—बालचंद्र जैन (मंत्री), पटेरिया-गढ़ाकोटा (सागर) म.प्र.
जैन तीर्थ पटेरिया सागर से ४८ किमी. दमोह से ३० किमी. एवं जबलपुर से १४० किमी. की दूरी पर स्थित है। निकटवर्ती रेलवे स्टेशन सागर, दमोह एवं पथरिया है। गढ़ाकोटा बस स्टैण्ड से यह तीर्थ १ किमी. दूर है। चूँकि यह क्षेत्र सागर-दमोह मुख्य सड़कमार्ग पर स्थित है अत: दोनों स्थानों से पहुँचना सरल है। भव्य गगनचुम्बी जिनालय, भगवान पार्श्वनाथ की तीन विशाल प्रतिमाएँ, चारों ओर मंदिर को घेरे हुए एक परकोटा दूर-दूर तक फैली हरियाली, सब ओर छाया मौन, एक अनोखा सा आकर्षण और मन को छू लेने वाली शान्ति, यही तीर्थ पटेरिया है। २३० वर्ष प्राचीन जिनालय जिसकी ऊँचाई लगभग ९० फुट और भगवान पार्श्वनाथ की तीन प्रतिमाओं की ऊँचाई साढ़े सात फुट है। कहा जाता है कि २१७ वर्ष पूर्व इतना बड़ा मंदिर बनोनया वंश के श्रेष्ठी राधाकिशुन जूनशाह ने अपने रुई के व्यापार में एक दिन के मुनापेâ की रकम से बनवाया था। गजरथ महोत्सव के साथ भगवान की मंगलकारी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवाई थी, उस समय वीर बुन्देला छत्रशाल के वंशज महाराज हरीसिंहदेव शासन करते थे, रियासतें थींं। हृदय के बड़े दानी और वीर पुरुष उन दिनों हुआ करते थे, जिनमें श्रद्धा थी, सर्वमंगल की भावना थी। मंदिर के आसपास लोग बसे थे अच्छी आबादी थी पर धीरे-धीरे वक्त के साथ सब बदल गया। अब जिनालय से बस्ती के बीच फासला बढ़ गया पर सुखद बाद यह रही कि अपने भगवान से बस्ती के लोगों की दूरी नहीं बढ़ी, उनकी भगवान में आस्था नहीं घटी। समय-समय पर धार्मिकजनों ने मिलकर मंदिर को सजाने-संवारने का प्रयास किया। आज से लगभग ९० वर्ष पूर्व क्षेत्र के विकास के लिए जीर्णोद्धार शुरू हुआ जो आज निरन्तर प्रगति पर है। इस अतिशयकारी क्षेत्र पर बैठकर आत्मा में अपूर्व शांति का अनुभव होता है। कहते हैं कि गजरथ के वक्त भोजन व्यवस्था के लिए घी कम पड़ गया था तब तत्कालीन भट्टारक श्री महेन्द्रकीर्ति जी का आदेश हुआ कि घबराओ मत! मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर जो जलकुण्ड है उसका पानी कढ़ाई में डालो, घी की कमी पूरी हो जायेगी। हुआ भी ऐसा ही। लोग आश्चर्यचकित रह गये। सर्वमंगल की भावना से भरकर कहे गए वचन वास्तव में कभी निरर्थक नहीं होते, ऐसी धर्म की महिमा है। एक अतिशयस्तंभ और भट्टारक की गद्दी यहाँ आज भी सुरक्षित है। जो लोगों की सद्भावनाओं को साकार बनाती है। जिनालय के चारों ओर फैली सुरम्य नीरवता आज भी आत्मसाधना में लीन रहने वाले महान साधकों को आकर्षित करती है। यहाँ अनेक चमत्कार एवं अतिशय हुए हैं जैसे-भाद्रपद कृष्णा ७ गुरुवार, २० अगस्त १९९२ को रात्रि ८ बजे से १ बजे तक अनवरत जल का प्रवाहन, मंदिर में रात्रि में वाद्ययंत्रों, घुंघरुओें की सुमधुर ध्वनि सुनाई देना आदि। माह के प्रथम रविवार को वहाँ बाबा का दरबार लगता है जिसमें अनेकों लोग व्याधिमुक्त हुए हैं। पुराना किला १ किमी. की दूरी पर है। क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ-यात्रियों के ठहरने के लिए क्षेत्र पर ३ हाल एवं १८ कमरे हैं। यात्रियों के अनुरोध पर भोजनशाला में सशुल्क भोजन तैयार होता है।