सारांश – बीसवीं शताब्दी में सर्वप्रथम अपनी लेखनी से ग्रन्थ लेखन का शुभारम्भ करने वाली परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के लिए आगम ही प्राण हैं , उन्होंने जो भी कहा या लिखा , आगम के परिप्रेक्ष्य में |
उन्होंने समय -समय पर अपनी शिष्या परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी से प्रासंगिक वार्ताएं करके अनेक शंकाओं का आगमानुसार समाधान कर शास्त्रीय ज्ञान प्रदान किया है , उन्हीं का संकलन इस पुस्तक में पूज्य चंदनामती माताजी ने भव्यों के सम्यग्ज्ञान को दृढ बनाने के लिए किया है|