मार्ग और अवस्थिति-श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सावरगाँव’ महाराष्ट्र प्रान्त के तुलजापुर तालुका में उस्मानाबाद जिले में अवस्थित है। शोलापुर से सावरगाँव के लिए सूरतगाँव होती हुई एक बस संध्या को ५ बजे जाती है। शोलापुर से सूरतगांव के लिए तो अनेक बसें चलती हैं। शोलापुर से सूरतगाँव २५ किमी. है। सूरतगाँव से सावरगाँव के लिए बैलगाड़ियाँ भी मिलती हैं।
अतिशय-इस क्षेत्र पर भगवान पार्श्वनाथ की बड़ी मनोज्ञ प्रतिमा है। इस प्रदेश के लोक-मानस में ऐसी श्रद्धा व्याप्त है कि यह प्रतिमा अतिशयसम्पन्न है और इसकी भक्ति करने से मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इसी श्रद्धावश अनेक लोग यहाँ मनौती मा्नाने आते हैं। यह भी कहा जाता है कि दिन में इस मूर्ति के तीन रूप बदलते हैं। प्रात:काल मूर्ति के मुख पर बाल्यकाल के भाव अंकित रहते हैं, मध्यान्ह में मुखमुद्रा पर तारुण्य का ओज रहता है और संध्या के समय उसके मुख पर वार्धक्य झलकता है।
क्षेत्र-दर्शन-जिनालय गाँव के मध्य में बना हुआ है। सीढ़ियों से चढ़कर जिनालय के मुख्य द्वार में प्रवेश करते हैं। द्वार के ऊपर नौबतखाना बना हुआ है। संभवत: प्राचीनकाल में इस मंदिर का बहुत वैभव होगा और यहाँ चारों संध्याओं के समय नौबत बजती होगी। चारों ओर ऊँची दीवार बनी हुई है। मंदिर मध्य में है। उसके चारों ओर खुला सहन है। मंदिर में प्रवेश करने पर सामने गर्भगृह में वेदी पर मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ की ४ फीट ४ इंच ऊँची और ३ फीट चौड़ी कृष्णवर्ण की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह नौ फणमण्डित है। इसके पृष्ठ भाग में सर्पवलय है। इसके कर्ण स्कंधचुम्बी हैं। वक्ष पर श्रीवत्स नहीं है। इस प्रतिमा के ऊपर संवत् १९८३ में लेप कराया गया था। इससे प्रतिमा की शैली और लेख दब गया है। अत: इसका काल-निर्णय करना कठिन है। लेप के पश्चात् प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई। इस अवसर पर पूज्य आचार्य शांतिसागर जी अपने संघ सहित पधारे थे। इस वेदी पर मूलनायक के अतिरिक्त १ फुट ७ इंच ऊँची और संवत् १९९० में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ की एक पाषाण प्रतिमा और धातु की ९ प्रतिमाएँ और हैं। गर्भगृह के द्वार के सिरदल पर अर्हन्त मूर्ति बनी हुई है। द्वार पाषाण का बना हुआ है और अलंकृत है। आगे बरामदा है। इसमें दो स्तंभ हैं, उनके सिरदल पर भी अर्हन्त प्रतिमाएँ बनी हुई हैं। दायीं ओर एक चौकोर पाषाणखण्ड के ऊपर २ फीट ४ इंच ऊँची हलके श्यामवर्ण की सर्वतोभद्रिका प्रतिमा है। इसके पास चबूतरे पर मुनि-चरण बने हुए हैं। दायीं तथा बायीं दीवारवेदियों में पार्श्वनाथ की १ फुट ५ इंच ऊँची कृष्णवर्ण और शान्तिनाथ की १ फुट ४ इंच ऊँची श्वेत वर्ण प्रतिमाएँ विराजमान हैं। मुख्य वेदी से बाहर निकलने पर दायीं ओर एक कमरे में वेदी पर कृष्णवर्ण की संवत् १५९८ में प्रतिष्ठित आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा है। इसके अतिरिक्त वेदी पर सुपार्श्वनाथ, अरनाथ, चन्द्रप्रभ, पार्श्वनाथ आदि तीर्थंकरों की ८ पाषाण प्रतिमाएँ विराजमान हैं। बायीं ओर की कोठरी में वेदी पर २ फीट १ इंच ऊँची पद्मासनस्थ पार्श्वनाथ की कृष्णवर्ण प्रतिमा विराजमान है। इसके अतिरिक्त वेदी पर ७ पाषाण प्रतिमाएँ और हैं। मुख्य गर्भगृह के आगे ४ स्तंभोें पर आधारित खेला-मण्डप है। उसके आगे खुला स्तंभमण्डप है। मंदिर के ऊपर शिखर है। स्तंभमण्डप के ऊपर लघु शिखर है। इनसे आगे सभामण्डप बना हुआ है। सभामण्डप के दोनों ओर खुले मैदान में दो मानस्तंभ है। ये ५ खण्डों में बने हुए हैं। पूर्व दिशा के मानस्तंभ में प्रत्येक खण्ड में मिट्टी की १ और शीर्ष वेदी पर १ प्रतिमा विराजमान हैं, जबकि पश्चिम के मानस्तंभ मेें केवल शीर्ष वेदी में ४ प्रतिमाएँ विराजमान हैं। पूर्व दिशा के मानस्तंभ के पास २ फीट ७ इंच ऊँची एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा रखी है। प्रतिमा काफी प्राचीन है। इसके पास प्राचीन चरण बने हुए हैं। एक ओर क्षेत्रपाल की मूर्ति है।
विशेषता- यह अतिशय क्षेत्र ११०० वर्ष पुराना है। अहिंसा का प्रतीक यहाँ आज भी उपलब्ध है। श्रावण सुदी एकम से पंचमी तक सांप, बिच्छू आदि वैरभाव के जीव साथ-साथ खेलते पाये जाते हैं। उस समय बड़ा जुलूस होता है। मंदिर हेमाड़पंथी सिर्पक पत्थर पर पत्थर रखकर बनवाया गया है। ४०० वर्ष पहले यह जमीन खुदवाकर निकाला गया है। भगवान की प्रतिमा चतुर्थकालीन २६०० साल पुरानी कार्बन टेस्ट से सिद्ध हुई है। मूलनायक प्रतिमा को चाँदी का छत्र चढ़ाने से चढ़ाने वाले की हर मनोकामना पूरी होती है। क्षेत्र महान अतिशयकारी है। धर्मशाला- यहाँ पृथक् धर्मशाला नहीं है। किन्तु मंदिर के अहाते में ही ७ कमरे बने हुए हैं। यहाँ कुआँ हैं। मंदिर में बिजली नहीं है। क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ- क्षेत्र पर कुल १४ कमरे हैं। २ हॉल हैं। भोजनशाला सशुल्क है, अनुरोध पर भोजन तैयार हो जाता है। यहाँ पुस्तकालय भी है। सोलापुर एवं तुलजापुर से बस सेवा उपलब्ध है, क्षेत्र पर भी बस की सुविधा है। मेला- क्षेत्र पर प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष वदी १० और ११ को दो दिन मेला होता है। इस अवसर पर बाहर से लगभग ५०० व्यक्ति आ जाते हैं। इस समय भगवान की पालकी नगर-भर में निकाली जाती है।