तर्ज—मिलो न तुम तो…………….
सिद्धचक्र की आरति गाएँ, चरणन शीश झुकाएँ
प्रभू का आसरा है।।टेक.।।
प्रभू तीनों लोकों के, तुम्हीं रखवारे करतार हो। हो………
कर्मचक्र जीतकर तुम, सिद्धिप्रिया के भरतार हो।। हो……
भक्त तुम्हारी, भक्ति रचाएँ, श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ,
प्रभू का आसरा है ।।१।।
हे दीनानाथ हो, रंग लो हमें भी उसी रंग में। हो………..
मैना ने रंगा जिसमें, श्रीपाल को नए रंग में।। हो………..
उसी हो हम भी, मन में लाएँ, उसी का ध्यान लगाएँ,
प्रभू का आसरा है ।।२।।
सिद्धों की भक्ति से जब, सिद्धशिला भी मिल सकती है। हो…..
तब रोगी काया क्यों न, कंचन सरीखी बन सकती है।। हो…..
पूजा रचाएँ, प्रभु को ध्यायें, मनवांछित फल पाएँ,
प्रभू का आसरा है ।।३।।
आठ से बढ़ाकर इसमें, इक हजार चौबिस गुण की पूजा है। हो….
प्रभु जी की पदवी से क्या, बढ़कर के कोई पद दूजा है।। हो….
कितने भक्त, शरण में आए, आत्मशक्ति प्रगटायें,
प्रभू का आसरा है।।४।।
ज्ञानमती माताजी ने, सिद्धचक्र पाठ यह बनाया है। हो…….
करे ‘‘चंदनामति’’ जो भी, आनंद सचमुच उसने पाया है।। हो……
हम भी तेरी भक्ति रचाएँ, शक्ति अनन्ती पाएँ,
प्रभू का आसरा है।।५।।