पादोपगमनमरण में अपने पैरों से चलकर अर्थात् संघ से निकलकर उपयुक्त स्थान पर आश्रय लेने की बात है, इसलिए पैरों से चलकर उपगमनपूर्वक होने वाले मरण को पादोपगमनमरण कहा गया है, इसी पादोपगमनमरण को प्रायोपगमनमरण और प्रायोवेशनमरण के नाम से भी उद्धृत किया गया है, वहाँ प्राकृतपाठ ‘पाउग्गगमणमरणं’ है। यहाँ प्रायोग्य से अभिप्राय संसार का अंत करने योग्य संहनन और संस्थान से लेना अपेक्षित है। संसार का अंत करने योग्य संहनन और संस्थान की प्राप्ति पूर्वक होने वाले मरण को प्रायोपगमनमरण और प्रायोपवेशनमरण माना गया है।. भगवती आराधना की विजयोदया टीका, गाथा—२८ इस तरह की समाधि लेने वाला न स्वयं अपनी सेवा करता है और न दूसरों से कराता है, किन्तु इतना विशेष है कि प्रायोपगमन में तृणों के संथरे का अर्थात्