। यहाँ सह्याचल में साधुओं के सुगति/मुक्ति प्राप्ति का वर्णन आया है, यह नामोल्लेख मात्र है।
सह्याचल के अन्य उल्लेख
सह्याद्रौ वैजयन्ते विपुलगिरिवरे।।३।।
चैत्यवन्दना अर्थात् विजयन्त नगर के सह्याचल में सिद्ध योगीश्वरों को मेरा नमस्कार हो। इस कथन में जो वैजयन्त शब्द हैं उसका, विजवाड़ अपभ्रंस रूप है। इसकी पहाड़ी ही सह्याचल सिद्ध तीर्थ है। अवन्ति व मालवदेश—प्रथमानुयोगगत पौराणिक जैन आगमों/शास्त्रों के अनुसार भगवान ऋषभराज ने ४५ जनपदों में भरतक्षेत्र के आर्यावर्त में इनकी स्थापना की थी। अवन्तीदेश की राजधानी उज्जैन तथा मालवदेश की विजयन्ती (विजवाड़) थी। सह्याचल भारत की सात प्रमुख पर्वत शृंखलाओं में से एक है। आजकी इसी का नाम सह्याद्रि है। पश्चिम घाट जो मालवदेश के उत्तर में नीलगिरि के संगम तक फैला है, वही सह्याद्रि है।संस्कृत—हिन्दी आप्टे कोश, पृ. १२०५ अवन्तिदेश—नर्मदा नदी के उत्तरी भाग में स्थित इसकी राजधानी उज्जयिनी थी जिसे अवन्तिपुरी, अवन्तिका व विशाला भी कहते थे।मेघदूत, ३० यह शिप्रानदी के तट पर स्थित थी, यह मालवदेश का पश्चिम भाग है।आण्टेकोश, पृ. १२०२ मालव—मध्यभारत में स्थित एक वर्तमान मालवा प्रदेश ही है। पानी गांव से बिजवाड़ मार्ग पर स्थित सुन्दर बावड़ी ध्वस्त जिनमंदिर से भगवान पाश्र्वनाथ की र्मूित लाकर विराजमान की गई। इस प्रकार से मुख्य पांच र्मूितयां एक पंक्ति में विराजित है। महुडयाव कलवार के मध्य में स्थित नागादेव नाम से प्रसिद्ध भगवान नेमिनाथ की अष्ट प्रातिहार्य मंडित र्मूित लायी गई। सह्याचल पर्वत की पहाड़ी की नदी से भगवान ऋषभदेव की र्मूित लायी गई। ग्राम बावड़ीखेड़ा का मजरा दावद कन्हैयालाल मीणा के खेत से दो दिगम्बर जैन प्रतिमाएं ध्वस्त प्राचीन मंदिर से लायी गर्इं। एक तीन फिट की अजितनाथ भगवान की, दूसरी पंचबालयति की प्रतीत होती है। जागठा कुसमान्या में लगभग चालीस घर जैन समाज के थे। एक प्राचीन मंदिर था जिसकी र्मूित शक्तिमाता के नाम से प्रसिद्ध है। कन्नौद के थान में एक सातिशय जैन र्मूित सह्याचल सिद्धक्षेत्र से ले जायी गई है। कन्नौद के प्राचीन जैन मंदिर में भी एक चौबीसी प्रतिमा वासुपूज्य भगवान की अति सुंदर कलाफलित है। एक छत्र भाग भी कलापूर्ण है जो वहां की जैन समाज से सह्याचल सिद्धक्षेत्र के लिए प्रदान किया है। यहां से ले जायी गई अनेक प्राचीन जैन र्मूितयां उज्जैन के जयिंसहपुर दिगम्बर जैन मंदिर में और इंदौर म्यूजियम में जैन सरस्वति की र्मूित स्थापित हैं। सह्याचल सिद्धक्षेत्र में छोटी र्मूितयों के अनेक पाषाढ़ खण्ड उपलब्ध हुए हैं जिन्हें देखने से लगता है कि यहां एक विशाल सहस्रवूâट जिनालय रहा होगा। सम्मेदपर्वत—सह्याचल—मेढ़गिरिश्रुतसागर सूरि, ग्रे. प्रो. टीका, गाथा—२७
अर्थात्—सम्मेदाचल, सह्याचल मेढ़ागिरि (मुक्तागिरि) आदि तीर्थ भूमियाँ हैं।
मालवदेश मझार, सहेणाचल सुविमलह, सिद्धक्षेत्र गुणवन्त, पर्वत अति गुणमालह।
आज तक उपलब्ध सभी तीर्थ वंदनाओं में यह १०१ पद्यात्मक सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण रचना है, इसमें मालवदेश गत सहेणाचल / सह्याचल सिद्धक्षेत्र का उल्लेख है। यहां से औठी यानित३।। (साड़े तीन करोड़) मुनि मुक्त हुए तथा यहां उन्नत/ ऊँचा शांतिनाथ का बिम्ब (मूलनायक रूप) था। श्री ब्रह्मज्ञानसागर कवि ने इस उपरि उक्त पद्य में सह स्पष्ट कर दिया है। यह पानीगांव बिजवाड़ की पहाड़ी मालवदेश में है यहां अभी भी सबसे ऊँची ८/९ फीट शांतिनाथ भगवान की ही प्रतिमा मूलनायक के रूप में विराजित हैं। सह्याचल के निकट विजवाड़ से एक जैन सरस्वती की र्मूित, इंदौर ले जाई गई जो वहां के संग्रहालय में स्थापित है, उसके मस्तक पर तीन जैन तीर्थंकरों की प्रतिमा उत्कीर्ण हैं। सह्याचल सिद्धक्षेत्र के ही निकटस्थ लोहारदा ग्राम में एक जिनप्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई है, जो वहां के जिनमंदिर में विराजमान है। पानीगांव के उत्तरी वायव्य कोण में अनुमानखेड़ा (पुरा) के उच्च पहाड़ी भाग पर जो वर्तमान में खेत के रूप में परिर्वितत कर लिया गया है, यहां दो तीन प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिरों के ध्वंसावशेष पाषाढ़, र्मूितयां सर्वत्र बिखरे पड़े हैं। बावड़ियां कुओं के रूप में परिर्वितत कर दी गई हैं और पाषाढ़, र्मूितयों को कुओं के बनाने में उपयोग किया गया है। खेत की मेढ़ पर एक वृक्ष के नीचे कुछ पाषाढ़ों के मध्य एक खंडित अर्हज्जिनप्रतिमा पड़ी थी जिसे उठाकर सह्याचल सिद्धक्षेत्र की तलहटी में विराजमान कर दिया गया है। यहां हनुमानखेड़ा में एक नीम के वृक्ष के नीचे धरणेन्द्र देव की प्रतिमा भी रखी है जिससे पद्मावती और पाश्र्वनाथ की प्रतिमाओं का अस्तित्व भी सिद्ध होता है। यहां के किसानों ने बताया कि खेत की जुताई में मंदिरों व र्मूितयों के अवशेष निकलते हैं। एक प्राचीन बावड़ी हनुमान मंदिर के पास थी जो अभी पूर दी गई हैं इसमें भी जैन मंदिर के पाषाढ़ लगे थे जिनमें कुछ यहां वहाँ पड़े हैं। पानीगांव में राम मंदिर के सामने एक प्राचीन स्थान है जहां लोग रहने लगे हैं। इस सिद्धि प्राप्त स्थान की पश्चिम व वायव्य दिशा में ऊँचे—ऊँचे शृंग/ चोटियां हैं। अब क्षेत्र की दक्षिण दिशा में निकट स्थित बिजवाड़ तथा पूर्वी भाग में पानीगांव बावड़ीखेड़ा जो विजयन्त नगर के ही भाग हैं यहां सर्वत्र जैन पुरावशेष प्राप्त होते हैं। अभी भी खोज के दौरान जैन मंदिर र्मूितयों के शिलाफलक प्राप्त हो रहे हैं। मध्यप्रान्त, मध्यभारत और राजपूताना के प्राचीन जैन स्मारक (प्रथम भाग—मध्यप्रान्त)९—ये क्षेत्र परिचय दिया है। विजवार या विजावड—पर्गना काटाफोर जिला नीमाड़। इंदौर से पूर्व ४९ मील वे नेमावर से पश्चिम ३३ मील। यहां कई जैन मंदिरों के खण्डर हैं। बंदेर पेखान की पहाड़ी पर बहुत—सी र्मूितयां स्थापित हैं। इन मंदिरों की खुदाई से प्राप्त सुंदर पाषाणों को महादेव के मंदिर के बनाने में काम में लाया जा रहा है। ग्राम के उत्तर १०वीं या ११वीं शताब्दी के बहुत बड़े जैन मंदिर के अवशेष हैं। इन ध्वंशों में तीन बड़ी दिगम्बर जैन र्मूितयां हैं (१) ५ फुट ३ इंच ऊँची (२) ६ फुट ३ इंच ऊँची, नासिका और भुजा नहीं है (३) ८ फुट ३ इंच ऊँची, २ फुट १० इंच आसन पर चौड़ी, हाथ नहीं हैं। यह शांतिनाथजी की र्मूित है। आसन के लेख में सं. १२३४ फागुन वदी ६ है। एक त्रिकोण पाषाण पड़ा है जो ४ फुट ३।। इंच लम्बा, २ फुट ४ इंच ऊँचा है ऊपर १ मुर्ति हैं। ऊपर छत्र दुंदुभी बाजे व गंधर्वदेव है। यहां दतोनी नाम की धारा है जिसके घाट और सीढ़ियों पर जैन मंदिर के पाषाण लगे हैं। जो पहाड़ के नीचे बीजेश्वर महादेव का मंदिर है उसकी दीवलों में पद्मासन और खङ्गासन जैन र्मूितयां लगी हैं तथा जैन मंदिर के शिखर को तोड़कर इस मंदिर का शिखर बनाया गया है। पहँुच मार्ग—राष्ट्रीय राजमार्ग इंदौर—हरदा रोडद्व विजवाड़ से २ कि.मी., सिद्धक्षेत्र नेमावर से ५२ कि.मी., रेलवे स्टेशन हरदा से ७५ कि. मी., बावड़ीखेड़ा से ८ कि. मी., कन्नौद से २१ कि. मी.
मुनि मार्दव सागर
श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, सुदामा नगर, इन्दौर—४५२ ००९