समवसरण का व्रत समवसरण की आठ भूमि, तीन कटनी आदि को लक्षित करके किया जाता है। इसमें २४ व्रत हैं। व्रत के दिन तीर्थंकर प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक, समवसरण पूजा करके उपवास करें। उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार एवं जघन्य एकाशन है। व्रत पूर्ण करके उद्यापन में समवसरण रचना बनवाकर प्रतिष्ठा कराना अथवा समवसरण मंडल विधान करना। २४ ग्रंथ आदि का दान देना। जहाँ-जहाँ प्रभु के समवसरण की रचना बनी हुई हैं उनके दर्शन करना। इस व्रत का फल तत्काल में संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि, परम्परा से समवसरण के दर्शन का लाभ और तीर्थंकर पद की प्राप्ति आदि भी संभव है।
समुच्चय मंत्र-
१. ॐ ह्रीं जगदापद्विनाशनाय सकलगुणकरण्डाय श्रीसर्वज्ञाय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।