समवसरण में मानस्तंभ, चैत्यवृक्ष, सिद्धार्थ वृक्ष, ध्वजाओं के स्तंभ, स्तूप, ये सभी अपने-अपने तीर्थंकरों की ऊँचाई से बारह गुणे ऊँचे हैं-
सिद्धार्थचैत्यवृक्षाश्च प्राकारवनवेदिका:।
स्तूपा: सातोरणा मानस्तम्भा: स्तम्भाश्च वैâतवा:।।२१४।।
प्रोक्तास्तीर्थकृदुत्सेधादुत्सेधेन द्विषड्गुणा:।
दैर्घ्यानुरूपमेतेषां रौन्द्र्यमाहुर्मनीषिणा:१।।२१५।।
सिद्धार्थवृक्ष, चैत्यवृक्ष, कोट, वनवेदिका, स्तूप, तोरण सहित मानस्तम्भ और ध्वजाओं के खम्भे, ये सब तीर्थंकरों के शरीर की ऊँचाई से बारह गुने ऊँचे होते हैं और विद्वानों ने इनकी चौड़ाई आदि इनकी लम्बाई के अनुरूप बतलायी है।।२१४-२१५।।
(तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से)
पंचसया रूऊणा छक्कहिदा वड्ढमाणदेवम्मि।
णियणियजिणउदयेिंह बारसगुणिदेिंह थंभउच्छेहो।।७७७।।
वर्धमान तीर्थंकर के समवसरण में मानस्तम्भों का बाहल्य छह से भाजित एक कम पाँच सौ धनुषप्रमाण था। इन मानस्तम्भों की ऊँचाई अपने-अपने तीर्थंकर के शरीर की ऊँचाई से बारहगुणी होती है।।७७७।।
चामरपहुदिजुदाणं चेत्ततरूणं हवंति उच्छेहा।
णियणियजिणउदएिंह बारसगुणिदेिंह सारिच्छा।।८०६।।
चामरादि से सहित चैत्यवृक्षों की ऊँचाई बारह से गुणित अपने- अपने तीर्थंकरों की ऊँचाई के सदृश होती है।।८०६।।
संलग्गा सयलधया कणयत्थंभेसु रयणखचिदेसुं।
थंभुच्छेहो णियणियजिणाण उदएिंह बारसहदेिंह।।८२१।।
समस्त ध्वजाएँ रत्नों से खचित सुवर्णमय स्तम्भों में संलग्न रहती हैं। इन स्तम्भों की ऊँचाई अपने-अपने तीर्थंकरों की ऊँचाई से बारहगुणी हुआ करती है।।८२१।।
कल्पतरू सिद्धत्था कीडणसालाओ तासु पादासा।
णियणियजिणउदयेिंह बारसगुणिदेिंह समउदया।।८३७।।
कल्पभूमियों में स्थित सिद्धार्थ कल्पवृक्ष, क्रीडनशालाएँ और प्रासाद बारह से गुणित अपने-अपने जिनेन्द्र की ऊँचाई के समान ऊँचाई वाले होते हैं।
भवणखिदिप्पणिधीसुं वीिंह पडि होंति पवणवा थूहा।
जिणसिद्धप्पडिमािंह अप्पडिमािंह समाइण्णा।।८४४।।
छत्तादिछत्तजुत्ता णच्चंतविचित्तधयवलालोला।
अडमंगलपरियरिया ते सव्वे दिव्वरयणमया।।८४५।।
एक्केक्केिंस थूहे अंतरयं मयरतोरणाण सयं।
उच्छेहो थूहाणं णियचेत्तदुमाण उदयसमं।।८४६।।
भवनभूमि के पार्श्वभागों में प्रत्येक वीथी के मध्य में जिन और सिद्धों की अनुपम प्रतिमाओं से व्याप्त नौ-नौ स्तूप होते हैं।।८४४।।
वे सब स्तूप छत्र के ऊपर छत्र से संयुक्त, फहराती हुई ध्वजाओं के समूह से चंचल, आठ मंगलद्रव्यों से सहित और दिव्य रत्नों से निर्मित होते हैं।।८४५।।
एक एक स्तूप के बीच में मकर के आकार सौ तोरण होते हैं। इन स्तूपों की ऊँचाई अपने चैत्यवृक्षों की ऊँचाई के समान होती है।।८४६।।
णिम्मलपडिहविणिम्मियसोलसभित्तीण अंतरे कोट्ठा।
बारस ताणं उदओ णियजिणउदएिंह बारसहदेिंह१।।८५३।।
निर्मल स्फटिकमणि से निर्मित सोलह दीवालों के बीच में बारह कोठे होते हैं। इन कोठों की ऊँचाई अपने-अपने जिनेन्द्र की ऊँचाई से बारहगुणी होती है।।८५३।।