सब इंद्रकों की चारों दिशाओं में श्रेणीबद्ध और विदिशाओं से प्रकीर्णक विमान हैं। ऋतु नामक प्रथम इंद्रक विमान की चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में ६२ श्रेणीबद्ध विमान हैं। इसके आगे आदित्य नामक ६० वें इंद्रक पर्वत शेष इंद्रकों की प्रत्येक दिशा में एक-एक कम होते गये हैं। अंतिम सर्वार्थसिद्धि इंद्रक के चारों दिशाओं में १-१ श्रेणीबद्ध विमान विजय आदि नाम के हैं।
प्रथम ऋतु इंद्रक के चारों दिशाओं के ६२-६२ मिलकर ६२²४·२४८ विमान हुए। इस प्रकार आगे-आगे एक-एक इंद्रक संबंधी श्रेणीबद्ध विमानों में ४-४ घटते गये हैं। ऐसे ही पहले स्वर्ग के ३१ इंद्रकों की संख्या बना लीजिए।