प्रथम स्थान वह है जो एक (इकाई) कहलाता है, दूसरा स्थान दश (दहाई), तीसरा स्थान शत (सैकड़ा) और चौथा सहस्र (हजार) कहलाता है।।६३।। पाँचवा दस सहस्र (दस हजार), छठवाँ लक्ष (लाख), सातवाँ दशलक्ष (दस लाख) और आठवाँ कोटि (करोड़) कहलाता है।।६४।। नौवाँ दशकोटि (दस करोड़) और दसवाँ शतकोटि (सौ करोड़) कहलाता है। ग्यारहवाँ स्थान अरबुद (अरब) और बारहवाँ न्यर्बुद (दस अरब) कहलाता है।।६५।। तेरहवाँ स्थान खर्व (खरब) और चौदहवाँ महाखर्व (दस खरब) कहलाता है। इसी तरह, पंद्रहवाँ पद्म और सोलहवाँ महापद्म कहलाता है।।६६।। पुनः सत्रहवाँ क्षोणी, अठारहवाँ महाक्षोणी कहलाता है। उन्नीसवाँ स्थान शङ्ख और बीसवाँ महाशङ्ख कहलाता है।।६७।। इक्कीसवाँ स्थान क्षित्या, बाईसवाँ महाक्षित्या कहलाता है। तेईसवाँ क्षोभ और चौबीसवाँ महाक्षोभ कहलाता है।।६८।। तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में संख्यात की संख्या को ९० शून्य अंक प्रमाण तक माना है-
सरओ हेमंता वि य णामाइं ताण जाणिज्जं।।२९०।। बेण्णि जुगा दस वरिसा ते दसगुणिदा हवेदि वाससदं।
एदस्सिं दसगुणिदे वाससहस्सं वियाणेहि।।२९१।।
समय, आवलि, उच्छ्वास, प्राण और स्तोक, इत्यादिक भेदों को वीतराग भगवान ने व्यवहार काल के नाम से निर्दिष्ट किया है।।२८४।। पुद्गलपरमाणु का निकट में स्थित आकाशप्रदेश के अतिक्रमणप्रमाण जो अविभागी काल है वही ‘समय’ नाम से प्रसिद्ध है।।२८५।। असंख्यात समयों की आवलि और इसी प्रकार संख्यात आवलियों के समूहरूप उच्छ्वास होता है। यही उच्छ्वासकाल ‘प्राण’ इस नाम से प्रसिद्ध है।।२८६।। सात उच्छ्वासों का एक स्तोक, और सात स्तोकों का एक लव जानना चाहिये। सतत्तर के आधे अर्थात् साढ़े अड़तीस लवों की एक नाली और दो नालियों का एक मुहूर्त होता है।।२८७।। ७ उ. · १ स्तोक। ७ स्तोक · १ लव। ३८-१/२ लव · १ नाली। २ नाली · १ मुहूर्त। समय कम एक मुहूर्त को भिन्नमुहूर्त कहते हैं। तीस मुहूर्त का एक दिन और पन्द्रह दिनों का एक पक्ष होता है।।२८८।। दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का वर्ष, और पांच वर्षों का एक युग होता है।।२८९।। माघ मास से लेकर जो ऋतुएँ होती हैं उनके नाम शिशिर, बसन्त, निदाघ (ग्रीष्म), प्रावृष (वर्षा), शरद और हेमन्त, इस प्रकार जानना चाहिये।।२९०।। दो युगों के दश वर्ष होते हैं ; इन दश वर्षों को दस से गुणा करने पर शतवर्ष और शतवर्ष को दश से गुणा करने पर सहस्रवर्ष जानना चाहिये।।२९१।।
सहस्रवर्ष को दश से गुणा करने पर दश सहस्रवर्ष, और इनको भी दश से गुणा करने पर लक्षवर्ष जानना चाहिये।।२९२।। लक्षवर्ष को चौरासी से गुणा करने पर एक ‘पूर्वाङ्ग’, और इस पूर्वाङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर एक ‘पूर्व’ का प्रमाण समझना चाहिये।।२९३।। पूर्व को चौरासी से गुणा करने पर एक ‘नियुतांग’ होता है और इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर एक ‘नियुत’ का प्रमाण कहा गया है।।२९४।। चौरासी से गुणित नियुतप्रमाण एक ‘कुमुदांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘कुमुद’ नाम कहा जानना चाहिए।।२९५।। चौरासी से गुणित कुमुदप्रमाण एक ‘पद्मांग’ होता है। इसको चौरासी लाख वर्षों से गुणा करने पर ‘पद्म’ नाम कहा गया है।।२९६।। चौरासी से गुणित पद्मप्रमाण एक ‘नलिनांग’ होता है। इसको चौरासी लाख वर्षो से गुणा करने पर ‘नलिन’ यह नाम जानना चाहिये।।२९७।। चौरासी से गुणित नलिनप्रमाण एक ‘कमलांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘कमल’ इस नाम से कहा गया है।।२९८।। कमल से चौरासी गुणा ‘त्रुटितांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘त्रुटित’ नाम समझना चाहिये।।२९९।। चौरासी से गुणित त्रुटितप्रमाण एक ‘अटटांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणित होने पर ‘अटट’ इस नाम से कहा गया है।।३००।।
अण्णोण्णहदे लद्धं अचलप्पं होदि णउदिसुण्णंगं।।३०८।। ८४। ३१। ९०। एवं एसो कालो संखेज्जो वच्छराण गणणाए।
उक्कस्सं संखेज्जं जावं तावं पवत्तेओ।।३०९।।
चौरासी से गुणित अटटप्रमाण एक ‘अममांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘अमम’ नाम से निर्दिष्ट किया गया है।।३०१।। चौरासी से गुणित अममप्रमाण एक ‘हाहांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘हाहा’ नामक कहा गया है।।३०२।। हाहाको चौरासी से गुणा करने पर एक ‘हूहांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘हूहू’ नाम काल का प्रमाण समझना चाहिये।।३०३।। चौरासी से गुणित हूहू का एक ‘लतांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘लता’ नामक प्रमाण उत्पन्न होता है।।३०४।। चौरासी से गुणित लताप्रमाण एक ‘महालतांग’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘महालता’ नाम कहा गया है।।३०५।। चौरासी लाख से गुणित महालताप्रमाण एक ‘श्रीकल्प’ होता है। इसको चौरासी लाख से गुणा करने पर ‘हस्तप्रहेलित’ नामक प्रमाण उत्पन्न होता है।।३०६।। चौरासी लाख वर्षों से गुणित हस्तप्रहेलितप्रमाण एक ‘अचलात्म’ नाम का काल होता है, ऐसा कालाणुओं के जानकार अर्थात् सर्वज्ञ भगवान् ने निर्दिष्ट किया है।।३०७।। इकतीस स्थानों में पृथव्-पृथव् चौरासी को रखकर परस्पर गुणा करने पर ‘अचलात्म’ का प्रमाण प्राप्त होता है, जो नब्बै शून्यांकरूप है।।३०८।। इस प्रकार यह संख्यात काल वर्षों की गणना द्वारा उत्कृष्ट संख्यात जब तक प्राप्त हो तब तक ले जाना चाहिये।।३०९।। आदिपुराण में मनुओं की आयु अमम आदि की संख्या द्वारा बतलाई है देखिए—
इन मनुओं की आयु ऊपर अमम आदिकी संख्याद्वारा बतलायी गयी है इसलिए अब उनका निश्चय करने के लिए उनकी परिभाषाओं का निरूपण करते हें।।२१७।। चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाङ्ग होता है। चौरासी लाख का वर्ग करने अर्थात् परस्पर गुणा करने से जो संख्या आती है उसे पूर्व कहते हैं (८४००००० ² ८४००००० · ७०५६००००००००००) इस संख्या में एक करोड़ का गुणा करने से जो लब्ध आवे उतना एक पूर्व कोटि कहलाता है। पूर्व की संख्या में चौरासी का गुणा करने पर जो लब्ध हो उसे पर्वाङ्ग कहते हैं तथा पर्वाङ्ग में पूर्वाङ्ग अर्थात् चौरासी लाख का गुणा करने से पूर्व कहलाता है।।२१८-२१९।। इसके आगे जो नयुताङ्ग नयुत आदि संख्याएँ कही हैं उनके लिए भी क्रम से यही गुणाकार करना चाहिए।
भावार्थ — पर्व को चारौसी से गुणा करने पर नयुताङ्ग, नयुताङ्गको चौरासी लाख से गुणा करने पर नयुत; नयुत को चौरासी से गुणा करने पर कुमुदाङ्ग, कुमुदाङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर कुमुद, कुमुद को चौरासी से गुणा करने पर पद्माङ्ग और पद्माङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर पद्म, पद्म को चौरासी से गुणा करने पर नलिनाङ्ग और नलिनाङ्ग को चौरासी लाख से गुणा करने पर नलिन होता है। इसी प्रकार गुणा करने पर आगे की संख्याओं का प्रमाण निकलता है।।२२०।। अब क्रम से उन संख्या के भेदों के नाम कहे जाते हैं जो कि अनादिनिधन जैनागम में रूढ़ हैं।।२२१।। पूर्वाङ्ग, पूर्व, पर्वाङ्ग, पर्व, नयुताङ्ग, नयुत, कुमुदाङ्ग, कुमुद, पद्माङ्ग, पद्म, नलिनाङ्ग, नलिन, कमलाङ्ग, कमल, तुट्यङ्ग, तुटिक, अटटाङ्ग, अटट, अममाङ्ग, अमम, हाहाङ्ग, हाहा, हूह्वङ्ग, हू हू, लतांग, लता, महालताङ्ग, महालता, शिरः प्रकम्पित, हस्तप्रहेलित और अचल ये सब उक्त संख्या के नाम हैं जो कि कालद्रव्य की पर्याय हैं। यह सब संख्येय हैं—संख्यात के भेद हैं इसके आगे का संख्या से रहित है—असंख्यात है।।२२२-२२७।।