गोपाचल (ग्वालियर) जैन इतिहास, संस्कृति, साहित्य एवं कला का प्रधान केन्द्र रहा है। गोपाचल मूर्तिकला, उसकी विशालता, कला वैभव, साहित्य एवं इतिहास के कारण संगम तीर्थ है।
गोपाचल सदैव से ही तीर्थ रहा है, क्योंकि यहाँ तीर्थंकरों का आगमन हुआ है।
सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य एवं उनके गुरु श्रुतकेवली भद्रबाहु यहाँ पधारे थे तथा मल्लिभूषण ने यहाँ की वंदना की थी।
इस क्षेत्र से सुप्रतिष्ठित केवली का मोक्ष होने के कारण यह निर्वाण भूमि भी है। यही कारण है कि आचार्य पूज्यपाद की निर्वाण भक्ति के पश्चात् अनेक तीर्थ वंदनाओं में गोपाचल तीर्थक्षेत्र का वर्णन है।
अपभ्रंश भाषा के महाकवि रइधू ने गोपाचल को पण्डितों का गुरु, गोपाचल दुर्ग को स्वर्ग गुरु कहा है। यहाँ पर अनेक कवि एवं विद्वानों ने अनेक ग्रन्थों की रचनायें की हैं।
यहाँ पर कुल २६ जैन गुफाएँ निर्मित हैं। एक पत्थर की बावड़ी विशेष पूजनीय है । सिद्धपीठ के ऊपर की गुफा में अनेक जैन प्रतिमाएँ सुरक्षित हैं।
भगवान् पार्श्वनाथ की ४२ फुट उत्तुंग एवं ३० फुट चौड़ी संसार में सर्वाधिक विशाल पद्मासन प्रतिमा इस तीर्थ का प्राण-परिचय है जो नित्य दर्शनीय है।
यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल १३, कार्तिक अमावस्या, पौष कृष्ण ११, मोक्ष सप्तमी एवं क्वार वर्टी की तिथियों में मेले का आयोजन किया जाता है।