जम्बूद्वीप में भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत ये सात क्षेत्र हैं। इनमें से भरत और ऐरावत इन दो क्षेत्रों के आर्यखंड में ही षट्काल परिवर्तन होता है। अन्यत्र विदेह आदि क्षेत्रों में नहीं। वहाँ पर जिस क्षेत्र में जो व्यवस्था है, सो ही रहती है। यह कथन त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति, तत्त्वार्थसूत्र आदि ग्रंथों में प्रतिपादित है।
आज भी हम देखते हैं कि चालीस वर्ष पूर्व के मनुष्यों में जो शक्ति, साहस आदि था, वह उनके पुत्र-पौत्र आदि में घटता जा रहा है अत: यह निश्चित हो जाता है कि हजारों, लाखों वर्ष पूर्व हम लोगों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली, सुखी, साहसी और विशेष गुणवान् मनुष्य होते थे तथा आज से सौ, दौ वर्ष बाद हम लोगों की अपेक्षा शक्तिहीन, दु:खी आदि मनुष्य होवेंगे।
विदेह क्षेत्र की कर्मभूमि में आज भी ऊँची-ऊँची अवगाहना, अधिक आयु और अधिक सुख आदि गुणों से सहित मनुष्य होते हैं और यह बात जैनाचार्यों ने लिखी है। जैसे कि यहाँ चतुर्थकाल में होते थे।
यहाँ पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय काल में जो भोगभूमि रचना कही है। स्थाईरूप से वह रचना आज भी जम्बूद्वीप के हैमवत आदि क्षेत्रों में है। हालांकि यहाँ से अतिदूर होने से हम लोगों की दृष्टि से परे है, फिर भी बहुत सी चीजें हमें नहीं दिखने पर भी मानना तो पड़ता ही है। जैसे हमारी बीती हुई कई पीढ़ी के बुजुर्गों को तथा आगे आने वाली अनेक पीढ़ी को हम देख नहीं पाते हैं, फिर भी वे थीं और आगे होंगी, यह मानना ही पड़ता है।
ढाई द्वीप संबंधी मनुष्यलोक में पाँच भरत, पाँच ऐरावत ये दश क्षेत्र हैं। इन दशों के आर्यखण्ड में अरहटघटिका के समान छह काल परिवर्तन चलता ही है।
आज यहाँ बहुत कुछ परिवर्तन देखने में मिलता है, उसका कारण यही है कि यहाँ की भूमि एक योजन ४००० मील करीब ऊँची उठ गई है। इसलिए कहीं अधिक ऊँची, कहीं अधिक नीची हो जाने से यह परिवर्तन संभावित है, ऐसा श्लोकवार्तिक की टीका में श्री पंडित माणिकचंद्र न्यायाचार्य ने लिखा है। इसी प्रकार सभी आर्यखण्डों में उपसमुद्र भी माने गये हैं२। आदिपुराण में भी यहाँ आर्यखण्ड में उपसमुद्र का वर्णन आया है। इन सर्व प्रकरणों से यह सिद्ध होता है कि इस प्रथम जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में ही आज का उपलब्ध सारा विश्व है, इसमें संदेह नहीं करना चाहिए।