अथ स्थापना
गीता छंद
हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो।
इस हेतु मुनिगण आपके, पद में नमाते माथ को।।
निज आत्मसुखपीयूष को, आस्वादते वे आप में।
इस हेतु प्रभु आह्वान विधि से, पूजहूँ नत माथ मैं।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अष्टक
गीता छंद
चिरकाल से बहुप्यास लागी, नाथ! अब तक ना बुझी।
इस हेतु जल से तुम चरण युग, जजन की मनसा जगी।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी याञ्चा नहीं।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भवताप शीतल हेतु भगवन्! बहुत का शरणा लिया।
फिर भी न शीतलता मिली, अब गंध से पद पूजिया।।श्री शांति.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
बहुबार मैं जन्मा मरा, अब तक न पाया पार है।
अक्षय सुपद के हेतु अक्षत, से जजूँ तुम सार है।।श्री शांति.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
चंपा चमेली बकुल आदिक, पुष्प ले पूजा करूँ।
मनसिजविजेता तुम जजत, निज आत्मगुणपरिचय करूँ।।श्री शांति.।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
यह भूख व्याधी पिंड लागी, किस विधी मैं छूटहूँ।
पकवान नानाविध लिये, इस हेतु ही तुम पूजहूँ।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत, शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिए, हो फिर कभी याञ्चा नहीं।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
अज्ञानतम दृष्टी हरे, निज ज्ञान होने दे नहीं।
इस हेतु दीपक से जजूँ, मन में उजेला हो सही।।श्री शांति.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ये कर्मबैरी संग लागे, एक क्षण ना छोड़ते।
वर धूप अग्नी संग खेते, दूर से मुख मोड़ते।।श्री शांति.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल मोक्ष की अभिलाष लागी, किस तरह अब पूर्ण हो।
इस हेतु फल से तुम जजूँ, सब विघ्न बैरी चूर्ण हों।।श्री शांति.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अनमोल रत्नत्रय निधी की, मैं करूँ अब याचना।
जजूँ अघ्र्य ले मुझ ‘ज्ञानमति’, कैवल्य हो यह कामना।।श्री शांति.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनघ्र्यपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
शांतिनाथ पदकंज में, चउसंघ शांती हेत।
शांतीधारा मैं करूँ, मिटे सकल भव खेद।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
लाल कमल नीले कमल, पुष्प सुगंधित सार।
जिनपद पुष्पांजलि करूँ, मिले सौख्य भंडार।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
पंचकल्याणक अघ्र्य
रोला छंद
भादों कृष्णा पाख, सप्तमि तिथि शुभ आई।
गर्भ बसे प्रभु आप, सब जन मन हरषाई।।
इन्द्र सुरासुर संघ, उत्सव करते भारी।
हम पूजें धर प्रीति, जिनवर पद सुखकारी।।१।।
left”100px”]] right”100px”]] ॐ ह्रीं भाद्रपदकृष्णासप्तम्यां श्रीशांतिनाथजिनगर्भकल्याणकाय अर्घं निर्वपमाीति स्वाहा।
जन्म लिया प्रभु आप, ज्येष्ठवदी चौदस में।
सुरगिरि पर अभिषेक, किया सभी सुरपति ने।।
शांतिनाथ यह नाम, रखा शांतिकर जग में।
हम नावें निज माथ, जिनवर चरणकमल में।।२।।
left”100px”]] right”100px”]] ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनजन्मकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दीक्षा ली प्रभु आप, ज्येष्ठ वदी चौदस के।
लौकांतिक सुर आय, बहु स्तवन उचरते।।
इंद्र सपरिकर आय, तप कल्याणक करते।
हम पूजें नत माथ, सब दुख संकट हरते।।३।।
left”100px”]] right”100px”]] ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनदीक्षाकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
केवलज्ञान विकास, पौष सुदी दशमी के।
समवसरण में नाथ, राजें अधर कमल पे।।
इंद्र करें बहु भक्ति, बारह सभा बनी हैं।
सभी भव्य जन आय, सुनते दिव्य धुनी हैं।।४।।
100px”left]] 100px”right]] ॐ ह्रीं पौषशुक्लादशम्यां श्रीशांतिनाथजिनकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
प्राप्त किया निर्वाण, ज्येष्ठ वदी चौदश में।
आत्यंतिक सुखशांति, प्राप्त किया उस क्षण में।।
महामहोत्सव इंद्र, करते बहुवैभव से।
हम पूजें तुम पाद, छुटें सभी भवदु:ख से।।५।।
left”100px”]] 100px”right”]] ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनमोक्षकल्याणकाय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
पूर्णाघ्र्य
(दोहा)
विश्वशांतिकर्ता प्रभो! शांतिनाथ भगवान।
पूर्ण अघ्र्य अर्पण करत, पाऊँ सौख्य निधान।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथपंचकल्याणकाय पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।
दोहा
हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।
सम्मेदाचल मोक्ष थल, गाऊँ प्रभु गुणगान।।१।।
स्रग्विणी छंद
मैं नमूँ मैं नमूँ शांति तीर्थेश को।
नाथ मेरे हरो सर्व भवक्लेश को।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।२।।
विश्वसेन प्रिया मात ऐरावती।
वर्ष इक लाख आयू कनक वर्ण ही।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।३।।
देह चालीस धनु चिन्ह मृग ख्यात है।
जन्म भू हस्तिनापूरि विख्यात है।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।४।।
नाथ के समवसृति में सभा मध्य ये।
साधु बासठ सहस मूलगुणधारि थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।५।।
चक्र आयुध प्रमुख गणपती श्रेष्ठ थे।
ऋद्धि संयुक्त छत्तीस मुनिज्येष्ठ थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।६।।
आर्यिका हरीषेणा प्रधाना तथा।
साठ हज्जार त्रय सौ सभी आर्यिका।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।७।।
दोय लक्षा सुश्रावक प्रभू भाक्तिका।
चार लक्षा कहीं श्राविका सद्व्रता।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।८।।
सौख्य हेतू भटकता फिरा विश्व में।
किंतु पाई न साता कहीं रंच मैं।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।९।।
नाथ ऐसी कृपा कीजिए भक्त फेर
शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति होवे अबे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।१०।।
स्वात्म पर का मुझे भेद विज्ञान हो।
पूर्ण चारित्र धारूँ जो निष्काम हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।११।।
पूर्ण शांती जहाँ पे वहीं वास हो।
भक्त ये आपका आपके पास हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।१२।।
दोहा
तीर्थंकर चक्री मदन, तीनों पद के ईश।
पूर्ण ‘‘ज्ञानमति’’ हेतु मैं, नमूँ नमूँ नतशीश।।१३।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
दोहा
शांतिनाथ की अर्चना, हरे सकल दु:ख दोष।
सर्व अमंगल दूर कर, भरे स्वात्मसुखतोष।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।