शास्त्रों में अनेक प्रकार के व्रतों के करने का विधान है। ‘‘मराठी व्रत कथा संग्रह’’ में सहस्रनामव्रत करने की विधि बतलाई गई है। इस व्रत में श्री जिनेन्द्रदेव के एक हजार आठ नामों के एक हजार आठ व्रत करने को कहा है। व्रत की उत्तम विधि उपवास है, मध्यम विधि में नीरस पेय आदि लेना चाहिए और जघन्य विधि में एकाशन करके भी व्रत किया जाता है। इस व्रत को ‘‘रानी चेलना’’ ने श्री गौतम स्वामी से ग्रहण करके किया था, ऐसा ‘‘मराठी व्रत कथा संग्रह’’ में कहा है।
व्रत के दिन जिनप्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके श्री आदिनाथ भगवान की एवं सहस्रनाम की पूजन करना चाहिए। पुन: प्रत्येक व्रत में क्रम से एक-एक मंत्र की पूजा व जाप्य भी कर सकते हैं। जैसे-प्रथम व्रत में भगवान के सहस्रनामों में प्रथम नाम ‘‘श्रीमान्’’ है, उसकी पूजन और जाप्य इस प्रकार है-
ॐ ह्रीं श्रीमन् जिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीमन् जिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीमन् जिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
ॐ ह्रीं श्रीमते जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्रीमते संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।।
ॐ ह्रीं श्रीमते अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीमते कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीमते क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीमते मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीमते अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं श्रीमते मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
अर्घ्य-
उदकचंदनतंदुलपुष्पवैâ:, चरुसुदीपसुधूपफलार्घ्यवैâ:।
धवलमंगलगानरवाकुलै:, जिनगृहे जिनराजमहं यजे।।
ॐ ह्रीं श्रीमते अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं………….
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
इस प्रकार पूजन करके इसी मंत्र का जाप्य करें।
जाप्य-ॐ ह्रीं श्रीमते नम:।
समुच्चय जाप-ॐ ह्रीं गोमुखयक्षचक्रेश्वरीयक्षीसहिताय अष्टोत्तर- सहस्रनामधारक श्री वृषभजिनेन्द्राय नम:।
द्वितीय व्रत में-ॐ ह्रीं स्वयंभूजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! इत्यादि प्रकार से आह्वानन करके-
‘‘ॐ ह्रीं स्वयंभुवे जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं’’ इत्यादि बोलकर अष्टद्रव्य से पूजन करके ‘‘ॐ ह्रीं स्वयंभुवे नम:’’ मंत्र की जाप्य करें। इसी प्रकार प्रत्येक मंत्र की पूजा में नामवाची शब्द में ‘‘जिनेन्द्र’’ शब्द लगाकर संबोधन विभक्ति से आह्वानन करके चतुर्थी विभक्ति लगाकर पूजन करना चाहिए जैसा कि मंत्रों में चतुर्थी विभक्ति है ही है।
इस व्रत के उद्यापन में ‘‘बृहत् सहस्रनाम मंडल विधान’’ करके १००८ कमल पुष्पों को चढ़ाकर १००८ कलशों से जिनप्रतिमा का महाअभिषेक करना चाहिए। अपनी शक्ति के अनुसार जिनप्रतिमा, जिनमंदिर आदि का निर्माण कराकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आदि कराना चाहिए। यथाशक्ति मंदिर में उपकरणदान, चतुर्विध संघ को चतुर्विध दान आदि देकर धर्मप्रभावनापूर्वक उद्यापन करके व्रत पूर्ण करना चाहिए।
लघु सहस्रनाम व्रत विधि-
महाराष्ट्र, राजस्थान आदि प्रांतों में व साधु संघों में सहस्रनाम व्रत में ग्यारह उपवास करने की भी परम्परा है। इसमें भी उपवास के दिन सहस्रनाम पूजा करके १००८ मंत्रों को पढ़कर समुच्चय जाप्य करना चाहिए। सहस्रनाम स्तोत्र पढ़कर एक-एक अध्याय के अंत में अर्घ्य चढ़ाने की भी परम्परा है इस प्रकार विधिवत् पूजन करके समुच्चय जाप्य करना चाहिए। समुच्चय जाप्य ऊपर दी गई है।
ग्यारह व्रतों में नीचे लिखी अलग-अलग जाप्य भी कर सकते हैं-
१. ॐ ह्रीं श्रीमदादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
२. ॐ ह्रीं दिव्यभाषापत्यादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
३. ॐ ह्रीं स्थविष्ठादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
४. ॐ ह्रीं महाशोकध्वजादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
५. ॐ ह्रीं वृक्षलक्षणादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
६. ॐ ह्रीं महामुन्यादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
७. ॐ ह्रीं असंस्कृतादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
८. ॐ ह्रीं वृहद्बृहस्पत्यादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
९. ॐ ह्रीं त्रिकालदर्श्यादिशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
१०. ॐ ह्रीं दिग्वासादिअष्टोत्तरशतनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
११. ॐ ह्रीं श्रीमदादि-अष्टोत्तरसहस्रनामधारकाय श्री जिनेन्द्राय नम:।
इस व्रत को भी पूर्ण करके ‘‘सहस्रनाम मंडल विधान’’ करके यथाशक्ति उद्यापन करना चाहिए।
इस सहस्रनाम व्रत के प्रभाव से भव्यजीव नाना सुखों को भोगकर अंत में एक हजार आठ लक्षण व नाम के धारक ऐसे जिनेन्द्रदेव के पद को प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं। जो इस व्रत को नहीं कर सकते, वे भी यदि सहस्रनाम मंत्रों को पढ़ेंगे और पूजा करेंगे, तो नियम से अपनी स्मरणशक्ति व सम्यग्ज्ञान को वृद्धिंगत करते हुए जीवन में चारित्र को ग्रहण कर महान बनेंगे और परम्परा से मोक्ष प्राप्त करने के अधिकारी हो जावेंगे।