‘‘जिस दिन भगवान महावीर सिद्ध हुए उसी दिन गौतम गणधर केवलज्ञान को प्राप्त हुए। ये बारह वर्षों तक केवलीपद में रहकर सिद्धपद को प्राप्त हुए उसी दिन सुधर्मस्वामी केवली हुए, ये भी बारह वर्षों तक केवली रहकर मुक्त हुए तब जम्बूस्वामी केवली हुए, ये अड़तीस वर्षों तक केवली रहे अनंतर मुक्त हो गये। पुन: कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुए। यह १२+१२+३८=६२ वर्ष का काल अनुबद्ध केवलियों के धर्म प्रवर्तन का माना गया है। केवलियों में अंतिम केवली ‘श्रीधर’ कुंडलगिरी से सिद्ध हुए हैं और चारण ऋषियों में अंतिम ऋषि सुपार्श्र्व नामक हुए हैं। प्रज्ञाश्रमणों में अंतिम वङ्कायश नामक प्रज्ञाश्रमण मुनि और अवधिज्ञानियों में अंतिम श्री नामक ऋषि हुए हैं। मुकुटधरों में अंतिम चन्द्रगुप्त ने जिन दीक्षा धारण की। इससे पश्चात् मुकुटधारी राजाओं ने जैनेश्वरी दीक्षा नहीं ली है। अनुबद्ध केवली के अनंतर नंदी, नंदिमित्र, अपराजित, गोवद्र्धन और भद्रबाहु ये पाँच श्रुतकेवली हुए है। इनका काल ‘सौ वर्ष’ प्रमाण है। पुन: विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और सुधर्म ये ग्यारह आचार्य दशपूर्व के धारी हुए हैं। इन सबका काल ‘एक सौ तिरासी’ वर्ष है। अनंतर नक्षत्र, जयपाल, पांडु, ध्रुवसेन और कंस ये पाँच आचार्य ग्यारह अंग के धारी हुए हैं। इनका काल ‘दो सौ बीस’ वर्ष है। पुन: सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ये चार आचार्य आचारांग के धारक हुए हैं। ये चारों आचार्य ग्यारह अंग और चौदह पूर्वों के एकदेश के भी ज्ञाता थे। इनका काल ‘एक सौ अठारह’ वर्ष है। इस प्रकार गौतम स्वामी से लेकर आचारांग धारी आचार्यों तक का काल ६२+१००+१८३+२२०+११८=६८३ छह सौ तिरासी वर्ष प्रमाण है। इसके अनंतर २०३१७ वर्षों तक धर्म प्रवर्तन के लिए कारणभूत ऐसा श्रुततीर्थ चलता रहेगा, पुन: काल दोष से व्युच्छेद को प्राप्त हो जायेगा। इतने मात्र समय में अर्थात् ६८३+२०३१७=२१००० इक्कीस हजार वर्षों के समय में चातुर्वण्र्य संघ जन्म लेता रहेगा।