संस्कृति और संस्कार
भारत की श्रेष्ठता अपने संस्कारों के कारण है | इन संस्कारों की आधारशिला हमारे ऋषियों ने रखी थी | भारतीय जीवन मूल्यों में १६ संस्कारों का समावेश है | जीवन संस्कारों की वेदी पर चढ़कर ही निखरता है | भारतीय संस्कृति के संस्कारयुक्त होने के कारण ही इसे विश्व की आदि संस्कृति के रूप में जाना जाता है | संस्कार का जितना महत्त्व आध्यात्मिक दृष्टि से है उतना ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी है | की इस विलक्षण प्रक्रिया के पीछे एक गहरा रहस्य है | हम सब भलीभांति जानते हैं कि मनुष्य शक्ति का विपुल भंडार है | अतः इस ऊर्जा को शुभता अथवा दिव्यता की ओर अग्रसर करने और जीवनचक्र को व्यवस्थित करके और शरीर ,मन और बुद्धि की शुद्धि कर अंतःकरण को निर्मल बनाने में संस्कारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है |
संस्कार शब्द का सामान्य अर्थ है – पूर्ण करना , पुनः निर्माण करना या संशोधन करना इत्यादि | अर्थात दोषों को दूर करके गुणों को बढ़ाने में जिस क्रियाविधि अथवा पध्यति का उपयोग किया जाता है ,वह संस्कार है |आचार्यों ने कहा है कि दोषों को नष्ट और गुणों का संवर्धन करके नए गुणों को विकसित करना संस्कार है |निर्गुण और सगुण बनाना , विकृतियों एवं अशुद्धियों का निवारण करना और मूल्यवान गुणों को सिंचित करना ही संस्कार का कार्य है | जैसे सोना ,चांदी और ताम्बा आदि धातुएं खदान से निकाले जाने के तुरंत बाद उपयोग में नहीं आतीं | आग में तपाकर यानी कि संस्कार कर सुन्दर मूर्ति या गहना बनाने पर ही धातुएं अति मूल्यवान बनती हैं | उसी प्रकार जब ये संस्कार मनुष्य में प्रयुक्त होते हैं तब मनुष्य न केवल भौतिक प्रगति को प्राप्त होता है , अपितु अभ्युदय एवं निःश्रेयस की सिद्धि कर दिव्य जीवन की सुखद अनुभूतियों का लाभ लेकर जीवन सिद्धि का निकटता से अनुभव करता है | भारतीय मनीषियों ने जीवन सिद्धि को ईश्वरीय साक्षात्कार के रूप में माना है ,जिसका आधार संस्कार ही है |