अर्थात् यदि कौशल्या चाहती तो अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय राम को वन नहीं जाने देती परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने राम को आज्ञा दी कि पिता की आज्ञा सभी धर्मों में श्रेष्ठ है। माता के संस्कारों से राम ने एक आदर्श पुत्र एवं भाई का उदाहरण प्रस्तुत किया और राज्य को त्याग वन के लिए प्रस्थान किया। प्राचीन काल में नारी के ऐसे अनेक उदारहण हैं जिसमें उन्होंने समाज और संस्कारों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जैसे माँ सुनीति ने ध्रुव को, कयादू ने प्रहलाद को वह शिक्षा दी जिसे समाज को उच्च संस्कारों से मंडित किया।
नारी ने समाज में संस्कारों की नई क्रांति दी है। समाज में जब —जब भी विकृति आई नारी ने लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, पद्मिनि एवं रानी हाड़ा के रूप में उन कुरीतियों का दमन किया। डलहौजी की हड़पनीति का लक्ष्मीबाई ने डटकर मुकाबला किया और अपने प्राणों की आहूति देकर एक नवीन मार्ग देश और समाज के लिए प्रस्तुत किया। कवयित्रि सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखा है —