सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र शाश्वत तीर्थ है। यहाँ से हमेशा चतुर्थकाल में तीर्थंकर भगवान एवं असंख्यातों मुनिगण मोक्ष प्राप्त करते रहे हैं और आगे भी मोक्ष प्राप्त करते रहेंगे। इस सिद्धक्षेत्र के २५ व्रत हैं।
इस बार चतुर्थकाल में हुण्डावसर्पिणी के निमित्त से सम्मेदशिखर पर्वत से २० तीर्थंकर ही मोक्ष गये हैं, शेष चार तीर्थंकर अन्यत्र स्थलों से मोक्ष गए हैं फिर भी वहां पर इन चारों की भी टोंके बनाई गई हैं अत: चौबीस तीर्थंकरों के २४ व्रत तथा गौतम गणधर की टोंक का १, इस प्रकार २५ व्रत करना है। प्रथमत: अजितनाथ तीर्थंकर के सिद्धकूट से व्रत प्रारंभ कर भगवान पाश्र्वनाथ के सुवर्णभद्रकूट तक व्रत करना है पुन: ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीर स्वामी के टोंकों का व्रत करना चाहिए।
इस व्रत के दिन मंदिर में तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके सम्मेदशिखर पूजन विधान करना है पुन: समुच्चय जाप्य करके एक-एक व्रतों के दिन क्रम से एक-एक जाप्य करना है।इस व्रत का फल नाना प्रकार के रोग, शोक, दु:ख, संकट को दूर कर सम्पूर्ण मनोरथों को सफल करना है। जो यह व्रत करेंगे, वे सम्मेदशिखर की वंदना के समान अनेकों उपवासों का फल प्राप्त कर परम्परा से मोक्ष को प्राप्त करेंगे। समुच्चय मंत्र – १. ॐ ह्रीं अर्हं सम्मेदशिखरशाश्वतसिद्धक्षेत्राय नम:।