-दोहा-
सरस्वती-लक्ष्मी जहाँ, नितप्रति करें प्रणाम।
पुण्यमयी उस धाम का, समवसरण है नाम।।१।।
-शार्दूलविक्रीडित छंद-
भाषासर्वमयो ध्वनिर्जिनपतेर्दिव्यध्वनिर्गीयते।
आनन्त्यार्थसुभृत् मनोगततमो हंति क्षणात्प्राणिन:।।
दिव्यस्थानगतामसंख्यजनतामाल्हादयन् नि:सृत:।
ते दिव्यध्वनयस्त्रिलोकसुखदा: कुर्वन्तु नो मंगलम्।।१।।
-अनुष्टुप् छंद-
तीर्थंकर मुखोद्भूता, द्वादशांगी सरस्वती।
वाग्देवी श्रुतदेवी च, कुर्यात् सर्वस्य मंगलम्।।२।।
तीर्थकृत् श्रीविहारेषु, या लक्ष्मी: पद्मधृत्करा।
सरस्वत्या समं याति, सा कुर्यात् मम मंगलम्।।३।।
(थाली में पुष्पांजलि करें)