सच्चे और अच्छे संत पानी भरे बादल के समान होते हैं । उन्हें क्या लेना—देना, भूमि बंजर है या उपजाऊ। उनका उपकार सभी पर समान रूप से होता है। न जाने कब कहां कृपा हो जाये और बरस पड़ें,सच्चे संतों का जीवन सूरज के समान होता है, जिसकी किरण गरीब और अमीर दोनों घरों पर समान रूप से उजाला करती है। संतों का जीवन बहती हुई सरिता के समान होता है, जिसके जल से गरीब और अमीर दोनों प्यास बुझाते हैं। संतों के ज्ञान की ज्योति संस्कृति दर्शन को सर्वत्र ज्योतिर्मयी कर देती है। पूरनमासी के चन्द्रमा से झरता अमृत सभी के जीवन संताप को हर के शीतल कर देता है। स्वाध्याय और तप करते हुए वे धरती की ओर बेखबर नहीं रहते अपने आशीर्वाद से भक्तों का कल्याण भी अवश्य करते हैं। धर्म की नींव को सुरक्षित एवं समीचीन बनाकर धर्म की नींव को सुरक्षित एवं मजबूत बनाये रखते हैं। नींव के साथ—साथ कंगूरों का सम्मान भी आवश्यक है। संत पुराने फूलों के साथ—साथ नये फूलों से भी जीवन को महकाते हैं। नैतिकता के पथ पर चलते हुए अपने जीवन को अद्भुत एवं विलक्षण बनाते हैं। अपने वात्सल्य एवं प्रेम से समस्त वायु मण्डल के प्रदेश अपने आभामण्डल से अनुरंजित कर देते हैं। जीवन के क्षण—क्षण को अपनी साधना से पावन बनाकर स्वपर कल्याण में सतत् निमग्न रहते हैं।
गुरु जलते हुए दीपक के समान हैं और बुझे हुए दीपक को आलोकित करने में समर्थ होते हैं। पारिवारिक, आर्थिक एवं व्यक्तिगत समस्याओं से घिरा मानव चरणों में जाकर कुछ ही क्षणों में वास्तविक शांति का अनुभव करता है। जिस प्रकार हर पर्वत पर मणि नहीं होती है, हर हाथी के सिर पर मोती नहीं होता, हर जंगल में चंदन नहीं होता है, वैसे ही सच्चे गुरु हर स्थान पर नहीं होते हैं। वैसे देखा जाय तो शिष्यों की संख्या अधिक एवं गुरु की संख्या कम ही होती है। किन्तु ‘‘लोभी गुरू, लालची चेला, होरा नरक में ठेलम ठेला’’। वे गुरु स्वयं डूबते हैं और अपने भक्तों को भी साथ ले डूबते हैं। पानी पीना छानकर और गुरु बनाना जानकर। जो हमें सच्ची राह दिखा सके, जो लालच में नहीं बल्कि नि:स्वार्थ सही दिशा दे, वह गुरु है। शिष्यत्व को पूर्ण ग्रहण करें और सेवा संगति जितनी अधिक प्राप्त हो उतना ही अच्छा है। ‘