Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
श्री शांतिसागर जी महाराज की पूजन
August 19, 2020
पूजायें
jambudweep
श्री शांतिसागर जी महाराज की पूजन
तर्ज – झुमका गिरा रे ….
पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर की, पूजन करो रे-२।
भारतवसुन्धरा ने जब, मुनियों के दर्श नहिं पाये ।
सदी बीसवीं में तब श्री, चारित्रचक्रवर्ती आए।।
दक्षिण भारत भोजग्राम ने, एक लाल को जन्म दिया ।
उसने ही सबसे पहले, मुनिपरम्परा जीवन्त किया ।।
मुनिपरम्परा जीवन्त किया ।।
पूजन करो रे, श्रीशान्तिसिन्धु आचार्य प्रवर की, पूजन करो रे-।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीश्रीशान्तिसागरआचार्यवर्य ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीश्रीशान्तिसागरआचार्यवर्य ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीश्रीशान्तिसागरआचार्यवर्य ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणम्।
”अष्टक”
(तर्ज- तीरथ करने चली सती…….)
दीक्षा लेकर बने शान्तिसागर , निज कर्मकलंक जलाने को।
कैसे होते हैं मुनिवर, यह बतला दिया जमाने को।।बतला…..
सागर सम गंभीर तथा, गंगा जल सम शीतल वाणी।
जीवन में साकार किया, प्रभु कुन्दकुन्द की जिनवाणी।।
ऐसे गुरु के पद में आए, हम जलधार चढ़ाने को, हम जलधार चढ़ाने को।।
दीक्षा लेकर….
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चन्दन का शीतलता गुण,तुम आगे मानो व्यर्थ हुआ।
विषधर का विष भी तुम पर,चढ़ भक्ति भाव कर उतर गया ।।
हम भी निज शीतलता हेतू,लाए गंध चढ़ाने को।
लाए गंध चढ़ाने को।।
दीक्षा लेकर….
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
विषयवासना के बंधन, जग को निज वश में करते हैं।
तुम जैसे मुनिगण तप करके, मोक्षमार्ग को वरते हैं।|
शुभ्र धवल अक्षत ले आए, तुम पद पुंज चढ़ाने को।
तुम पद पुंज चढ़ाने को।। दीक्षा लेकर….
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बालविवाह हुआ फिर भी, ब्रह्मचारी जीवन बीता था।
सत्यवती माँ ने अपनी, ममता से तुमको सींचा था।।
कामदेव वश करने हेतू, आए पुष्प चढ़ाने को, आए पुष्प चढ़ाने को।
दीक्षा लेकर…..
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति
स्वाहा।
पैंतिस वर्षों तक दीक्षित, जीवन में घोर तपस्या की।
साढ़े पच्चिस वर्ष तुम्हारे, उपवासों की संख्या थी।।
मिले हमें भी तपशक्ती, आए नैवेद्य चढ़ाने को।
आए नैवद्य चढ़ाने को।।
दीक्षा लेकर…..
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दक्षिण से उत्तर में आकर, ज्ञान का दीप जलाया था।
नग्न दिगम्बर वेष मुनी का, सब जग को दिखलाया था।।
घृत दीपक ले हम भी आए, मोह अन्धेर नशाने को।
मोह अन्धेर नशाने को।।
दीक्षा लेकर……
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्मों को कृश करने वाले, वीर पुरुष कहलाते हैं।
तुम जैसा सुसमाधिमरण, बिरले साधू कर पाते हैं।|
धूप जलाकर चाह रहे हम, कर्म समूह जलाने को।
कर्म समूह जलाने को।।
दीक्षा लेकर…..
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
उत्तम फल की चाह में तुमने, नग्न दिगम्बर व्रत धारा।
जिनवर के लघुनन्दन बनकर, मोक्षमार्ग को साकारा।।
फल का थाल चढ़ाने आए, तुम जैसा फल पाने को।
तुम जैसा फल पाने को।। दीक्षा लेकर…..
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
साधु अवस्था धारण कर, क्रम-क्रम से श्रेणी बढ़ती है ।
कर्म निर्जरा के बल पर, अरिहन्त अवस्था मिलती है ।।
गुरु चरणों में इसीलिए हम, आए अर्घ्य चढ़ाने को।
आए अर्घ चढ़ाने को।।
दीक्षा लेकर……
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय अनर्घपदप्राप्तये अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
”शेर छन्द”
सागर जहाँ गंभीरता में सुप्रसिद्ध है |
गुरु शान्तिसिन्धु के समक्ष वह भी तुच्छ है ।।
जहाँ शांति का जल सर्वदा कल्लोल करे है ।
उन गुरु चरण में हम भी शांतिधार करे हैं।।१।।
शान्तये शान्तिधारा।
स्याद्वाद के पुष्पों से तव उद्यान खिल रहा।
तुमसे ही आज मुनिवरों का दर्श मिल रहा।।
उपकार तुम्हारा न धरा भूल सकेगी।
खुद पुष्प अंजली से पुष्प वृष्टि करेगी।।२।।
दिव्य पुष्पांजलिः।
जयमाला
तर्ज-बाबुल की……
गुरु शान्तिसिन्धु की पूजन से, आतम सुख का भण्डार मिले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।। टेक.।।
आषाढ़ असित षष्ठी इसवी सन्, अट्ठारह सौ बहत्तर में।
पितु भीमगौंड़ माँ सत्यवती से, जन्म लिया इक बालक ने।।
शुभ नाम सातगौंडा पाया, तब भोज ग्राम के भाग्य खिले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।१।।
ईस्वी सन् उन्निस सौ चौदह , शुक्ला तेरस शुभ ज्येष्ठ तिथी।
देवेन्द्रकीर्ति मुनिवर से ‘‘उत्तूर’’, में क्षुल्लक व्रत दीक्षा ली।।
निज पर कल्याण भावना ले, गुरु शांतिसिन्धु शिवद्वार चले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।२।।
सन् उन्निस सौ बीस में फिर, देवेन्द्रकीर्ति मुनिवर से ही।
यरनाल पंचकल्याणक मे, श्रीशान्तिसिन्ध मुनि बने वहीं।।
उस फाल्गुन शुक्ला चौदश को, उनके अन्तर्मन द्वार खुले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।३।।
अट्ठाइस मूलगुणों में रत, मुनिवर की ख्याती फैल रही।
आचार्य बने वे सर्वप्रथम, समडोली धरा पवित्र हुई।।
गुरुओं के गुरु वे बने स्वयं, निज में जब मूलाचार पले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।४।।
तव कृपा प्रसाद से ताम्रपट्ट पर, धवल ग्रन्थ उत्कीर्ण हुआ।
तव चरणों में नास्तिक जीवों का, अहंकार निर्जीर्ण हुआ।।
मुनि श्रावक के व्रत ले लेकर, तुम वृक्ष में पुष्प हजार खिले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।५।।
सन् पचपन कुंथलगिरि पर द्वादश,वर्ष सल्लेखना पूर्ण किया ।
भादों सुदि दुतिया को नश्वर, काया को तुमने त्याग दिया ।।
लाखों जनता के नेत्रों से, तब अश्रूधार अपार चले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।६।।
युगपुरुष! तेरे उपकारों का, बदला न चुकाया जा सकता।
तेरी श्रेणी में और किसी, साधू का त्याग न आ सकता।।
तू तो तुझमें ही समा गया, बस आज तेरी जयकार मिले।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।७।।
चारित्रचक्रवर्ती गुरु की, जयमाल गूंथ कर लाए हैं।
बीसवीं सदी के प्रथम सूरि, के चरण चढ़ाने आए हैं।
‘‘चन्दनामती’’ मुझको भी तुम सम, गुण के कुछ संस्कार मिलें।
गुरुवर के दर्शन वन्दन से, शाश्वत सुखशान्ति बहार मिले
।।८।।
ॐ ह्रीं चारित्रचक्रवर्तीआचार्यश्रीशान्तिसागराय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, पुष्पांजलि:।
शांतिसिन्धु आचार्य की, पूजन यह सुखकार।
जो करते श्रद्धा सहित, होते भव से पार।।
।। इत्याशीर्वाद:, पुष्पांजलि: ।।
Previous post
ज्येष्ठ जिनवर पूजा
Next post
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा
error:
Content is protected !!