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बात जब संक्रमण नियंत्रण की आती है तो चेतावनियां अक्सर बेअसर रह जाती हैं।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ३ के अनुसार भारत में ४६ फीसदी बच्चे कम वचन की समस्या से ग्रस्त हैं, ३८ प्रतिशत की वृद्धि अवरूद्ध है और ७० प्रतिशत रक्ताल्पता से पीड़ित हैं। वहीं पेरू में हुए एक शोध में यह भी बताया गया है कि बचपन में कुपोषण और आंत्र संक्रमण के शिकार रहे बच्चों का आईक्यू भी आगे चलकर कम हो सकता है। जाहिर सी बात है बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवियों के हमले से बचाव के प्रयासों को कमतर करके आंकना देश के भविष्य पर भारी पड़ सकता है। पेरू में बच्चों पर हुए एक अनुदैध्र्य अध्ययन में उनकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और अन्य कारकों को सम्मिलित करते हुए निष्कर्ष निकाला गया है कि बचपन में कुपोषण और जठरांत्र संक्रमण बाद में मस्तिष्क संबंधी गतिविधियों को मंद कर सकता है। डायरिया से संबंधित संक्रमण आगे चलकर तपेदिक और निमोनिया जैसे रोगों की मेजबानी करते हैं। कोलकाता में हैजा और आंत्र रोग के राष्ट्रीय संस्थान के रिसर्चर साइंटिस्ट डॉ. जयदीप मजूमदार के अनुसार एक से ५ वर्ष तक के बच्चों में पेट से संबंधित संक्रमण , गंभीर निर्जलीकरण और खराब संज्ञानात्मक विकास का कारण बनता है। दूसरे शब्दों में पेट का संक्रमण सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डाल सकता है। स्वच्छता के सामान्य नियमों को अपनाने में लापरवाही ही संक्रमण का सबसे बड़ा कारण है। २००८ में ३० शोधार्थियों के एक साझा अध्ययन में बताया गया था कि हाथ धोने जैसी स्वच्छता को अपना कर ही गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल जैसी बीमारी ३१ फीसदी कम हो गई थी जबकि हाल में अमरीकी अर्नल जर्नल ऑफ पब्लिक हैल्थ ने रिपोर्ट की है कि साबुन से हाथ धोने की आदत डालने से ५ वर्ष से कम उम्र के बच्चों में दस्त रोग ४८ फीसदी कम हो गया। जाहिर सी बात है कि बच्चों में सफाई, स्वच्छता से जुड़ी आदतें विकसित करके संक्रमण के खतरे को टाला जा सकता है और सबसे अधिक लापरवाही इसी तरफ देखने को मिलती है। चिकित्सा विशेषज्ञों की नजर में साबुन से हाथ धोना , पानी को शुद्ध करके पीना, खाने—पीने की वस्तुओं को ठीक से साफ या उबाल करके खाना, खुले में खाने से बचना जैसी छोटी छोटी स्वच्छता की आदतें संक्रमण के जोखिम को टालने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकती हैं।
जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण पर देश के २९ राज्यों से जानकारी मुहैया करवाने वाले एनएफएचएस—३ के आंकडों से पता चलता है कि भारत को संक्रमण नियंत्रण करने की आवश्यकता दूसरे देशों के मुकाबले कहीं अधिक है। संक्रमण के लक्षण अधिकतर समान हैं डायरिया, बुखार या बिना बुखार का सिरदर्द , उल्टी और पेट में ऐंठन, दस्त वगैरह। हालांकि डॉक्सीसाइक्लीन और पेनिसिलिन जैसे एंटीबायटिक बैक्टीरिया के खिलाफ प्रभावी है लेकिन अगर बीमारी का कारण वायरस है तो आपको संक्रमण के पूरी तरह उभरने का इंतजार करना होता है। दूसरे शब्दों में संक्रमण के लक्षणों की उभरने के बाद पहचान और निदान से ज्यादा अच्छा रहेगा कि पहले से सुरक्षा के जतन किए जाएं।
गर्मी का मौसम अनगिनत बैक्टीरिया, वायरस व परजीवियों के पनपने के लिए सबसे सही मौका होता है। खाने पीने की चीजों से लेकर हर कहीं इनका प्रकोप देखने को मिलता है। अगर आपको यकीन है कि आप जो पानी पी रहे हैं, वह सुरक्षित है तो समझिए कि आपने आधी लड़ाई जीत ली है। दस्त, पेचिश, हेपेटाइटिस ए और सी, टायफाइड जैसी पेट की बीमारियों के जोखिम को कम करने में सुरक्षित पानी रामबाण है। पानी को उबालकर सुरक्षित किया जा सकता है, वही सब्जियां भी न केवल धोकर बल्कि ठीक से उबालकर कीटाणु रहित की जानी चाहिए। अगर किसी ने आपकी खाद्य सामग्री पर गंदे हाथ लगा दिए हैं,तो भी आप संक्रमण के जोखिम में जा सकते हैं। बेहतर होगा कि खाने—पीने के मामले में भरपूर सावधानी बरतें। हाथों की सफाई संक्रमण के खतरों को काफी हद तक टाल देती है। साबुन और पानी से हाथ धोने से बैक्टीरिया, वायरस और परजीवियों को ठहरने का मौका नहीं मिलता और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है।
कब कब धोएं हाथ : खाना पकाने और खाने से पहले, संक्रमित चीजों को पकड़ने से पहले, घाव की मरहम—पट्टी से पहले और बाद में, कच्ची खाद्य सामग्री पकड़ने के बाद, टायलेट उपयोग करने के बाद, बच्चे की नैपी बदलने के बाद, जानवर और उनकी चीजें छूने के बाद, छींकने जैसी गतिविधि के बाद, टिश्यू, डस्टबीन जैसी चीज छूने के बाद, बाहर से घर आने के बाद साझा चीजें छूने के बाद।
बैक्टीरिया: एंटेरोपेथोजेनिक ई.कोल, एंटेरोएग्रिगेटिब ई.कोल, शिगेला डिसटेरिया, साल्मोनेला टाइफी, विब्रिओ कॉलरिक, कैम्फीलोबेक्टर जेजुनी, स्टेफीलोकोकस एरूअस, येरसिनीया एंटेरोकोलिटिका, क्लोसट्रिडियम डिफिक्ली। प्रोटोजोआ: गियारडिया लाम्बलिया, एंटामोएबा हिस्टोलायटिका, व्रेप्टोस्पोरिडियम पारवीयूम, साइक्लोस्पोरा कायेटानेनसिस। वायरस: रोटावायरस, नोर्वोवायरस, एडेनोवायरस, एस्ट्रोवायरस, बोकावायरस, टोरोवायरस, कोरोनावायरस। बॉम्र्स : एस्कारिस लूम्ब्रीकोइडेस, एंठेरोबियस, एंटेरोबियस वर्मीक्यूलेरिस, ट्रिक्यूरिस ट्रिक्यूरा,टायेनिया सागिनाटा, हुकबॉम्र्स।