सम्यग्दर्शन की प्राप्ति और विशुद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। आठ अंगपूर्वक सम्यक्त्व को धारण करके शंकादि ८ दोष, ८ मद, ६ अनायतन और ३ मूढ़ता से दूर रहना ही इसका फल है। यह व्रत नियम से एक दिन क्षायिक सम्यक्त्व को प्राप्त करायेगा और मोक्ष की प्राप्ति में मूल कारण बनेगा। इस में २५ व्रत होते हैं। इनकी उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार और जघन्य एकाशन है। समुच्चय मंत्र-ॐ ह्रीं पंचविंशति मलदोषविरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। प्रत्येक व्रत के पृथक-पृथक मंत्र— १. ॐ ह्रीं शंकादोषरहित नि:शंकितांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। २. ॐ ह्रीं कांक्षादोषरहित नि:कांक्षितांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ३. ॐ ह्रीं जुगुप्सादोषरहित निर्विचिकित्सांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ४. ॐ ह्रीं मूढ़दृष्टिदोषरहित अमूढदृष्टि-अंगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ५. ॐ ह्रीं अनुपगूहनदोषरहित उपगूहनांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ६. ॐ ह्रीं अस्थितिकरणदोषरहित स्थितीकरणांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ७. ॐ ह्रीं अवात्सल्यदोषरहित वात्सल्यांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ८. ॐ ह्रीं अप्रभावनादोषरहित प्रभावनांगसमन्वित सम्यग्दर्शनाय नम:। ९. ॐ ह्रीं ज्ञानमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १०. ॐ ह्रीं पूजामदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। ११. ॐ ह्रीं कुलमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १२. ॐ ह्रीं जातिमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १३. ॐ ह्रीं बलमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १४. ॐ ह्रीं ऐश्वर्यमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १५. ॐ ह्रीं तपोमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १६. ॐ ह्रीं रूपमदरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १७. ॐ ह्रीं मिथ्यादर्शनानायतनविरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १८. ॐ ह्रीं मिथ्याज्ञानानायतनरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। १९. ॐ ह्रीं मिथ्याचारित्रानायतनरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २०. ॐ ह्रीं मिथ्यादर्शनसहितजन-अनायतनरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २१. ॐ ह्रीं मिथ्याज्ञानसहितजन-अनायतनरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २२. ॐ ह्रीं मिथ्याचारित्रसहितजन-अनायतनरहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २३.ॐ ह्रीं देवमूढ़तारहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २४. ॐ ह्रीं गूरुमूढ़तारहित सम्यग्दर्शनाय नम:। २५. ॐ ह्रीं पाखंडिमूढ़तारहित सम्यग्दर्शनाय नम:।