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तर्ज – झुमका गिरा रे ….


चन्दन का शीतलता गुण,तुम आगे मानो व्यर्थ हुआ।
विषयवासना के बंधन, जग को निज वश में करते हैं।
बालविवाह हुआ फिर भी, ब्रह्मचारी जीवन बीता था।
पैंतिस वर्षों तक दीक्षित, जीवन में घोर तपस्या की।
दक्षिण से उत्तर में आकर, ज्ञान का दीप जलाया था।
कर्मों को कृश करने वाले, वीर पुरुष कहलाते हैं।
उत्तम फल की चाह में तुमने, नग्न दिगम्बर व्रत धारा।
साधु अवस्था धारण कर, क्रम-क्रम से श्रेणी बढ़ती है ।