सम्यक् दर्शन की प्राप्ति तीन लोक के ऐश्वर्य से भी श्रेष्ठ है। यथार्थतत्त्व श्रद्धा सम्यक्त्वम्।
जीवादि तत्त्वों की यथार्थश्रद्धा (सम्यक्—विचार) करना सम्यक् दर्शन है। दर्शनभ्रष्टा: भ्रष्टा:, दर्शनभ्रष्टस्य नास्ति निर्वाणम्। सिध्यन्ति चरितभ्रष्टा:, दर्शनभ्रष्टा: न सिध्यन्ति।।
जो सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट है, वही भ्रष्ट है। दर्शन—भ्रष्ट को कभी निर्वाण—प्राप्ति नहीं होती। चारित्रविहीन सम्यग्दृष्टि तो (चारित्र धारण करके) सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, किन्तु सम्यग्दर्शन से रहित सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते। दर्शनशुद्ध: शुद्ध:, दर्शनशुद्ध: लभते निर्वाणम्। दर्शनविहीन:, पुरुष:, न लभते तम् इच्छितं लाभम्।।
सम्यक् दर्शन से शुद्ध होने वाला ही दर्शनशुद्ध होता है और जो दर्शनशुद्ध होता है, उसी को निर्वाण—लाभ मिल पाता है। सम्यक् दर्शन से रहित पुरुष को वांछनीय लाभ नहीं मिलता।