जो अपनी आत्मा का ध्यान करता है, उसे परम समाधि की प्राप्ति होती है। य इन्द्रियाणां विषया मनोज्ञा:, न तेषु भावं निसृजेत् कदापि। न चामनोज्ञेषु मनोऽपि कुर्यात , समाधिकाम: श्रमणस्तपस्वी।।
समाधि की कामना रखने वाली तपस्वी श्रमण, मन को भाने वाले इन्द्रिय—विषयों व उनके भावों में कभी राग न रखे और मन को बुरे लगने वाले इन्द्रिय—विषयों व उनके भावों के प्रति कभी द्वेष न रखे।