(१८ दोष निवारण १८ व्रत)
तीर्थंकर भगवान के अथवा अन्य महापुरुषों के ४ घातिकर्म के नष्ट होने के बाद केवलज्ञान प्रगट हो जाता है तब उनके क्षुधा, तृषा आदि १८ दोष नहीं रहते हैं। उन १८ दोषों में ही अनंतदोष समाविष्ट हैं, अत: इन १८ दोषों को दूर करने के लिये अर्थात् केवलज्ञान की प्राप्ति के लिये यह व्रत करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से तात्कालिक भी रोग, शोक आदि दूर होते हैं एवं परंपरा से कर्मों का नाश करके मोक्ष प्राप्त करने की शक्ति जाग्रत होती है। इस व्रत में अर्हंतदेव की पूजा करें। यह व्रत अष्टमी, चतुर्दशी आदि किसी भी तिथि में कर सकते हैं।
व्रत पूर्ण होने पर अपनी शक्ति के अनुसार उद्यापन करें। उद्यापन में अर्हंत परमेष्ठी विधान अथवा पंचपरमेष्ठी विधान अवश्य करें।
ॐ ह्रीं अष्टादशदोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
ॐ ह्रीं क्षुधामहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१।।
ॐ ह्रीं तृषामहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।२।।
ॐ ह्रीं भयमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।३।।
ॐ ह्रीं क्रोधमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।४।।
ॐ ह्रीं िंचतामहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।५।।
ॐ ह्रीं जरामहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।६।।
ॐ ह्रीं रागमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।७।।
ॐ ह्रीं मोहमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।८।।
ॐ ह्रीं रोगमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।९।।
ॐ ह्रीं मृत्युमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१०।।
ॐ ह्रीं स्वेदमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।११।।
ॐ ह्रीं विषादमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१२।।
ॐ ह्रीं मदमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१३।।
ॐ ह्रीं रतिमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१४।।
ॐ ह्रीं विस्मयमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१५।।
ॐ ह्रीं निद्रामहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१६।।
ॐ ह्रीं जन्ममहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१७।।
ॐ ह्रीं अरतिमहादोषरहिताय तथैवदोषनाशनसमर्थाय श्री अर्हत्परमेष्ठिने नम:।।१८।।