१. अहिंसा महाव्रत – | पाँच स्थावर और त्रस इन छह काय के जीवों की हिंसा का पूर्ण त्याग। |
२. सत्य महाव्रत – | सूक्ष्म और स्थूल हर प्रकार के झूठ बोलने का त्याग। |
३. अचौर्य महाव्रत – | जल और मिट्टी के सिवाय समस्त परवस्तुओं को बिना दिये नहीं लेना। |
४. ब्रह्मचर्यव्रत – | अपनी पत्नी आदि स्त्रीमात्र का त्याग कर पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत। |
५. अपरिग्रह महाव्रत – | धन, मकान, स्त्री, पुत्र आदि बाह्य परिग्रह एवं राग-द्वेष आदि अंतरंग परिग्रह का त्याग। |
६. ईर्या समिति- | चार हाथ आगे जमीन को देखते हुए पद विहार करना। |
७. भाषा समिति – | प्राणीमात्र से हित-मित-प्रिय एवं आगम के अनुकूल वचन बोलना। |
८. एषणा समिति – | गृहस्थ के द्वारा नवधाभक्ति दिये गये शुद्ध प्रासुक आहार को ग्रहण करना। |
९. आदान निक्षेपण समिति – | मयूर पिच्छी के द्वारा परिमार्जन करके देख शोध कर वस्तु रखना, उठाना। |
१०. उत्सर्ग समिति – | मर्यादायुक्त स्थान को देख शोध कर मलमूत्र विसर्जन करना। |
११. स्पर्शनेन्द्रियजय – | सुखदायक कोमल स्पर्शादि में या कठोर कंकरीली भूमि आदि के स्पर्श में आनंद या खेद नहीं करना। |
१२. रसना इंद्रियजय – | जिह्वालोलुपता का त्याग कर गोचरीवृत्ति से रूखा-सूखा नीरस भोजन ग्रहण करना। |
१३. घ्राणेंद्रियजय-सुगंध – | दुर्गन्ध दोनों में समताभाव रखना। |
१४. चक्षुइंद्रियजय – | सुन्दररूप वाले अथवा असुंदर पदार्थों को देखकर समदृष्टि रखना। |
१५. कर्णेंद्रिय जय – | अच्छे-अच्छे संगीत आदि एवं कर्णकटु शब्द सुनकर भी वीतराग भाव होना। |
१६. सामायिक – | प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम तीनों कालों में देववंदना विधिपूर्वक सामायिक करना। |
१७. स्तव – | कृतिकर्मपूर्वक चौबीस तीर्थंकर की स्तुति करना। |
१८. वंदना – | कृतिकर्मपूर्वक अरहंत सिद्ध आदि की वंदना करना। |
१९. प्रतिक्रमण – | अपने ज्ञात-अज्ञात दोषों के क्षालन हेतु दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण करना। |
२०. प्रत्याख्यान – | एक दिन के आहार के पश्चात् दूसरे दिन तक चतुर्विध आहार का त्याग, रस परित्याग या बेला, तेला आदि करना। |
२१. कायोत्सर्ग – | काय से ममत्व का त्याग कर नौ, सत्ताईस या एक सौ आठ बार णमोकार मंत्र का जाप्य करना। |
२२. केशलोंच – | अपने सिर तथा दाढ़ी मूंछ के केशों को प्रति दूसरे, तीसरे या चतुर्थ माह हाथों से उखाड़ना। |
२३. अचेलक – | संपूर्ण वस्त्रों का त्याग कर नग्न दिगम्बर वेश धारण करना। |
२४. अस्नान – | दीक्षा के पश्चात् जीवन पर्यंत के लिए स्नान का त्याग। |
२५. भूमिशयन – | लकड़ी के पाटे, चटाई, घास अथवा भूमि पर शयन करना। |
२६. अदंतधावन – | मुख की शोभा हेतु दाँतों का परिमार्जन नहीं करना। |
२७. स्थितिभोजन – | खड़े होकर करपात्र में भोजन करना। |
२८. एकभक्त – | चौबीस घंटे में, दिन में एक ही बार श्रावक के घर में आहार ग्रहण करना। |