जिनवाणी के करणानुयोग विभाग में जैन भूगोल की जानकारी आती है । इस विषय में “अधोलोक के अंतर्गत ७ नारको” से जुड़े हुए कुछ प्रश्न प्रस्तुत है ।
प्रश्नोत्तर प्रस्तुतकर्ता – पंकज जैन शाह- चिंचवड, पुणे, महाराष्ट्र
अधोलोक कहाँ है और उसमे किस किसकी रचना है ? १४ राजु की ऊँचाई वाले लोकाकाश के निचले भाग मे सात राजु प्रमाण अधोलोक है और उसमे निगोद और ७ नरको की रचना है।
सात राजू ऊंचे अधोलोक मे निगोद और नरकों की अलग अलग ऊंचाइया कितनी है ? * सबसे नीचे के १ राजू मे निगोद है । * उसके उपर के १ राजू मे, महातमःप्रभा नाम का सातवां नरक है । * उसके उपर के १ राजू मे, तमःप्रभा नाम का छटवां नरक है । * उसके उपर के १ राजू मे, धूमप्रभा नाम का पांचवां नरक है । * उसके उपर के १ राजू मे, पंकप्रभा नाम का चौथा नरक है । * उसके उपर के १ राजू मे, बालुकाप्रभा नाम का तिसरा नरक है । * उसके उपर के १ राजू मे, शर्कराप्रभा नाम का दुसरा और रत्नप्रभा नाम का प्रथम नरक है । इसप्रकार से ७ राजू ऊंचे अधोलोक मे, १ राजू मे २ नरक, ५ राजू मे ५ नरक और १ राजू मे निगोद है ।
अधोलोक से मध्यलोक तक कि चौडाई घटने का क्रम कैसा है ? * अधोलोक के तल भाग मे : ७ राजू * सातवी पृथ्वी-नरक के निकट : ६ १/७ राजू * छटवी पृथ्वी-नरक के निकट : ५ २/७ राजू * पांचवी पृथ्वी-नरक के निकट : ४ ३/७ राजू * चौथी पृथ्वी-नरक के निकट : ३ ४/७ राजू * तिसरी पृथ्वी-नरक के निकट : २ ५/७ राजू * दूसरी पृथ्वी-नरक के निकट : १ ६/७ राजू * प्रथम पृथ्वी-नरक के निकट : १ राजू संपूर्ण मध्य लोक की चौडाई १ राजू मात्र ही है।
अधोलोक का घनफल कितना है? * अधोलोक मे निचे की पूर्व-पश्चिम् चौडाई ७ राजू है। तथा मध्यलोक के यहाँ १ राजू है। (कुल ८ राजू) * यह कुल चौडाई २ विभागो मे मिलकर है इसलिये अॅवरेज चौडाई निकालने के लिये, इस मे २ का भाग देने से चार राजू हुए।(८/२ = ४) * अधोलोक की ऊंचाई ७ राजू और मोटाई ७ राजू है * इस प्रकार अधोलोक का घनफल = ऊँचाई × चौडाई × मोटाई = ७ राजू × ४ राजू × ७ राजू = १९६ घनराजू है।
अधोलोक मे कितनी पृथ्वीयाँ है? और उनके नाम क्या है? * अधोलोक मे ७ पृथ्वीयाँ है। इन्हे नरक भी कहते है। इन के नाम इस प्रकार है॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ * अधोलोक में सबसे पहली, मध्यलोक से लगी हुई, ‘रत्नप्रभा’ पृथ्वी है। * इसके कुछ कम एक राजु नीचे ‘शर्कराप्रभा’ है। * इसी प्रकार से एक-एक के नीचे बालुका प्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तम:प्रभा और महातम:प्रभा भूमियाँ हैं। * घम्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मघवी और माघवी ये भी इन पृथ्वियों के अनादिनिधन नाम हैं।
अधोलोक कि पृथ्वीयों की अलग अलग मोटई कितनी है? धम्मा (रत्नप्रभा) : १ लाख ८०,००० योजन # वंशा (शर्कराप्रभा) : ३२,००० योजन # मेघा (बालुकाप्रभा) : २८,००० योजन # अंजना (पंकप्रभा) : २४,००० योजन # अरिष्टा (धूमप्रभा) : २०,००० योजन # मघवी (तमःप्रभा) : १६,००० योजन # माघवी (महातमःप्रभा) : ८,००० योजन नोट : ये सातो पृथ्वीयाँ, उर्ध्व दिशा को छोड शेष ९ दिशाओ मे घनोदधि वातवलय से लगी हुई है।
रत्नप्रभा पृथ्वी के कितने भाग है? और उनकी मोटाईया कितनी है? रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ भाग हैं- # खरभाग (१६००० योजन) # पंकभाग (८४००० योजन) # अब्बहुलभाग (८०००० योजन)
रत्नप्रभा पृथ्वी मे किस किस के निवास है? * खरभाग और पंकभाग में भवनवासी तथा व्यंतरवासी देवों के निवास हैं। * अब्बहुलभाग में प्रथम नरक के बिल हैं, जिनमें नारकियों के आवास हैं।
खरभाग के कितने भेद है और उनकी मोटाईया कितनी है? * खरभाग के १६ भेद है। * चित्रा, वज्रा, वैडूर्या, लोहिता, कामसारकल्पा, गोमेदा, प्रवाला, ज्योतिरसा, अंजना, अंजनमुलिका, अंका, स्फटिका, चंदना, सर्वाथका, वकुला और शैला * खरभाग की कुल मोटाई १६,००० योजन है। उपर्युक्त हर एक पृथ्वी १००० योजन मोटी है।
खरभाग की प्रथम पृथ्वी का नाम “चित्रा” कैसे सार्थक है? खरभाग की प्रथम पृथ्वी मे अनेक वर्णो से युक्त महितल, शीलातल, उपपाद, बालु, शक्कर, शीसा, चाँदी, सुवर्ण, आदि की उत्पत्तिस्थान वज्र, लोहा, तांबा, रांगा, मणिशीला, सिंगरफ, हरिताल, अंजन, प्रवाल, गोमेद, रुचक, कदंब, स्फटिक मणि, जलकांत मणि, सुर्यकांत मणि, चंद्रकांत मणि, वैडूर्य, गेरू, चन्द्राश्म आदि विवीध वर्ण वाली अनेक धातुए है। इसीलिये इस पृथ्वी का “चित्रा” नाम सार्थक है ==नारकी जीव कहाँ रहते है?== नारकी जीव अधोलोक के नरको मे जो बिल है, उनमे रहते है।
नरको मे बिल कहाँ होते है? रत्नप्रभा पृथ्वी के अब्बहुल भाग से लेकर छठे नरक तक की पृथ्वीयों मे, उनके उपर व निचे के एक एक हजार योजन प्रमाण मोटी पृथ्वी को छोडकर पटलों के क्रम से और सातवी पृथ्वी के ठिक मध्य भाग मे नारकियों के बिल है।
प्रत्येक नरक मे कितने बिल है? * सातों नरको मे मिलकर कुल ८४ लाख बिल इस्प्रकार् है। * प्रथम पृथ्वी : ३० लाख बिल * द्वितीय पृथ्वी : २५ लाख बिल * तृतीय पृथ्वी : १५ लाख बिल * चौथी पृथ्वी : १० लाख बिल * पाँचवी पृथ्वी : ३ लाख बिल * छठी पृथ्वी : ९९,९९५ बिल * साँतवी पृथ्वी : ५ बिल
कौनसे नारकी बिल उष्ण और कौनसे शीत है? * पहली, दुसरी, तीसरी और चौथी नरको के सभी बिल और पाँचवी पृथ्वी के ३/४ बिल अत्यंन्त उष्ण है। * इनकी उष्णता इतनी तीव्र होती है कि अगर उनमे मेरु पर्वत इतना लोहे का शीतल पिंड डाला जाय तो वह तल प्रदेश तक पहुँचने से पहले ही मोम के समान पिघल जायेगा। * पाँचवी पृथ्वी के बाकी १/४ बिल तथा छठी और साँतवी पृथ्वी के सभी बिल अत्यन्त शीतल है। * इनकी शीतलता इतनी तीव्र होती है कि अगर उनमे मेरु पर्वत इतना लोहे का उष्ण पिंड डाला जाय तो वह तल प्रदेश तक पहुँचने से पहले ही बर्फ जैसा जम जायेगा। * इसप्रकार नारकियोंके कुल ८४ लाख बिलों मे से ८२,२५,००० अति उष्ण होते है और १,७५,००० अति शीत होते है।
नारकीयों के बिल की दुर्गन्धता और भयानकता कितनी है? * बकरी, हाथी, घोडा, भैंस, गधा, उंट, बिल्ली, सर्प, मनुष्यादिक के सडे हुए माँस कि गंध की अपेक्षा, नारकीयों के बिल की दुर्गन्धता अनन्तगुणी होती है। * स्वभावतः गाढ अंधकार से परिपूर्ण नारकीयों के बिल क्रकच, कृपाण, छुरिका, खैर की आग, अति तीक्ष्ण सुई और हाथीयों की चिंघाड से भी भयानक है।
नारकीयों के बिल के कितने और कौन कौनसे प्रकार है? नारकीयों के बिल के निम्नलिखित ३ प्रकार है : # इन्द्रक : जो अपने पटल के सब बिलो के बीच मे हो, उसे इन्द्रक कहते है। इन्हे प्रस्तर या पटल भी कहते है। # श्रेणीबद्ध : जो बिल ४ दिशाओं और ४ विदिशाओं मे पंक्ति से स्थित रहते हे, उन्हे श्रेणीबद्ध कहते है। # प्रकीर्णक : श्रेणीबद्ध बिलों के बीच मे इधर उधर रहने वाले बिलों को प्रकीर्णक कहते है।
नरक इन्द्रक बिल श्रेणीबद्ध बिल प्रकीर्णक बिल प्रथम १३ ४४२० २९,९५,५६७ दुसरा ११ २६८४ २४,९७,३०५ तीसरा ९ १४७६ १४,९८,५१५ चौथा ७ ७०० ९,९९,२९३ पाँचवा ५ २६० २,९९,७३५ छठा ३ ६० ९९,९३२ साँतवा १ ४ ० कुल संख्या ४९ ९६०४ ८३,९०,३४७ “}
प्रथम नरक मे इन्द्रक बिलो की रचना किस प्रकार है, और उनके नाम क्या है? * प्रथम नरक मे १३ इन्द्रक पटल है। * ये एक पर एक ऐसे खन पर खन बने हुए है। * ये तलघर के समान भुमी मे है एवं चूहे आदि के बिल के समान है। * ये पटल औंधे मुँख और बिना खिडकी आदि के बने हुए है। * इसप्रकार इनका बिल नाम सार्थ है। * इन १३ इन्द्रक बिलों के नाम क्रम से सीमन्तक, निरय, रौरव, भ्रांत, उद्भ्रांत, संभ्रांत, असंभ्रांत, विभ्रांत, त्रस्त, त्रसित, वक्रान्त, अवक्रान्त, और विक्रान्त है।
श्रेणीबद्ध बिलों का प्रमाण कैसे निकालते है? * प्रथम नरक के सीमन्तक नामक इन्द्रक बिल की चारो दिशाओँमे ४९ – ४९ और चारो विदिशाओ मे ४८ – ४८ श्रेणीबद्ध बिल है। * चार दिशा सम्बन्धी ४ × ४९ = कुल १९६ और चार विदिशा सम्बन्धी ४ × ४८ = कुल १९२ हुए। * इसप्रकार सीमन्तक नामक एक इन्द्रक बिल सम्बन्धी कुल ३८८ श्रेणीबद्ध बिल हुए। * इससे आगे, दुसरे निरय आदि इन्द्रक बिलो के आश्रित रहने वाले श्रेणीबद्ध बिलो मे से एक एक बिल कम हो जाता है और प्रथम नरक के कुल ४४२० श्रेणीबद्ध बिल होते है।
प्रकीर्णक बिलों का प्रमाण कैसे निकालते है ? हर एक नरक के संपूर्ण बिलो की संख्या से उनके इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलो की संख्या घटाने से उस उस नरक की प्रकीर्णक बिलों की संख्या मिलती है। जैसे प्रथम नरक के कुल ३० लाख बिलो मे से १३ इन्द्रक और ४४२० श्रेणीबद्ध बिलो कि संख्या घटाने से प्रकीर्णक बिलो कि संख्या (२९,९५,५६७) मिलती है।
नारकी बिलों का विस्तार कितना होता है? * इन्द्रक बिलों का विस्तार संख्यात योजन प्रमाण है। * श्रेणीबद्ध बिलों का विस्तार असंख्यात योजन प्रमाण है। * कुछ प्रकीर्णक बिलों का विस्तार संख्यात योजन तो कुछ का असंख्यात योजन प्रमाण है। * कुल ८४ लाख बिलों मे से १/५ बिल का विस्तार संख्यात योजन तो ४/५ बिलों का असंख्यात योजन प्रमाण है। पृथक पृथक नरको मे संख्यात और असंख्यात बिलों का विस्तार कितना होता है?
नरक संख्यात योजन वाले बिल असंख्यात योजन वाले बिल् प्रथम ६ लाख २४ लाख दुसरा ५ लाख २० लाख तिसरा ३ लाख १२ लाख चौथा २ लाख ८ लाख पाँचवा ६० हजार २४ लाख छठा १९ हजार ९९९ ७९ हजार ९९६ साँतवा १ ४ कुल् १६ लाख ८० हजार ६७ लाख २० हजार “}
नारकी बिलों मे तिरछा अंतराल कितना होता है? * संख्यात योजन विस्तार वाले बिलों मे तिरछे रुप मे जघन्य अंतराल ६ कोस और उत्कृष्ठ अंतराल १२ कोस प्रमाण है। * असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों मे तिरछे रुप मे जघन्य अंतराल ७००० योजन और उत्कृष्ठ अंतराल असंख्यात योजन प्रमाण है।
नारकी बिलों मे कितने नारकी जीव रहते है? संख्यात योजन विस्तार वाले बिलों मे नियम से संख्यात तथा असंख्यात योजन विस्तार वाले बिलों मे असंख्यात नारकी जीव रहते है।
इन्द्रक बिलों का विस्तार कितना होता है? * प्रथम इन्द्रक का विस्तार ३५ लाख योजन और अन्तिम इन्द्रक का १ लाख योजन प्रमाण है। * दुसरे से ४८ वे इन्द्रक का प्रमाण तिलोयपण्णत्ती से समझ लेना चहिये।
इन्द्रक बिलों के मोटाई का प्रमाण कितना होता है? नरक इन्द्रक की मोटाई प्रथम १ कोस दुसरा १ १/२ कोस तिसरा २ कोस चौथा २ १/२ कोस पाँचवा ३ कोस छठा ३ १/२ कोस साँतवा ४ कोस “}
इन्द्रक बिलों के अंतराल का प्रमाण कितना है और उसे कैसे प्राप्त करे(कॅलक्युलेट करे)? इन्द्रक बिलों के अंतराल का प्रमाण : नरक आपस मे अंतर प्रथम ६४९९-३५/४८ योजन दुसरा २९९९-४७/८० योजन तिसरा ३२४९-७/१६ योजन चौथा ३६६५-४५/४८ योजन पाँचवा ४४९९-१/१६ योजन छठा ६९९८-११/१६ योजन साँतवा एक ही बिल होने से, अंतर नही होता “} अंतराल निकालने की विधी (उदाहरण) :* रत्नप्रभा पृथ्वी के अब्बहुल भाग मे जहाँ प्रथम नरक है – उसकी मोटाई ८०,००० योजन है। * इसके उपरी १ हजार और निचे की १ हजार योजन मे कोइ पटल नही होने से उसे घटा दे तो ७८,००० योजन शेष रहते है। * फिर एक एक पटल की मोटाई १ कोस होने से १३ पटलों की कुल मोटाई १३ कोस (३-१/४ योजन)भी उपरोक्त ७८००० योजन से घटा दे। * अब एक कम १३ पटलों से उपरोक्त शेष को भाग देने से पटलों के मध्य का अंतर मिल जायेगा। * (८०००० – २०००) – (१/४ × १३) ÷ (१३ – १)
६४९९-३५/४८ योजन एक नरक के अंतिम इन्द्रक से अगले नरक के प्रथम इन्द्रक का अंतर कितना होता है? आपस मे अंतर – प्रथम नरक के अंतिम इन्द्रक से दुसरे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् २,०९,००० योजन कम १ राजू – दुसरे नरक के अंतिम इन्द्रक से तिसरे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् २६,००० योजन कम १ राजू – तिसरे नरक के अंतिम इन्द्रक से चौथे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् २२,००० योजन कम १ राजू – चौथे नरक के अंतिम इन्द्रक से पाँचवे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् १८,००० योजन कम १ राजू – पाँचवे नरक के अंतिम इन्द्रक से छठे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् “” १४,००० योजन कम १ राजू “- ” छठे नरक के अंतिम इन्द्रक से साँतवे नरके के प्रथम इन्द्रक तक् ३,००० योजन कम १ राजू “}
नारकी जीव नरको मे उत्पन्न होते ही, उसे कैसा दुःख भोगना पडता है? * पाप कर्म से नरको मे जीव पैदा होकर, एक मुहुर्त काल मे छहों पर्याप्तियों को पूर्ण कर अकस्मिक दुःख को प्राप्त करता है। * पश्चात, वह भय से काँपता हुआ बडे कष्ट से चलने को प्रस्तुत होता है और छत्तीस आयुधो के मध्य गिरकर गेंद के समान उछलता है। * प्रथम नरक मे जीव ७ योजन ६५०० धनुष प्रमाण उपर उछलता है। आगे शेष नरको मे उछलने का प्रमाण क्रम से उत्तरोत्तर दूना दूना है। == नारकी जीव के जन्म लेने के उपपाद स्थान कैसे होते है?== * सभी प्रकार के बिलों मे उपर के भाग मे (छत मे)अनेक प्रकार के तलवारो से युक्त अर्धवृत्त और अधोमुख वाले जन्मस्थान है। * ये जन्म स्थान पहले से तिसरे पृथ्वी तक उष्ट्रिका, कोथली, कुंभी, मुदगलिका, मुदगर और नाली के समान है। * चौथे और पाँचवी पृथ्वी मे जन्मभुमियो के आकार गाय, हाथी, घोडा, भस्त्रा, अब्जपुट, अम्बरीष, और द्रोणी (नाव) जैसे है। * छठी और साँतवी पृथ्वी मे जन्मभुमियो के आकार झालर, द्वीपी, चक्रवाक, श्रृगाल, गधा, बकरा, ऊंट, और रींछ जैसे है। * ये सभी जन्मभुमिया अंत मे करोंत के सदृश चारो तरफ से गोल और भयंकर है।
परस्त्री सेवन का पाप करने वाले जीव को नरको मे कैसा दुःख उठाना पडता है? एैसे जीव के शरिर मे बाकी नारकी तप्त लोहे का पुतला चिपका देते है, जिससे उसे घोर वेदना होती है।
माँस भक्षण का पाप करने वाले जीव को नरको मे कैसा दुःख उठाना पडता है? एैसे जीव के शरिर के बाकी नारकी छोटे छोटे तुकडे करके उसी के मुँह मे डालते है।
मधु और मद्य सेवन का पाप करने वाले जीव को नरको मे कैसा दुःख उठाना पडता है? एैसे जीव को बाकी नारकी अत्यन्त तपे हुए द्रवित लोहे को जबरदस्ती पीला देते है, जिससे उसके सारे अवयव पिघल जाते है।
नरक की भुमी कितनी दुःखदायी है? नारकी भुमी दुःखद स्पर्शवाली, सुई के समान तीखी दुब से व्याप्त है। उससे इतना दुःख होता हे कि जैसे एक साथ हजारों बिच्छुओ ने डंक मारा हो।
नारकियों के साथ कितने रोगो का उदय रहता है? नारकियों के साथ ५ करोड ६८ लाख, ९९ हजार, ५८४ रोगो का उदय रहता है नारकियों का आहार कैसा होता है? * कुत्ते, गधे आदि जानवरों के अत्यन्त सडे हुए माँस और विष्ठा की दुर्गन्ध की अपेक्षा, अनन्तगुनी दुर्गन्धित मिट्टी नारकियों का आहार होती है। * प्रथम नरक के प्रथम पटल (इन्द्रक बिल) की ऐसी दुर्गन्धित मिट्टी को यदि हमारे यहाँ मध्यलोक मे डाला जाये तो उसकी दुर्गध से १ कोस पर्यन्त के जीव मर जायेंगे। * इससे आगे दुसरे, तिसरे आदि पटलों मे यह मारण शक्ती आधे आधे कोस प्रमाण बढते हुए साँतवे नरक के अन्तिम बिल तक २५ कोस प्रमाण हो जाती है। क्या तीर्थंकर प्रकृती का बंध करने वाला जीव नरक मे जा सकता है? * जी हाँ। अगर उस जीव ने तीर्थंकर प्रकृती का बंध करने से पहले नरकायु का बंध कर लिया है तो वह पहले से तिसरे नरक तक उत्पन्न हो सकता है। * एैसे जीव को भी असाधारण दुःख का अनुभव करना पडता है। पर सम्यक्त्व के प्रभाव से वो वहाँ पूर्वकृत कर्मों क चिंतवन करता है। * जब उसकी आयु ६ महिने शेष रह जाती है, तब स्वर्ग से देव आकर उस नारकी के चारो तरफ परकोटा बनाकर उसका उपसर्ग दुर करते है। * इसी समय मध्यलोक मे रत्नवर्षा आदि गर्भ कल्याणक सम्बन्धी उत्सव होने लगते है। नारकियों के दुःख के कितने भेद है? नरकों मे नारकियों को ४ प्रकार के दुःख होते है। # क्षेत्र जनित : नरक मे उत्पन्न हुए शीत, उष्ण, वैतरणी नदी, शाल्मलि वृक्ष आदि के निमीत्त से होने वाले दुःख को क्षेत्र जनित दुःख कहते है। # शारीरिक : शरीर मे उत्पन्न हुए रोगों के दुःख और मार-काट, कुंभीपाक आदि के दुःख शारीरिक कहलाते है। # मानसिक : संक्लेश, शोक, आकुलता, पश्चाताप आदि के निमीत्त से होने वाले दुःख को मानसिक दुःख कहते है। # असुरकृत : तिसरे नरक तक संक्लेश परिणाम वाले असुरकुमार जाति के भवनवासी देवों द्वरा उत्पन्न कराये गये दुःख को असुरकृत दुःख कहते है। नारकियों को परस्पर दुःख उत्पन्न करानेवाले असुरकुमार देव कौन होते है?* पुर्व मे देवायु का बन्ध करने वाले मनुष्य या तिर्यंच अनन्तानुबन्धी मे से किसी एक का उदय आने से रत्नत्रय को नष्ट करके असुरकुमार जाती के देव होते है। * सिकनानन, असिपत्र, महाबल, रुद्र, अम्बरीष, आदि असुर जाती के देव तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी (नरक) तक जाकर नारकियों को परस्पर क्रोध उत्पन्न करा-करा कर उनमे युद्ध कराते है और प्रसन्न होते है। == क्या नरको मे अवधिज्ञान होता है ?== * हाँ । नरको मे भी अवधिज्ञान होता है। * नरके मे उत्पन्न होते ही छहों पर्याप्तियाँ पुर्ण हो जाती है और भवप्रत्यय अवधिज्ञान प्रकट हो जाता है। * मिथ्यादृष्टि नारकियों का अवधिज्ञान विभंगावधि – कुअवधि कहलाता है। एवं सम्यगदृष्टि नारकियोंका ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है। == अलग अलग नरको मे अवधिज्ञान का क्षेत्र कितना होता है ?== * प्रथम नरक मे अवधिज्ञान का क्षेत्र १ योजन (४ कोस) है। दुसरे नरक से आगे इसमे आधे आधे कोस की कमी होती जाती है। * जैसे दुसरे नरके मे ३ १/२ कोस, तिसरे मे ३ कोस आदि। * साँतवे नरक मे यह प्रमाण १ कोस रह जाता है। नरको मे अवधिज्ञान प्रकट होने पर मिथ्यादृष्टि और सम्यगदृष्टि जीव की सोच मे क्या अंतर होता है ? * अवधिज्ञान प्रकट होते ही नारकी जीव पूर्व भव के पापोंको, बैर विरोध को, एवं शत्रुओं को जान लेते है। * जो सम्यगदृष्टि है, वे अपने पापों का पश्चाताप करते रहते है और मिथ्यादृष्टि पुर्व उपकारों को भी अपकार मानते हुए झगडा-मार काट करते है। * कोइ भद्र मिथ्यादृष्टि जीव पाप के फल को भोगते हुए, अत्यन्त दुःख से घबडाकर ‘वेदना अनुभव’ नामक निमित्त से सम्यगदर्शन को प्राप्त करते है। नरको मे सम्यक्त्व मिलने के क्या कारण है ? * धम्मा आदि तीन पृथ्वीयों मे मिथ्यात्वभाव से युक्त नारकियोँ मे से कोइ जातिस्मरण से, कोई दुर्वार वेदना से व्यथित होकर, कोई देवों का संबोधन पाकर सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। * पंकप्रभा आदि शेष चार पृथ्वीयों मे देवकृत संबोधन नही होता, इसलिये जातिस्मरण और वेदना अनुभव मात्र से सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। * इस तरह सभी नरकों मे सम्यप्त्व के लिये, कारणभूत सामग्री मिल जाने से नारकी जीव सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। जीव नरको मे किन किन कारणों से जाता है ? * मुलतः पाँच पापों का और सप्त व्यसनों का सेवन करने से जीव नरक मे जाता है। * हिंसा, झुठ, चोरी, अब्रम्ह, और परिग्रह ये पाँच पाप है। * चोरी करना, जुँआ खेलना, शराब पीना, माँस खाना, परस्त्री सेवन, वेश्यागमन, शिकार खेलना ये सप्त व्यसन है। प्रत्येक नरक के प्रथम पटल (बिल) और अन्तिम पटल मे नारकीयों के शरिर की अवगाहना कितनी होती है ?
प्रथम पटल मे !! अन्तिम पटल मे – प्रथम नरके मे ३ हाथ ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल – द्वितीय नरके मे ८ धनुष २ हाथ २४/११ अंगुल १५ धनुष २ हाथ १२ अंगुल – तृतीय नरके मे १७ धनुष ३४ २/३ अंगुल ३१ धनुष १ हाथ – चतुर्थ नरके मे ३५ धनुष २ हाथ २० ४/७ अंगुल ६२ धनुष २ हाथ – पंचम नरके मे ७५ धनुष १२५ धनुष – षष्ठम नरके मे १६६ धनुष २ हाथ १६ अंगुल २५० धनुष * साँतवे नरक के अवधिस्थान इन्द्रक बिल मे : ५०० धनुष * प्रत्येक नरक के अन्तिम पटल के शरिर की अवगाहना उस नरक की उत्कृष्ठ अवगाहना होती है। लेश्या किसे कहते है ? * कषायों के उदय से अनुरंजित, मन वचन और काय की प्रवृत्ती को लेश्या कहते है। * उसके कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, और शुक्ल ऐसे ६ भेद होते है। * प्रारंभ की तीन लेश्यायें अशुभ है और संसार की कारण है एवं शेष तीन लेश्यायें शुभ है और मोक्ष की कारण है। नरक मे कौनसी लेश्यायें होती है ? * प्रथम और द्वितीय नरक मे : कापोत लेश्या * तृतीय नरक मे : ऊपर कापोत और निचे नील लेश्या * चतुर्थ नरक मे : नील लेश्या * पंचम नरक मे :ऊपरी भाग मे नील और निचले भाग मे कृष्ण लेश्या * षष्ठम नरक मे :कृष्ण लेश्या * सप्तम नरक मे :परमकृष्ण लेश्या क्या नारकीयोंकी अपमृत्यु होती है ? * नहीं। नारकीयोंकी अपमृत्यु नहीं होती है। * दुःखो से घबडाकर नारकी जीव मरना चाहते है, किन्तु आयु पूरी हुए बिना मर नही सकते है। * दुःख भोगते हुए उनके शरिर के तिल के समान खन्ड खन्ड होकर भी पारे के समान पुनः मिल जाते है। नारकीयोंकी जघन्य, मध्यम, और उत्कृष्ठ आयु कितनी होती है ? नारकीयोंकी जघन्य आयु १०,००० वर्ष और उत्कृष्ठ ३३ सागर की होती है। १०,००० वर्ष से एक समय अधिक और ३३ सागर से एक समय कम के मध्य की सभी आयु मध्यम कहलाती है। ==प्रत्येक नरक के पटलों की अपेक्षा जघन्य, और उत्कृष्ठ आयु का क्या प्रमाण है?== प्रत्येक नरक के पहले पटल की उत्कृष्ठ आयु, दुसरे पटल की जघन्य आयु होती है। उदा॰ प्रथम नरक मे १३ पटल है। इसमे प्रथम पटल मे उत्कृष्ठ आयु, ९०,००० वर्ष है। यही आयु दुसरे पटल की जघन्य आयु हो जाती है। इसीप्रकार प्रथम नरक की उत्कृष्ठ आयु, दुसरे नरक की जघन्य आयु होती है।
नरक !! जघन्य आयु !! उत्कृष्ठ आयु – पहला १० हजार वर्ष १ सागर- दुसरा १ सागर ३ सागर – तिसरा ३ सागर ७ सागर – चौथा ७ सागर १० सागर – पाँचवा १० सागर १७ सागर – छठा १७ सागर २२ सागर – साँतवा २२ सागर ३३ सागर आयु के अन्त मे नारकियों के शरिर वायु से ताडित मेघों के समान निःशेष विलिन हो जाते है। प्रत्येक नरक मे नारकियों के जन्म लेने के अन्तर का क्या प्रमाण है? नरक मे उत्पन्न होने वाले दो जीव के जन्म के बीच के अधिक से अधिक समय (अन्तर) का प्रमाण निम्नप्रकार है। * प्रथम नरक मे : २४ मुहूर्त * द्वितीय नरक मे : ७ दिन * तृतीय नरक मे : १५ दिन * चतुर्थ नरक मे : १ माह * पंचम नरक मे : २ माह * षष्ठम नरक मे : ४ माह * सप्तम नरक मे : ६ माह कौन कौन से जीव किन-किन नरकों में जाने की योग्यता रखते हैं ? * कर्म भूमि के मनुष्य और संज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच जीव ही मरण करके अगले भव में नरकों में जा सकते हैं । * असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच जीव प्रथम नरक तक, सरीसृप द्वितीय नरक तक जा सकता है। * पक्षी तिसरे नरक तक, भुजंग आदि चौथे तक, सिंह पाँचवे तक, स्त्रियाँ छठे तक जा सकते हैं । * मत्स्य और मनुष्य साँतवे नरक जाने की योग्यता रखते हैं । * नारकी, देव, भोग भूमियाँ , विकलत्रय और स्थावर जीव मरण के बाद अगले भव में नरकों में नहीं जाते। नरक से निकलकर नारकी किन-किन पर्याय को प्राप्त कर सकते हैं ? * नरक से निकलकर कोई भी जीव अगले भव मे चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायण नही हो सकता है। * प्रथम तीन नरकों से निकले जीव तीर्थंकर हो सकते हैं । * चौथे नरक तक के जीव वहाँ से निकलकर, मनुष्य पर्याय में चरमशरीरी होकर मोक्ष भी जा सकते हैं । * पाँचवें नरक तक के जीव संयमी मुनि हो सकते हैं । * छठे नरक तक के जीव देशव्रती हो सकते हैं । * साँतवें नरक से निकले जीव कदाचित् सम्यक्त्व को ग्रहण कर सकते हैं । मगर ये नियम से पंचेंद्रिय, पर्याप्तक, संज्ञी तिर्यंच ही होते हैं । मनुष्य नही हो सकते हैं ।