१. पहली ‘‘चैत्यप्रासादभूमि’’ हैं, इसमें एक-एक जिनमंदिर के अंतराल में पांच-पांच प्रासाद हैं।
२. दूसरी ‘‘खातिकाभूमि’’ हैं, इसके स्वच्छ जल में हंस आदि कलरव कर रहे हैं और कमल आदि पुष्प खिले हैं।
३. तीसरी ‘‘लताभूमि’’ हैं, इसमें छहों ऋतुओं के पुष्प खिले हुए हैं।
४. चौथी ‘‘उपवनभूमि’’ हैं, इसमें पूर्व आदि दिशा में क्रम से अशोक, सप्तच्छद, चंपक और आम्र के वन हैं। प्रत्येक वन में एक-एक चैत्यवृक्ष हैं जिनमें ४-४ जिनप्रतिमाएं विराजमान हैं। प्रत्येक प्रतिमाओं के सामने एक-एक मानस्तंभ हैं।
५. पांचवी ‘‘ध्वजाभूमि’’ हैं, इसमें सिंह, गज, वृषभ, गरुड़, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, पद्म और चक्र इन दस चिन्हों से सहित महाध्वजाएं और उनके आश्रित लघुध्वजाएं १०८-१०८ हैं। सब मिलाकर ४,७०,८८० हैं।
६. छठी ‘‘कल्पभूमि’’ हैं, इसमें भूषणांग आदि दस प्रकार के कल्पवृक्ष हैं। चारों दिशा में क्रम से नमेरु, मंदार, संतानक और पारिजात ऐसे एक-एक सिद्धार्थवृक्ष हैं। इनमें चार-चार सिद्धप्रतिमाएं विराजमान हैं ।
७. सातवीं ‘‘भवनभूमि’’ में भवन बने हुए हैं। इस भूमि के पार्श्व भागों में अर्हंत और सिद्धप्रतिमाओं से सहित नौ-नौ स्तूप हैं।
८. आठवीं ‘‘श्रीमण्डपभूमि’’ हैं, इसमें १६ दीवालों के बीच में १२ कोठे हैं जिनमें १. गणधरादि मुनि, २. कल्पवासिनी देवी, ३. आर्यिका और श्राविका, ४. ज्योतिषी देवी, ५. व्यंतर देवी, ६. भवनवासिनी देवी, ७. भवनवासी देव, ८. व्यंतर देव, ९. ज्योतिष देव, १०. कल्पवासी देव, ११. चक्रवर्ती आदि मनुष्य और १२. सिंहादि तिर्यंच, ऐसे बारहगण के असंख्यातों भव्यजीव बैठकर धर्मोपदेश सुनते हैं। वहां पर रोग, शोक, जन्म, मरण, उपद्रव आदि बाधाएं नहीं हैं।
पुन: प्रथम कटनी पर आठ महाध्वजाएं हैं, द्वितीय कटनी पर आठ मंगलद्रव्य आदि है। तृतीय कटनी पर गंधकुटी में सिंहासन पर लाल कमल की कर्णिका पर भगवान शांतिनाथ चार अंगुल अधर विराजमान हैं। इनका मुख एक तरफ होते हुए भी चारों तरफ दिखने से ये चतुर्मुखी ब्रह्मा कहलाते हैं। भगवान के पास अशोकवृक्ष, तीन छत्र, सिंहासन, भामंडल, चौंसठ चंवर, सुरपुष्पवृष्टि, दुंदुभि बाजे और हाथ जोड़े सभासद ये आठ महाप्रातिहार्य हैं। वहीं पर गरुड़ यक्ष और महामानसी यक्षी विद्यमान हैं।
इन शांतिनाथ भगवान को मेरा अनंतबार नमस्कार हो।
(तिलोयपण्णत्ति हरिवंशपुराण और समवसरण स्तोत्र के आधार से)