पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने दीक्षा लेकर जहाँ आत्मकल्याण के साथ ही जगह-जगह पर खूब धर्मप्रभावना की, वहीं उन्होंने अनेक ग्रन्थों का लेखनकार्य भी किया है, कई ग्रंथों की पद्यावली, कई मौलिक रचनाएँ आदि करके उन्होंने साहित्य की सेवा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। उन समस्त ग्रंथों के नाम यहाँ प्रस्तुत हैं-
१. पीयूषवाणी २. अभयवाणी प्रथम भाग
३. अभयवाणी द्वितीय भाग ४. महावीर अमर संदेश
५. अभय गीतांजली प्रथम पुष्प ६. अभय गीतांजलि द्वितीय पुष्प
७. वीर अभयध्वनि ८. जैन संस्कृति शतक
९. द्वादशांग विवेचन १०. दशधर्म विवेचन
११. सोलह कारण भावना १२. एक वृक्ष सात डालियाँ
१३. आत्म पथ की ओर १४. सप्त व्यसन
१५. बाल विज्ञान ज्योति प्रथम खण्ड १६. बाल विज्ञान ज्योति द्वितीय खण्ड
१७. आदर्श जिनवाणी १८. अमृतवाणी
१९. कुंदकुंद गीता २०. वसुदेव चरित्र
२१. अमृत कलश काव्य पद्य २२. पुरुषार्थ सिद्धि काव्य पद्य
२३. आत्मानुशासन काव्य पद्य २४. परमात्म प्रकाश काव्य पद्य
२५. रयणसार काव्य पद्य २६. भव्य स्तोत्र काव्य पद्य
२७. मृत्युंजय विधान २८. भक्तामर विधान
२९. सम्मेदशिखर विधान ३०. धर्मचक्र विधान
३१. चौबीसी विधान ३२. पंचपरमेष्ठी विधान
३३. रत्नत्रय विधान ३४. श्रुतस्कंध विधान
३५. अ.क्षेत्र बड़गाँव का इतिहास ३६. अ. क्षेत्र बरनावा का इतिहास
३७. अ. क्षेत्र लूणवां का इतिहास ३८. अ. क्षेत्र मोजमाबाद का इतिहास
३९. अ. क्षेत्र बिहारी का इतिहास ४०. तीर्थ क्षेत्र अयोध्या का इतिहास
४१. तीर्थक्षेत्र हस्तिनापुर का इतिहास
अब यहाँ पर इनमें से कुछ प्रमुख ग्रंथों का विशेष परिचय प्रदान किया जा रहा है-