श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, बहलना (उ.प्र.)
वीरेन्द्र कुमार जैन, सलावाअतिशय क्षेत्र बहलना एक सुन्दर क्षेत्र है जहाँ प्रवेश करते ही असीम शांति का अनुभव होता है। बहलना अतिशय क्षेत्र दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय मार्ग पर मुजफ्फरनगर बहलना चौक से पश्चिम की ओर ५ किमी. की दूरी पर स्थित है। हस्तिनापुर तीर्थक्षेत्र से यह लगभग ६० किमी. की दूरी पर है। इस तीर्थक्षेत्र पर भगवानपार्श्वनाथ की अतिशययुक्त प्रतिमा श्वेतवर्णी, नौ फण वाली अत्यन्त मनोहर है, जो अति प्राचीन है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- प्राचीन इतिहास के पृष्ठों में यह क्षेत्र पहले ‘वहरा’ नाम से जाना जाता था। यहाँ एक विशाल किला आज भी है। कहते हैं सम्राट शेरशाह सूरी के एक सिपहसालार ने इसका निर्माण कराया था। इस किले के चार मुख्य द्वार थे। समय के साथ-साथ तीन द्वार नहीं रहे आज इसका एक ही द्वार शेष है। इसमें दिल्ली जाने के लिए नीचे-नीचे एक सुुरंग भी थी, जो अब बंद हो गई है। लगभग दो शतक पूर्व ‘वहरा’ एक बड़ा शहर था। यहाँ पर लगभग ३०० जैन परिवार रहते थे एवं भगवानपार्श्वनाथ का भव्य जिनालय था। मूर्ति पर लिखी प्रशस्ति एवं दर्शनमात्र से यह विदित होता है कि श्वेत पाषाण की नौ फण वाली भगवानपार्श्वनाथ की मूर्ति अति प्राचीन, अति सुन्दर, अति गंभीर एवं अतिशययुक्त है। पूर्व में यहाँ सैकड़ों जैन परिवार थे परन्तु समय में परिवर्तन आया और देखते ही देखते सभी परिवार यहाँ से पलायन कर गए, वर्तमान में यहाँ एक भी जैन परिवार नहीं है परन्तु जिनालय की व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है।
अतिशय- प्रतिमा अतिशययुक्त है जिसके कई उदाहरण हैंं। कहते हैं आज से ४९ वर्ष पूर्व मंदिरजी में चोर घुस आए थे। उनमें से एक ने छत्र, चंवर, सिंहासन और अन्य कीमती सामान गठरी में बांध लिया था। चोर जब बाहर जाने लगे तो रास्ता नहीं मिला। पूरी रात्रि वहीं बंद रहा। प्रात:काल जब मंदिर खोला गया तो उसे पकड़ लिया गया। चोर ने बतलाया कि ‘‘जब मैं सामान लेकर बाहर जाने लगा तो मुझे आँखों से दिखलाई देना बंद हो गया और मैं बाहर नहीं निकल सका।’ उसने भगवान से क्षमायाचना की तभी उसकी आँखों में रोशनी आ गई। महीनों तक भगवान की वेदी में छत्र व घुंघरू हिलना अतिशय के साक्षात् उदाहरण हैं। मंदिरजी में ही भूगर्भ में चरणचिन्ह है जहाँ से प्रतिमा प्राप्त हुई। मंदिरजी के सामने सवा सत्तावन फुट ऊँचा मानस्तंभ है जिस पर सुन्दर कारीगरी की गई है। मंदिरजी में कुछ वर्ष पूर्व अनायास ही गर्भगृह के दर्शन हुए, यह चारों ओर से पूरी तरह बंद था। गांव की तरफ से इस गृह में आने के लिए लगभग तीन फुट ऊँचे लखोरी र्इंटों के दो दरवाजे बने हुए थे। श्रमण सन्तों का मत है कि पूर्व मेें यह छोटा सा जिनालय रहा होगा। उनका कथन है कि इसमें नीचे तल में मूर्तियाँ विद्यमान हैं और समय आने पर यह प्राप्त होंगी। वर्तमान में यह ‘ध्यान केन्द्र’ के रूप में है जहाँपार्श्वनाथ भगवान के चरण स्थापित हैं।
मुनियोें की समाधियाँ- क्षेत्र पर तीन मुनिराजों की समाधियाँ बनी हुई हैं। सन् १९६५ में परमपूज्य आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज का संघ यहाँ पर आया था, उनके संघ के दो मुनिराज श्री बोधिसागर जी एवं श्री सुपाश्र्वसागर जी महाराज की समाधि यहाँ हुई तथा वर्ष २००१ में मुनि श्री चारित्रभूषण महाराज की समाधि यहाँ हुई। समाधियों के आस-पास अच्छी हरियाली है। समाधियों के दर्शन से हमें स्वयं भी समाधिमरणपूर्वक मृत्यु का वरण करने की शिक्षा प्राप्त होती है। क्षेत्र पर भगवान के अभिषेक हेतु एक विशाल पांडुकशिला निर्मित है। प्रतिवर्ष भगवानपार्श्वनाथ का मोक्षकल्याणक (श्रावण शुक्ला सप्तमी) बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिरजी के बाहर बाल वाटिका है। जिसमें सुंदर फूलों के मध्य बच्चों की क्रीडा हेतु झूले हैं। क्षेत्र पर लाला चतरसेन प्राकृतिक चिकित्सा योग एवं शोध संस्थान का निर्माण किया गया है। यहाँ अनेक बीमारियों का उपचार योगासन, प्राणायाम, ध्यान, मिट्टी, जल, भाप, मसाज, एक्यूप्रेशर, चुम्बक, पैरों व घुटनों की कसरत के साथ किया जाता है। सुन्दर नौका विहार भी यहाँ की विशेषता है।
क्षेत्र पर उपलब्ध आवासादि सुविधाएँ- क्षेत्र पर यात्रियों की सुविधा हेतु कमरे व हॉल की व्यवस्था है। यात्रियों के भोजन हेतु नि:शुल्क भोजनालय की व्यवस्था है। सुन्दर प्रतिमा जी, हरे भरे वृक्ष, तीर्थंकर वाटिका, अश्ववन, पाश्र्व नौका विहार से यात्री प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। प्राकृतिक चिकित्सालय भी है।
वार्षिक मेला- क्षेत्र का वार्षिक मेला २ अक्टूबर, १८ अप्रैल एवंपार्श्वनाथ निर्वाण महोत्सव के दिन होता है।