अन्याय रूप कार्य के बार-बार करने की प्रवृत्ति व्यसन कहलाती है | यह व्यसन सात हैं जिनके द्वारा मानव पाप मार्ग में प्रवृत्ति करता है तथा इहलोक और परलोक में नाना दुखों को प्राप्त करता है | उन व्यसनों से होने वाली बुराइयों को बताने हेतु पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने इस कृति की रचना की है जिसके माध्यम से हम उनके बारे में जानकर उनसे अपनी आत्मा को दूर रखकर जीवन को समुन्नत बना सकते हैं |