पूजा में आया चउविधसंघ, उसकी विधिवत् पूजा कीजे।
पिच्छी व कमंडलु शास्त्र तथा, वस्त्रादि यथायोग्य दीजे।।
पूजन कर्ता कारयिता को, धन वस्त्रों से तर्पित कीजे।
सब जन मन को आनन्दित कर, पूजन का उत्तम फल लीजे।।१।।
यह विधान जो विधि सहित, करें करावें भव्य।
अनुमति दें भी धन्य वे, गुणनंदी हों सत्य।।२।।
ऋषिमंडलपूजा रची, श्रीगुणनंदिमुनीन्द्र।
इक सौ तेरासी प्रमित, हैं श्लोक गुणलीन।।३।।
निर्मल चरित्र गुणशील पात्र, श्रीमान् ज्ञानभूषण मुनिवर।
उनका मैं मुनि गुणनंदि शिष्य, अर्हत् शासन का भक्त प्रवर।।
निजमन में वीरप्रभू को रख, उनके पद निकट बैठकर ही।
श्री ऋषिमंडल पूजन विधान, गुणनंदि मुनी ने रचना की।।४।।
इति ऋषिमंडल पूजा