(आदिपुराण से)
पुष्पपल्लवोज्ज्वलेषु कल्पपादपोरुकाननेषु हारिषु
श्रीमदिन्द्रवन्दिताः स्वबुध्नसुस्थितेद्धसिद्धबिम्बका द्रुमाः।
सन्ति तानपि प्रणौम्यमूं नमामि च स्मरामि च प्रसन्नधीः
स्तूपपंक्तिमप्यमूं समग्ररत्नविग्रहां जिनेन्द्रबिम्बिनीम्१।।१९०।।
फूल और पल्लवों से देदीप्यमान और अतिशय मनोहर कल्पवृक्षों के बड़े-बड़े वनों में लक्ष्मीधारी इन्द्रों के द्वारा वन्दनीय तथा जिनके मूलभाग में सिद्ध भगवान् की देदीप्यमान प्रतिमाएँ विराजमान हैं ऐसे जो सिद्धार्थ वृक्ष हैं, मैं प्रसन्नचित होकर उन सभी की स्तुति करता हँॅू, उन सभी को नमस्कार करता हूँ और उन सभी का स्मरण करता हूँ, इसके सिवाय जिनका समस्त शरीर रत्नों का बना हुआ है और जो जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमाओं से सहित हैं ऐसे स्तूपों की पंक्ति का भी मैं प्रसन्नचित होकर स्तवन, नमन तथा स्मरण करता हूँ।।१९०।।