प्रथम सिद्धकूट पर विचित्र ध्वजा समूहों से शोभायमान जिनेन्द्र भवन तथा उत्तम सुवर्ण और रत्नों से निर्मित तोरणों से युक्त विमान भी स्थित हैं। इस जिन भवन की लम्बाई एक कोस, चौड़ाई आधा कोस और ऊँचाई पौन कोस प्रमाण है। यह जिन भवन सुवर्णमय तीन प्राकारों से वेष्टित, गोपुरों से संयुक्त, उत्तम वङ्का, नील, विद्रुम, मरकत और वैडूर्यमणियों से निर्मित, लटकती हुई रत्नमालाओं से युक्त, नाना प्रकार के फूलों के उपहार से शोभायमान, गोशीर, मलय चंदन, कालागरु और धूप की गंध से व्याप्त, उत्कृष्ट वङ्का कपाटों से युक्त, बहुत प्रकार के द्वारों से सुशोभित विशाल और उत्तम मानस्तम्भों से सहित एवं अनुपम हैं। झारी, कलश, दर्पण, चामर, घण्टा छत्रत्रय आदि मंगल द्रव्यों से, विचित्र उत्तम वस्त्रों से, नाग, पुंनाग, चंपक, अशोक और वकुल आदि वृक्षों से परिपूर्ण विविध प्रकार के उपवनों से शोभायमान है।स्वच्छ जल से परिपूर्ण कमल और नील कमलों से अलंकृत भूमि भागोें से युक्त, मणिमय सोपान पंक्तियों से शोभायमान ऐसी पुष्करिणियों से यह जिनभवन रमणीय दिखता है। इस जिन भवन में अष्ट महामंगल द्रव्यों से परिपूर्ण, सिंहासन आदि से सहित, हाथ में चामरों को लिए हुए नागयक्षों के युगलों से युक्त, ऐसी जिनेन्द्र प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
झारी, कलश, दर्पण, ध्वजा, छत्र, चामर और सुप्रतिष्ठ (ठोना) इन आठ मंगल द्रव्यों में से प्रत्येक वहाँ एक सौ आठ-एक सौ आठ हैं।
जो स्मरण मात्र से ही भव्य जीवों के सम्पूर्ण पापों को नष्ट करती हैं और शाश्वत ऋद्धियों से युक्त हैं, ऐसी इन जिन प्रतिमाओं का जितना भी वर्णन किया जावे थोड़ा ही है। इन मंदिरों में स्थित सुंदर जिन मूर्तियों का जो भव्य जीव निर्मल चित्त होकर भक्ति से ध्यान करते हैं वे अपने भावों के अनुसार नाना प्रकार के अभ्युदयों को प्राप्त कर अनंत सुखस्वरूप मोक्ष को भी प्राप्त कर लेते हैं।
भरतादि आठ कूटों पर व्यंतर देवों के उत्तम रत्न और सुवर्ण से निर्मित वेदी एवं गोपुर द्वारों से शोभित, उद्यानों से युक्त, मणिमय शय्या और आसनों से परिपूर्ण, फहराती हुई ध्वजा-पताकाओं से सुशोभित और अनेक वर्ण वाले देवों के भवन हैं। ये व्यंतर देवों के प्रासाद बहुत से देव-देवियों से सहित हैं। ये एक कोस लम्बे, आधा कोस चौड़े तथा पौने कोस ऊँचे प्रमाण वाले हैं।
भरत कूट पर – भरत नामक देव
खंडप्रपात पर – नृत्यमाल देव
माणिभद्र पर – माणिभद्र देव
विजयार्ध कूट पर – विजयार्ध कुमार देव
पूर्णभद्र कूट पर – पूर्णभद्र देव
तिमिश्र कूट पर – कृतमाल देव
उत्तर भरत कूट पर – भरत देव
वैश्रवण कूट पर – वैश्रवण देव
क्रमश: इन आठ कूटों पर उनके अधिपति देवों का निवास है। ये सभी देव दस धनुष ऊँची अवगाहना वाले हैं और एक पल्य प्रमाण आयु से युक्त हैं।
इस विजयार्ध पर्वत के भूमि तल पर दोनों पार्श्व भागों में दो कोस विस्तीर्ण और पर्वत के बराबर लंबे वनखण्ड हैं। इन वनों की वेदिकायें-दीवालें दो कोस ऊँची और पाँच सौ धनुष प्रमाण विस्तार वाली हैं एवं तोरण द्वारों से सहित हैं। ये वेदिकायें मार्ग एवं अट्टालिकाओं से सुंदर नाना प्रकार के लाखों यंत्रों से व्याप्त, विविध प्रकार के उत्तम रत्नों से खचित और अनुपम शोभा को धारण करने वाली हैं। इन सब उपवनों में प्राकार और गोपुरों से युक्त तथा जिन भवनोें से भूषित, व्यंतर देवों के विशाल, उत्कृष्ट नगर हैं।
इस विजयार्ध पर्वत में पचास योजन लम्बी, आठ योजन ऊँची और बारह योजन विस्तार से युक्त दो गुफाएँ हैं। इनमें से पूर्व में तिमिश्र गुफा और पश्चिम में खण्डप्रपात गुफा है। ये दोनों गुफाएँ वङ्कामय कपाटों से युक्त और अनादिनिधन हैं। दोनों ही गुफाओं में द्वारों के दिव्य युगल कपाटों में से प्रत्येक कपाट छह योजन विस्तीर्ण और आठ योजन ऊँचे हैं।