प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में सफल होना चाहता है। एक परीक्षार्थी अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण होकर स्वयं को सफल मानता है। एक व्यापारी खूब सारा धन कमाकर स्वयं को सफल अनुभव करता है। ऐसे ही एक खिलाड़ी खेल में मेडल जीत कर, कोई व्यक्ति किसी मुकाबले में शत्रु को परास्त कर स्वयं को सफल मानता है। वस्तुतः ये सारी सफलताएं जीवन की सामाजिक सफलताएं हैं।
भान लें कि हम खूब पढ़-लिखकर विद्वान हो गए। बहुत ही प्रभावशाली वक्ता और व्याख्याता भी बन गए। जीवन में हजार-दो हजार विद्यार्थियों को पढ़कर शिक्षक भी कहला लिए। दुनिया की ढेर सारी सैर कर ली और इतिहास को बहुत करीब से जान भी गए तो भी क्या यह सच्ची सफलता है? एक व्यापारी बनकर हमने खूब धन कमा लिया। मौज और शौक के सारे साधन इकट्ठे कर लिए। कारों का एक लंबा काफिला हमारे दरवाजे पर हर समय खड़ा रहता है। हमने बहुत भव्य महलनुमा, सभी सुविधाओं से संपन्न आवास बना लिया। सोच सकते हैं कि हम सभी साधनों से संपन्न हैं, परंतु प्रश्न यह है कि क्या साधन से जुड़ी यह सफलता स्थाई है? प्रारब्ध को मानने वाले कहेंगे कि यह प्रारब्ध का परिणाम है। उद्यम को मानने वाले कहेंगे कि ऐसी सफलता किंचित प्रयासों से प्राप्त की जा सकती है। तो फिर विचारणीय प्रश्न है कि कौन-सी सफलता सच्ची सफलता है?
हमारे पास बहुत अधिक धन है। बहुत अधिक ज्ञान है या बहुत अधिक यश है, पर यदि हम किसी रोते हुए व्यक्ति के आंसू नहीं पोंछ सकते तो हमारी इन उपलब्धियों का क्या लाभ? सच्ची सफलता तो वहां है जहां दूसरे असफल हो रहे हों और हम अपने प्रेम, वात्सल्य, सहिष्णुता, उदारता, धैर्य आदि गुणों से उनकी सफलता में सहायक बनें। किसी के मलिन मन को धोने के लिए, किसी दुखिया के आंसू को पोंछ कर यदि हम उसके चेहरे पर तनिक भी मुस्कान ला पाए तो यही मानव होने के नाते हमारी सच्ची सफलता होगी।