इस पांडुकशिला के मध्य में शरत्कालीन सूर्य मंडल के सदृश प्रकाशमान उन्नत सिंहासन स्थित है। इसके दोनों तरफ, दिव्यरत्नों से रचित दो भद्रासन हैं। एक सिंहासन, दो भद्रासन इन तीनों की ऊँचाई पृथक्-पृथक् ५०० धनुष है। मूल में विस्तार ५०० धनुष एवं ऊपर विस्तार २५० धनुष है। ये सिंहासन धवल, छत्र, चामर, घंटिकाओं से शोभित एवं पूर्वाभिमुख स्थित हैं।
सौधर्म इंद्र भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुये तीर्थंकरों को बड़े वैभव के साथ लाकर मध्यम िंसहासन पर विराजमान करके १००८ कलशों से महान् अभिषेक करते हैं।