समय का बोध
समय की गति अनिश्चित और तर्क से परे है। जिसने समय के चलायमान स्वरूप को समझ लिया वह आज की सुख-समृद्धि या प्रशंसा पर नहीं इतराएगा, न ही आज के कष्ट, बाधाएं, निंदा उसे विचलित करेंगे। वह आश्वस्त रहता है कि परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, किसी भी क्षण पलट सकती है। इस समझ के कारण वह दूसरों के प्रति दुराव, शत्रुता या वैमनस्य नहीं रखता, बल्कि उसके हृदय में सभी के प्रति सद्भावना और प्रेम बरकरार रहता है। वर्तमान को विभिन्न परिस्थितियों तथा पिछले कर्म की नैसर्गिक परिणति मानते हुए संयत व्यक्ति दूसरों को कमतर नहीं आंकता। इसीलिए उसे समाज से अनवरत सम्मान और प्रेम मिलता है। इसके विपरीत मध्यम सोच के व्यक्ति में आज की संपन्नता, प्रसिद्धि या जय-जयकार से अहंकार समा जाता है। यही सोच उसके पतन का कारण बनता है। संबंधों को डांवाडोल करते समय का खेल देखें। कभी साथ रहने वाले एक-दूसरे के “खून के प्यासे हो जाते हैं। जिस प्रियजन के न रहने पर जीना असंभव था, उससे बिछड़ने के वर्षभर में व्यक्ति की दिनचर्या सामान्य हो जाती है।
समय का कोई मोल नहीं, किंतु इससे बहुमूल्य कुछ नहीं। जिसने यह जान लिया, समय उसे अनमोल बना देगा। समय से कीमती कुछ है तो वही जिसे हम समय देते हैं। यह राजा से रंक तक सभी को बराबर उपलब्ध है। समय कम होने या न मिलने की शिकायत उन्हें अधिक रहती है, जो इसका सही उपयोग नहीं करते। शिखर तक वे पहुंचे, जिनके पास समय के उपयोग की स्पष्ट योजना रही और जिन्होंने समय नष्ट नहीं किया। समय का उपयोग कैसे करें, यह निर्णय व्यक्ति को विनाश की ओर प्रशस्त कर सकता है और उसे धन्य भी कर सकता है। जिनके सान्निध्य में हम समय बिताते हैं, जिन विचारों की मन-मंदिर में प्रतिष्ठा करते हैं, उसी अनुरूप हमारी दिशा और नियति बन जाती है। इसीलिए सभी पंथों में श्रेष्ठ संगत में समय बिताने की संस्तुति है।