अथ सिद्धानां जघन्योत्कृष्टेनावगाहक्षेत्रमाह—
णवपण्णारसलक्खा सयाणं खंडाणमेयखंडम्हि।
सिद्धाणं तणुवादे जहण्णमुक्कस्सयं ठाणं१।।१४१।।
नवपञ्चदशलक्ष शतानां खण्डानामेकखण्डे।
सिद्धानां तनुवाते जघन्यमुत्कृष्टं स्थानम्।।१४१।।
लोक के अग्रभाग पर तनुवातवलय में विराजमान सिद्ध परमेष्ठी की जघन्योत्कृष्ट अवगाहना द्वारा रुद्ध क्षेत्र कहते हैं—
गाथार्थ—तनुवातवलय के बाहुल्य के नव लाख खण्ड करने पर एक खण्ड में जघन्य अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी हैं और उसी बाहुल्य के पन्द्रह सौ खण्ड करने पर उसके एक खण्ड में उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी विराजमान हैं।।१४१।।
अथ तदवगाहं व्यवहारं कुर्वन्नाह—
पणसयगुणतणुवादं इच्छियउग्गाहणेण पविभत्तं।
हारो तणुवादस्स य सिद्धाणोगाहणाणयणे।।१४२।।
पञ्चशतगुणतणुवात: इच्छितावगाहनेन प्रविभक्त:।
हारस्तनुवातस्य च सिद्धानामवगाहनानयने।।१४२।।
पण। पञ्चशत ५०० गुणित ७८७५०० तनुवात: १५७५ ईप्सितावगाहनेन प्रविभक्त: ७/८ हारस्तनुवातस्य च सिद्धानामवगाहनानयने। एतावत्खण्डानां ९०००० एतावत्सु ७८७५०० व्यवहारदण्डेषु एकखण्डस्य कियन्तो दण्डा इति सम्पात्य एतावता ११२५०० अपवर्तने ७/८ जघन्यावगाह: एवमुत्कृष्टावगाहो ज्ञातव्य:। उभयत्र चतुर्धापवर्तनविधिश्च ज्ञातव्य:।।१४२।।
उस अवगाहना को व्यवहाररूप करने के लिए कहते हैं—
विशेषार्थ—तनुवातवलय का बाहुल्य तो प्रमाणाङ्गुल की अपेक्षा है और सिद्धों की अवगाहना व्यवहाराङ्गुल की अपेक्षा है, अत: तनुवातवलय के बाहुल्य (मोटाई) १५७५ धनुष को ५०० से गुणित करने पर (१५७५ ² ५००) सात लाख, सत्तासी हजार, पाँच सौ (७,८७,५००) व्यवहार धनुषों का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। इसमें जघन्य अवगाहना ७/८ धनुष का भाग देने पर (७८७५०० ´ ७/८) अर्थात् (७८७५००/१ ² ८/७), ९००००० खण्ड प्राप्त होते हैं। जबकि ९००००० खण्डों में ७८७५०० व्यवहार धनुष होते हैं, तब १ खण्ड में कितने धनुष प्राप्त होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक कर ७८७५००/९००००० को ११२५०० से अपवर्तित करने पर ७/८ व्यवहार धनुष प्रमाण सिद्धों की जघन्य अवगाहना प्राप्त होती है।
सिद्धों की जघन्य अवगाहना ३-१/२ हाथ की होती है तथा ४ हाथ का एक धनुष होता है, अत: जबकि ४ हाथ का १ धनुष होता है, तब ३-१/२ हाथ के कितने धनुष होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर (१/४ ² ७/२) · ७/८ धनुष प्राप्त होंगे, जबकि ७८७५०० धनुष में ९००००० खण्ड प्राप्त होते हैं, तब ७/८ धनुष के कितने खण्ड प्राप्त होंगे ? इस प्रकार पुन: त्रैराशिक कर (९०००००/७८७५०० ² ७/८) अपवर्तित करने पर १ खण्ड प्राप्त होता है, अत: जघन्य अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी तनुवातवलय के १/९००००० भाग में विराजमान हैं, यह बात सिद्ध हुई।
उत्कृष्ट अवगाहना—सिद्धों की उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष की होती है तथा तनुवातवलय की मोटाई १५७५ धनुष है, जिसके ७८५०० व्यवहार धनुष होते हैं, जबकि ५२५ धनुष का १ खण्ड होता है, तब ७८७५०० धनुष के कितने खण्ड होंगे ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर (७८७००/५२५·१५००) खण्ड प्राप्त हुए, जबकि ७८७५०० धनुष के १५०० खण्ड होते हैं, तब ५२५ धनुष के कितने खण्ड होंगे ? इस प्रकार पुन: त्रैराशिक करने पर (१५०० ² ५२५/७८७५००) · १ खण्ड प्राप्त हुआ, अत: सिद्ध हुआ कि उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध परमेष्ठी तनुवातवलय के १/१५०० भाग में रहते हैं।