बसंत ऋतु आते ही धरा पीली दुल्हन के समान सज उठती है, अमुआ की डाल पर काली कोयलिया ‘कुहू—कुहू’ कर मधुर गान सुनाने लगती है। पपीहे की पीहू—पीहू मानव हृदय में प्रेम का संचार करती है। कहते हैं बसंत पंचमी माँ सरस्वती पूजा की परम्परा है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार बसंतपंचमी पर गुरु और शुक्र तारे का एक साथ उदय होने से यह दिवस विवाह हेतु श्रेष्ठ मुहूर्त बताया गया है। जैसा कि सर्वविदित है मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत बसंतपंचमी पर स्थान—स्थान पर सर्वधर्म सामूहिक विवाह समारोह सम्पन्न हुए। आदिकाल से ही समाजों में कन्यादान की प्रथा विद्यमान है और हिन्दू शास्त्रानुसार कन्या का दान स्वर्ग का द्वार खोलता है। कन्यादान क्या है ? कन्यादान का वर्तमान स्वरूप किस प्रकार विकृत हुआ है ? कन्यादान के दुष्परिणाम कितने घातक हैं ? यह सब किसी से छिपा नहीं है। एक माता—पिता अपने कलेजे के टुकड़े को सुयोग्य हाथों में विश्वसनीय लोगों की सुरक्षा में हर्षोल्लासपूर्वक समारोह द्वारा पंचों की साक्षी में जब विधि विधान, परम्परानुसार सौंपता है तो वह विवाह की रस्म होती है और उसमें कन्यादान करके माता—पिता अपने जीवन को धन्य मानते हैं। यह परम्परा मात्र एक समाज में नहीं वरन हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, समस्त भारतीय परिवारों में मान्य है और सामाजिक गृहस्थ जीवन का आधार है। दान स्वपर कल्याण हेतु दिया जाता है और कन्यादान मानवीय संवेदना का दान है जिसे देने वाले बाबुल की अंखियों में प्रेम का नीर बहता है और जिसे स्वीकार करने वाले वर की आंखों में सुनहरे भविष्य के स्वप्न तैरते हैं। आज कन्यादान का आकलन भाव से नहीं अर्थ से किया जाता है और कन्यादान का नाम बदलकर दहेज हो गया है। बढ़ती हुई भौतिक लिप्सायें, घटती हुई नैतिकता, पनप रही संस्कारहीनता, लुप्त होती जा रही मानवीयता के कारण—
लाखों घर बर्बाद हुए हैं इस दहेज की बोली में। अर्थी चढ़ी हजारों कन्या, बैठ न पाईं डोली में।
यहाँ पर हम विवाह एवं कन्यादान को कुछ बिन्दुओं में स्पष्ट करना चाहेंगे—
१.कन्या एक ऐसा फूल है जो बाबुल के घर में खिलता है किन्तु पति के घर को महकाता है।
२.कन्या एक ऐसी इत्र की शीशी है, जिसके सम्पर्क में आने वाला स्वयं महकने लगता है।
३. कन्यादान पदार्थ का दान नहीं, संवेदना, भावना और प्राण—प्रण से जुड़ने का दान है।
४. कन्या दिल का टुकड़ा है और नोट कागज का टुकड़ा। नोट की क्षति होने से उतना दु:ख नहीं होता जितना कन्या को कष्ट होने पर होता है।
५.विदाई एक पवित्र परम्परा है जो दो दिलों और दो परिवारों को जोड़ती है।
६.विवाह नैतिक, धार्मिक परम्परा है, समझौता नहीं।
७. संतति का विस्तार नैतिक तरीके से हो इसलिये विवाह होता है जिससे माता—पिता, भाई—बहन के रिश्तों को सम्मान प्राप्त होता है।
८. कन्यादान करंसीदान नहीं, संस्कारों का आदान—प्रदान है। करंसीदान ने नारी की स्थिति दयनीय बना दी है। कहते हैं—
जो सुहागिन हो तो सती बन के जल जाती है, यदि अभागिन हो तो उसे सास निगल जाती है। शमा की तरह अबला की कहानी है मित्रों, रोशनी करके जो चुपचाप पिघल जाती है।
९.नारी केवल भोग की शय्या नहीं, नारी परमात्मा की पूजा—थाली होती है। इसीलिये कहते हैं—‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’
१०. नारी लक्ष्मी है, अन्नपूर्णा है। कभी वह बालक को ममतामयी होकर छाती से लगाती है और पीठ पर बांधकर युद्धक्षेत्र में कूदकर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बन जाती है तो कभी अपने पुत्र को देशहित में बलिदान करने वाली पन्नाधाय बन जाती है। वक्त पड़े तो वही सरस्वती है और जब वह विरोध पर उतरती है तो दुर्गा बन जाती है। इसीलिये कहा जाता है—
नारी जीवन झूले की तरह इस पार कभी उस पार कभी।
होठों पर मधुर शृंगार कभी, आँखों में अंसुअन धार कभी।
आगे कहते हैं—
यही मीरा बनी, यही सीता बनी, यही रानी बनी थी झांसी की।
कभी फूल चढ़ाये भक्ति के और हाथ में ली तलवार कभी।।
११.यूँ तो मृत्यु के पश्चात् जन्म से संबंधित सभी रिश्ते मिट जाते हैं परन्तु नारी तो जीते जी अपने जन्म के रिश्तों से मोह हटाने की शिक्षा पाती है।
१२.नारी है मात, नारी अर्धांगिनी, नारी है ममता की मूरत। नारी है बहना, नारी है भाभी, नारी में देवी की सूरत।।
१३.बाप जैसा कोई माली नहीं जो अपनी बगिया में लगे फूल को स्वयं अपने हाथों से दूसरे को देता है।
१४. कहने को कहते हैं बहू घर की लक्ष्मी है परन्तु दौलत के दीवानों ने लड़की के बाप की स्थिति दयनीय बना दी है।
बोल दुनिया के रसीले हो गये, अब ये क्यों इतने कटीले हो गये।
एक गुर्दा बिक गया तो क्या हुआ, हाथ बेटी के तो पीले हो गये।।