जर्मन के एक वैज्ञानिक का साक्षात्कार आ रहा था। उनसे पूछा गया—आप गरीब परिवार में पैदा हुए। आज इतने ऊँचे पद पर आसीन हो गये हैं इसका कारण क्या है ? आपके गुरु कौन है ? वैज्ञानिक हँसने लगे, हँसते—हँसते उन्होंने बहुत मार्मिक बातें बता दी।
उनका पहला जवाब था—मैं अपने कमरे की नियमित सफाई करता था और आज भी सफाई करता हूँ और आज भी सफाई करता हूँ। मेरे कमरे को आप निरीक्षण कर सकते हैं कहीं पर भी जाला, गंदगी, कबाड़, अव्यवस्थित वस्तुएँ नहीं मिलेगी।
दूसरा कारण—मैं रोज सेविंग करता हूँ। आईने में अपनी शक्ल का दर्शन करता हूँ।
तीसरा कारण—मेरे वस्त्र कभी भी फटे हुए एवं गंदे नहीं मिलेंगे। आज का काम कल पर नहीं छोड़ता। इतिहास पढ़ता हूँ भविष्य की चिंता नहीं करता। वर्तमान में जीता हूँ। परमात्मा ने जो मुझे सौगात भेजी उसे सआनन्द भोग करता हूँ। अपने काम में मस्त रहता हूँ। अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीता हूँ। विश्व में जितने मूर्ख हैं सब मेरे गुरू हैं मैं अपनी दिनचर्या पर अनुशासन रखता हूँ। जिस निवास स्थान में मुझे हर्षोल्लास नहीं मिलता, चैन की नींद नहीं आती। उसे तुरन्त त्याग देता हूँ। यही मेरी सफलता का राज है। वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष रूप से बहुत कुछ कह गए। मैं अपने शब्दों में बताने का प्रयास करता हूँ। विद्वान वैज्ञानिक ने अपने छोटे से साक्षात्कार में सागर को गागर में लाकर भर दिया। उनके एक—एक शब्द आत्मविश्वास से लबालब है। आपने व्यवहारिक ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, वास्तु विज्ञान, जीवन जीने की कला सभी को प्राप्त कर लिया।
इनका पहला जवाब था—मैं कमरे की सफाई पहले भी करता था आज भी करता हूँ। जहाँ गंदगी नहीं होती वहाँ शक्तियाँ, सकारात्मक ऊर्जाएँ, आध्यात्मिक ऊर्जाएँ आती है।
उनका दूसरा जवाब था—मैं सेविंग नित्य करता हूँ। पुरुष वर्ग जब सेविंग करते हैं उनके चेहरे पर एक सुन्दरता की आभा आ जाती है। दर्पण में अपना अक्स देखकर मन प्रपुल्लित जागृत हो जाती है। आप अपने आपको प्रेश एवं सुन्दर महसूस करेंगे। आपके अन्दर आत्म शक्ति का संचार चालू हो जाता है।
तीसरा कारण—कभी भी फटे एवं गंदे वस्त्र नहीं पहनता, अगर आपके वस्त्र फटे हुए हों, आप अपने आप में लक्ष्मी के अभाव को महसूस करते हैं। शास्त्रों में ऐसा प्रमाण माना गया है—फटे वस्त्र पहनना दरिद्रता को निमंत्रण देना है। गंदे वस्त्र नकारात्मक ऊर्जाओं से भरे होते हैं। (राह चलते धूल, गंदगी प्रदूषण इत्यादि) नकारात्मक ऊर्जाएँ हमें आगे बढ़ने में रूकावटें पैदा करती हैं। आज का काम कल पर नहीं छोड़ता। यह दोहा प्रचलन में भी है—
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में प्रलय होयगी, बहुरी करेगा कब।।
वैज्ञानिक क्या कहना चाह रहे हैं—इंसान आज का काम कल पर छोड़कर अपने आपको चिंताओं से घेर लेता है। कल मुझे ये करना है—२। एक नई चिंता को निमंत्रण देता है। अपने शुकून को अपने से अलग कर देता है। इतिहास पढ़ता हूँ। भविष्य की चिंता नहीं करता, वर्तमान में जीता हूँ—धन्य है यह वैज्ञानिक जिन्होंने एक लाईन मैं पूरा समयसार बता दिया। जो गुजर गया वह इतिहास है वह चाहे स्वयं पर गुजरा हो या किसी औरो पर गुजरा हो। इतिहास से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। कल क्या होगा ? क्या हम छोटी मौत (नींद) से उठकर क्या कुछ कर पायेंगे? आज तक किसी ने कल को नहीं देखा है जिसने भी देखा है आज को ही देखा है या इतिहास को देखा है। जब आज को ही जीना है सुन्दर तरीके से जीयें। जिन्दगी का एक—एक दिन अनमोल है। ये किसी भी कीमत में वापस नहीं मिलेगा। जो चीज मिलने वाली नहीं उसे व्यर्थ में नहीं गंवाना चाहिए। उसका सदुपयोग करना चाहिए। मैं अपने कार्य को परमात्मा के आदेश समझकर करता हूँ और परमात्मा को सर्मिपत कर देता हूँ। विश्व में जितने भी अल्प बुद्धिमान है, संसार की विपरीत क्रियाएं करते हैं। मुर्खों की श्रेणी में आते हैं उनकी क्रियाओं को देखकर, सुनकर ज्ञान की प्राप्ति होती है वह मेरे गुरुवर हैं। अपने दिनचर्या पर शासन रखता हूँ। जिन्होंने स्वयं पर शासन किया विश्व उनके अधीन हो गया। आखिर में विद्वान ने सब बातों का सार कह दिया—जिस रूम या फ्लैट में निवास करना चाहते हैं अगर वास्तु अनुकूल नहीं है। सकारात्मक ऊर्जाओं से ओत—प्रोत नहीं है। वहाँ नहीं रहना चाहिए। वास्तु के मूल सिद्धांत मानने वाले शिखर पर पहुँच पाते हैं। खुदा ने उस कौम की हालत न बदली, जिसे न फिक्र हो अपनी हालत बदलने का। पाठकगण जब विद्वान वैज्ञानिक का साक्षात्कार का एक—एक शब्द मोतियों से पिरोया हुआ है। इस मोती की माला को अपने जीवन में उतार लें, तो सफलता आपके कदम चूमेगी।