समस्त बीमारियों से बचाव रात को सोते समय दो काली हरड़ का चूर्ण की फंकी लेकर २५० ग्राम दूध पीते रहने पर कोई बीमारी नहीं होती।कम से कम सप्ताह में एक बार अवश्य लें। विशेष: काली हरड़ हानिरहित हल्का विरेचक है। यह वात, पित्त और कफ से उत्पन्न दोषों को बलगम को पाखाना द्वारा निकाल देती है। हरड़ शरीर से रोग के अंश को निकालती है और रोग से मुकाबला करने की शक्ति देती है।
(१) हरड़ का मुख्य काम शरीर के सभी अंगों से अनावश्यक पदार्थों को निकाल कर न प्रत्येक अंग यथा हृदय, मस्तिष्क , पेट , रक्त आदि को प्राकृतिक दशा में नियमित करना है। इसी कारण हरड़ का सेवन करने वाला बीमारियों से बचा रहता है।
(२) रोजाना रात को सोते समय सेवन करने से फुन्सियां, दाने और मुहांसे आदि नहीं निकलते। फुन्सियों पर हरड़ पीसकर लेप करने से ये ठीक हो जाती हैं।
(३)बल—बुद्धि बढ़ाने के अथवा मल—मूत्र साफ लाने के लिए इसे भोजन के साथ खाएं। भोजन पचाने के लिए जुकाम, फ्लू, वात एवं कफ विकार में भोजन के बाद खाएं।
(४) हरड़ चबाकर खाने से भूख बढ़ती है पीसकर चूर्ण खाने से पेट साफ होता है। उबालकर भाप में पकाकर खाने से दस्त बंद होते हैं और मल बंधता है। भूनकर खाने से वात, पित्त और कफ—त्रिदोषों को समाप्त करती है।
(५) वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ, शरद ऋतु में शर्करा के साथ, हेमन्त में सौंठ के साथ, शिशिर में पिपली के साथ, बसन्त में शक्कर की चाशनी के साथ तथा ग्रीष्म में गुड़ के साथ हरड़ का चूर्ण खाना चाहिए।
(६)अर्श, अजीर्ण, गुल्म, वात रक्त तथा शोध में हऱड़—चूर्ण गुड़ के साथ देने से लाभ होता है। विषम ज्वर में शक्कर की चाशनी के साथ अम्लपित्त, रक्तपित्त, जीर्ण ज्वर में मुनक्का के साथ, आमवात, आंत्रवृद्धि, वृषण वृद्धि पर एरण्ड तेल के साथ लेना चाहिए। बलवृद्धि के लिए हरड़ चूर्ण को लोहे के पात्र में रात्रि को चुपड़ कर प्रात: घी और शक्कर की चाशनी के साथ खाने से बलवृद्धि तथा समस्त धातुओं की पुष्टि होती है।मात्रा— एक ग्राम से तीन ग्राम तक। सावधानी: दुर्बल,थके, पतले, व्रत वाले, गर्म प्रकृतिवाले, गर्भवती स्त्री को इसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए। विकल्प: तीन सौ ग्राम (एक गिलास) पानी में तीन चम्मच त्रिफला का मोटा—मोटा कूटा हुआ चूर्ण डालकर रात में भिगों दें। प्रात: चूर्ण सहित पानी को दो मिनट उबालें। इस त्रिफला की चाय को छानकर , पीने लायक गर्म रहने पर, पी लें। मीठे के लिए उसमें मिश्री मिला सकते हैं। इस प्रयोग के साथ सात्विक भोजन किया जाये तो जीवन पर्यन्त डॉक्टरों और दवाइयों के चक्कर से मुक्त रहकर आप अपना स्वास्थ्य कायम रख सकेगे। आसन — प्राणायाम में केवल १. उत्तान पादासन, २. भुजंगासन, ३. वज्रासन, ४. श्वासन, ५. भ्रमर—प्राणायाम का नियमित अभ्यास सामान्य व्यक्ति को, बिना एक पैसा खर्च किए और बिना किसी औषधि सेवन के, सदैव स्वस्थ, सुन्दर एवं कार्यक्षम बनाये रखने तथा डॉक्टरों और दवाइयों के चक्करों से बचाये रखने का एक सहज और विश्वसनीय उपाय है। इसके लिए केवल पन्द्रह मिनट प्रतिदिन देना पर्याप्त है।