अपने—अपने पक्ष में ही प्रतिबद्ध परस्पर निरपेक्ष सभी नय (मत) मिथ्या हैं, असम्यक् हैं, परन्तु ये ही नय जब परस्पर सापेक्ष होते हैं तब सत्य एवं सम्यक् बन जाते हैं। दव्वं खित्तं कालं भावं पज्जाय देस संजोगे। भेदं पडुच्च समा, भावाणं पण्णवणपज्जा।।
वस्तु तत्त्व की प्ररूपणा द्रव्य (पदार्थ की मूल जाति), क्षेत्र (स्थिति—क्षेत्र), काल (योग्य समय), भाव (पदार्थ की मूल शक्ति), पर्याय (शक्तियों के विभिन्न परिणमन), देश (व्यावहारिक स्थान), संयोग (आसपास की परिस्थिति) और भेद (प्रकार) के आधारपर ही सम्यक् होती है।