सक्रियता
हमारे धर्मग्रंथों में उल्लिखित है-‘चरैवेति चरैवेति ‘ अर्थात चलते रहो ,क्योंकि जीवन का दूसरा अर्थ ही चले जाना है | ‘भौतिक जगत की यात्रा जन्म से प्रारंभ होती है एवं मृत्यु पर जाकर समाप्त होती है | मनुष्य की स्वांस एवं धड़कन भी जन्म से मृत्यु तक अनवरत रूप से चलती रहती है |दोनों के थम जाने का अर्थ होता है -मनुष्य की मृत्यु | चलने से अभिप्राय है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में लगातार सक्रिय रहना चाहिए |सक्रियता जीवन है और निष्क्रियता मृत्यु के समतुल्य है |प्रकृति द्वारा रचित चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य को ही माना गया है | ऐसे मानव शरीर को निष्क्रियता के आवरण से घेर देना महापाप होगा |
सक्रियता मनुष्य को स्वस्थ ,विवेकी एवं बुद्धिमान बनाती है जबकि निष्क्रियता का अनुसरण करने से मनुष्य नित्यप्रति आलसी एवं शनैः -शनैः रोगी होता चला जाता है | सक्रियता का अर्थ है कि हम शारीरिक एवं मानसिक ,दोनों प्रकार से चलायमान रहें | शारीरिक सक्रियता अर्थात योगासन ,व्यायाम एवं प्राणायाम शरीर के छोटे-बड़े ,आंतरिक एवं बाह्य अंगों को सशक्त बनाकर शरीर से सारी विषाक्तता को बाहर निकालने के लिए सहायता करती है | मन-मष्तिष्क की सक्रियता मनुष्य का बौद्धिक विकास करती है | इन दोनों सक्रियताओं का संयोजन मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारता है | व्यक्तित्व के परिष्कृत एवं परिमार्जित होने से मनुष्य गुणवत्ता के पैमाने पर एक रत्न के समतुल्य बन जाता है | बुरे विचार , बुरी भावनाएं एवं बुरे कर्म उससे बहुत दूर चले जाते हैं एवं उसका धरा पर आना सफल हो जाता है |
प्रकृति द्वारा मनुष्य रूप में जन्म देकर हम पर एक उपकार किया गया है | उसके इस ऋण से उऋण तो कदापि नहीं हुआ जा सकता ,किन्तु नित्य ईश्वर की आराधना के साथ स्वयं को सक्रिय रखकर उसके प्रति आभार अवश्य जताया जा सकता है |