इन तिर्यंचों में कितने ही तिर्यंच उपदेश श्रवण से, कितने ही स्वभाव से, कितने ही जातिस्मरण से, प्रथमोपशम और वेदक सम्यक्त्व को ग्रहण कर लेते हैं।