जय जय गुरुवर, हे सूरीश्वर, अनेकांतसिंधु आचार्य की,
हम आरति करने आए हैं।।टेक.।।
सन् उन्निस सौ त्रेसठ में, गोटे गांव में जनमे।
माँ शान्ति-भगवानदास पितु, धन्य हुए थे तुमसे।।गुरु जी धन्य………।
तारीख सितम्बर की नौ थी, प्रारंभ से ही पूरणांक थे,
हम आरति करने आए हैं।।१।।
पुण्ययोग से बालक दीपक दीप जलाने निकले।
पावागढ़ में ब्रह्मचर्य ले आत्मज्ञान में निखरे।।गुरु जी आत्म…….
श्री कल्पतरू प्रभु शांतिनाथ की भक्ति हृदय में अपार है,
हम आरति करने आए हैं।।२।।
अभिनन्दन सागराचार्य से, मुनिदीक्षा धारण की।
षष्ठम पट्टाचार्य प्रवर ने, सप्तम की पदवी दी।। गुरु जी सप्तम……
श्री शान्तिसिंधु की परम्परा के सप्तम पट्टाचार्य की,
हम आरति करने आए हैं।।३।।
गणिनी ज्ञानमती माता के संग चौमास रचाया।
मांगीतुुंगी जी में ‘‘चन्दनामति’’ आनंद है छाया।।
गुरु जी चहुंदिश आनंद छाया।
युग-युग जीवन्त रहो गुरुवर अनेकान्तसिंधुआचार्यश्री,
हम आरति करने आए हैं।।४।।