१. परतंत्र देश में अशिक्षा का बोल-बाला।
२. टिकेटनगर में चेचक की महामारी।
३. सभी के द्वारा शीतलादेवी की पूजा-जल चढ़ाना।
४. मैना के भगवान शीतलनाथ की पूजन करने के लिए सभी को प्रेरित किया।
५. ‘मैना’ ने भ्राता-सुभाष-प्रकाश चेचकग्रस्त।
६. मैना द्वारा शीतलनाथ की पूजन एवं रोगियों पर गंधोदक छिड़कना।
७. पं. मनोहरलाल जी सिलगन के विचार: ‘‘ये अम्मा कोई देवी है’’।
८. सभी द्वारा ‘मैना’ के सम्यक्त्व विचार की प्रशंसा।
९. मैना ने बड़े होकर अलौकिक इतिहास रचा।
१०. मैना में ‘उत्तम संस्कारों का बीजारोपण।
पूर्व समय परतंत्र देश में, शिक्षा का था नहीं प्रकाश।
अत: अधिकतर लोग अशिक्षित, रहते ग्रस्त अंध विश्वास।।
इस कारण जब चेचक निकले, या हो मोतीझरा बुखार।
लोग मनाते रहें देवता, नहीं कराते थे उपचार।।८७।।
टिवैâतनगर में चेचक पैâली, घर-घर बालक थे बीमार।
‘‘सुभाष-प्रकाश-अनुज मैना के, भी चेचक के हुए शिकार।।
परिजन-पुरजन जोर लगावें, चलो पूजने शीतल माई।
लेकिन ‘मैना’ ने बतलाई, जिन गंधोदक सही दवाई।।८८।।
‘‘शीतलनाथ करो प्रभु पूजा, गंधोदक छिड़को लाकर।
श्रीपाल का कुष्ठ मिटाया, मैना ने जिनपूजा कर।।
सेठ धनञ्जय ने पाया था, अपना पुत्र भक्ति के जोर।’’
गृह पैâली मिथ्यात्व शृंखला, क्रमश: मैना ने दी तोड़।।८९।।
‘मैना’ प्रतिदिन भक्तिभाव से, करती जिनवर का पूजन।
करे प्रार्थना युगल अनुज को, स्वास्थ्य लाभ दें हे स्वामिन्।।
लाकर छिड़के गंधोदक को, बंधु युगल पर श्रद्धा संग।
कुछ ही दिन में, स्वास्थ्य लाभ कर, दोनों पाया रूप अनंग।।९०।।
उधर पड़ौसी एक मात के, युवा पुत्र को खाया काल।
मिथ्या-मोह-अज्ञान के कारण, हुआ मात का यह था हाल।।
पद्मनंदिपंचविंशतिका, छहढाला से पाकर ज्ञान।
बाल्यकाल में ही ‘मैना’ ने, पाया सम्यक्दर्शन-ज्ञान।।९१।।
मैना ने भगवान से कहा, भगवन्! लाज तुम्हारे हाथ।
करें धर्म-भक्तों की रक्षा, ठहरे आप त्रिलोकी नाथ।।
अपने व्रत का ध्यान रखें प्रभु, करें बंधुजन रोग शमन।
अटल-अचल श्रद्धान आप पर, आयी हूूँ मैं चरण-शरण।।९२।।
सिलगन जिला ललितपुर वासी, पंडित श्री मनोहरलाल।
मैना सम्यक् क्रिया देखकर, अनुभव से बोले तत्काल।।
‘‘यह कन्या कोई देवी है, दिखती है होनहार बहुत।’’
करवा चौथ, बायना देना, छुड़वाये इसने सब कुछ।।९३।।
क्या है सत्य, असत्य कौन है, क्या है सम्यक्, क्या मिथ्यात्।
सत्य न समझे जिन ग्रथों से, फिर तुमने क्या समझा खाक।।
‘मैना’ दृष्टि महानुकीली, जैनधर्म सिद्धांत खरे।
जब भी कोई संकट आया, ‘मैना’ निर्णय सच निकरे।।९४।।
‘मैना’ के मिथ्यात्व त्याग की, जैनाजैन प्रशंसा की।
सम्यक् श्रद्धा-ज्ञान-चरित की, सब हार्दिक अनुशंसा की।।
सफल कार्य उसके ही होते, जिसका श्रद्धाभाव अटल।
सम्यक् दर्शन पहली सीढ़ी, अगर चाहिए मोक्ष महल।।९५।।
व्यक्ति एक व्यक्तित्व बहुत से, सभी अनन्य असाधारण।
बाल ब्रह्मचारिणी मैना, सम्यक् अष्ट अंग धारण।।
अनादिकालीन मिथ्यात्व शत्रु से, निज परिवार बचाया है।
वीरमती फिर ज्ञानमती ने, जग शिवमार्ग दिखाया है।।९६।।
‘मैना’ से बढ़ ‘वीरमती’ फिर, ‘ज्ञानमती’ सीढ़ी चढ़ना।
है अतिशय ही विस्मयकारी, सदी बीसवीं की घटना।।
उल्लेखनीय इतिहास बन गया, स्वर्ण-मणि-खचित जीवनवृत्त।
पढ़े पृष्ठ इतिहास मिला न, इससे कोई श्रेष्ठ चरित्र।।९७।।